रघुवरजसप्रकास [1] – किसनाजी आढ़ा
— i — भूमिका संस्कृत साहित्य में छंदशास्त्र का विशेष स्थान है। वेद के छः अंगों (१ छंद, २ कल्प, ३ ज्योतिष, ४ निरुक्त, ५ शिक्षा और ६ व्याकरण) में छंदशास्त्र भी एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका स्थान पाद (चरण) माना गया है। कारण कि इसके बिना गति-क्रिया किसी की सम्भव नहीं, अतः वेद में भी छन्दस्तु वेदपाद: कहा गया है। यह कहना कोई अत्युक्ति नहीं कि हमारे पूर्वाचार्यों ने काव्य-रचना में छंदशास्त्र की उतनी ही आवश्यकता मानी है जितनी व्याकरण की। कालान्तर में अनेक भाषाओं का प्रादुर्भाव संस्कृत भाषा से हुआ जैसे कि प्राकृत, अपभ्रंश आदि। इन भाषाओं के […]
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