पुस्तक लोकार्पण – काव्य कलरव काव्य संग्रह


काव्य कलरव काव्य संग्रह के लोकार्पण का अवसर अतिथियों के उत्प्रेरक एवम उम्दा उद्बोधनों, कवियों की प्रभावी काव्य-प्रस्तुतियों तथा समागत मित्रों की गरिमामयी एवम अपनत्व भरी उपस्थिति से अविस्मरणीय बना।

‘‘साहित्य समाज का दर्पण है लेकिन यह दर्पण सामान्य दर्पण की तरह मात्र बाह्य संसार की दृश्यमान चीजों को ही प्रतिबिम्बित नहीं करता वरन यह ऐसा विलक्षण दर्पण है जो समाज के प्रति समर्पण को प्रतिबिंबित करता है। सकारात्मक समर्पण की प्रेरणास्पद छवियों को सामाजिकों के समक्ष अभिव्यक्त कर अपनी संवेदना एवं संचेतना के बल पर करणीय एवं अकरणीय कार्यों की सम्यक पहचान कराने का काम साहित्य करता है, ऐसे साहित्यिक सृजन को एक वाट्सएप समूह द्वारा संरक्षित, संवर्द्धित एवं प्रोत्साहित किए जाने पर मुझे अपार खुशी है। इससे मुझे भरोसा है कि साहित्य सृजन की सरस सलिला सतत प्रवाहित होती रहेगी।’’ उक्त विचार काव्य कलरव समूह की ओर से रविवार को झालाना ऑफिसर्स क्लब, जयपुर में आयोजित ‘काव्य कलरव पुस्तक लोकार्पण समारोह’ के अवसर पर मुख्य अतिथि माननीय न्यायाधिपति श्रीमान महेशचंद्र शर्मा ने व्यक्त किए।

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नमण धरा नागौर

नमण धरा नागौर, और कुण तो सूं आगै।
संत भगत सिरमौर, तोर जस जोती जागै।
तूँ मोटी महमाय, उदर मीरां उपजावै।
गुण गोविंद रा गाय, दाय नह दूजो आवै।
जहं सूरवीर पिरथी सिरै, (अरु) देव-देवियां अवतरै।
गजराज आज घण गरब सूं, (थनै) क्रोड बार वन्दन करै।। 01।।[…]

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अटल स्वातंत्र्य उपासक महाराणा प्रताप

अनूठी आन, बान एवं शान वाला यह राजस्थान प्रांत शक्ति, भक्ति एवं अनुरक्ति की त्रिवेणी माना जाता है। यहां का इतिहास शौर्य एवं औदार्य के लिए विश्वविख्यात रहा है। यहां जान से बढ़कर आन तथा प्राण से बढ़कर प्रण की शाश्वत परम्परा रही है। राजस्थान की इस तपोभूमि की कुछ ऐसी विशेषताएं रही हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ है। यहां के वीरों ने धरती, धर्म, स्त्री एवं असहायों की रक्षार्थ मरने को मंगल माना; यहां की वीरांगनाओं ने अपनी कंचन जैसी काया का मोह त्यागते हुए अपने हाथों अपना सीस काट कर वीर पतियों को प्रणपालन का अद्वितीय पाठ पढ़ाया; यहां के संतों ने जन-जन की जड़ता को दूर करते हुए मानवधर्म की अलख जगाई; यहां के साहित्यसेवकों ने राजा से रंक सभी को कर्तव्यपथ पर अडिग डग भरने की सुभट सीख दी। जीवन से अत्यधिक मोह होते हुए भी काम पड़ने पर मरने से मुंह नहीं मोड़ कर सिंधुराग पर रीझते उन वीरों की मरदानगी की मरोड़ देखते ही बनती है। दुनिया में दूसरी जगह शायद ही ऐसा उदाहरण हो जहां वचन प्रतिपालन हेतु विवाह के ‘कांकण डोरड़े’ खोले बिना ही दूल्हे ने चंवरी में ‘राजकंवरी’ को छोड़कर ‘भंवरी’ की पीठ पर सवार हो युद्धभूमि की ओर प्रस्थान किया हो।[…]

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जंभवाणी के नीतिकथनों की वर्तमान प्रासंगिकता

आज के समाज की समग्र झांकी को ध्यान में रखते हुए गुरु जंभेस की वाणी का सम्यक विवेचन करें तो उनके नीति-कथनों की वर्तमान प्रासंगिकता कदम-कदम पर दृष्टिगोचर होती है। मैंने 20 अलग-अलग बिंदुओं में इनको संकलित करने का प्रयास किया है। ये बिंदु विश्लेषण-संश्लेषण के आधार पर घटाएं-बढ़ाए भी जा सकते हैं।
01. कर्म की प्रधानता
व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है।
उत्तम कुली का उत्तम न होयबा, कारण किरिया सारूं (26)
राजस्थानी लोकसाहित्य का ” कुंभ में सिंधु समात नहीं”
‘हक हलालूं, हक साच कृष्णो, सुकृत अहळो न जाई (70),
ब्राह्मण नाऊं लादण रूड़ा, बूता नाऊं कूता (72),
ओछी किरिया आवे फिरिया (77)[…]

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आज वार इतवार

आज वार इतवार, आज घर-बार संभाळो।
आज वार इतवार, टूर पसवाड़ै टाळो।
आज वार इतवार, नहीं कित आणो-जाणो।
आज वार इतवार, न को महमान बुलाणो।
बैठ कर आज परिवार बिच, बिनां बात बातां करो।
गजराज तणी इण गल्ल पर, ध्यान नेक मीतां धरो।।[…]

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डिंगल काव्यधारा में प्रगतिशील चेतना

शौर्य, औदार्य, भक्ति, नीति, लोकव्यवहार एवं अनुरक्ति आदि विविध विषयों में रचित राजस्थानी साहित्य की डिंगल काव्यधारा का अपना अनुपम एवं गौरवमयी इतिहास है। धारातीर्थ धाम के रूप में स्वनामधन्य इस राजस्थान की धोरा धरती की शौर्यप्रधान संस्कृति के निर्माण और परित्राण में डिंगल काव्यधारा का विशेष योगदान रहा है। इस धारा के कवियों में हलांकि अनेक जाति वर्ग के लोगों का नाम आता है लेकिन इनमें अधिकांश कवि चारण रहे हेैं और आज भी हैं। अतः यह चारणी काव्य नाम से भी जाना जाता है। “आधुनिक हिंदी जगत में डिंगल काव्यधारा यानी चारण काव्य के लिए प्रायः भ्रामक धारणाएं व्याप्त है, जो लेशमात्र भी आप्त नहीं है। वस्तुतः चारण सामाजिक चेतना का संचारण एवं क्रांति का कारण है। वह स्वातंत्र्य का समर्थक, पौरुष का प्रशंसक और प्रगति का पोषक होने के साथ ही युगचेता, निर्भीक नेता और प्रख्यात प्रणेता रहा है। उत्कृष्ट का अभिनंदन एवं निकृष्ट का निंदन इसकी सहज वृत्ति रही है। सिद्धांत एवं स्वाभिमान हेतु संघर्ष करने वाले बागी वीरों का वह सदैव अनुरागी रहा है। “[…]

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माणस अर माछर

ओ छोटो सो जीव रंगीलो, बात होळै सी कह्वै कान में।
करै कुचरणी, नींद उड़ावै, रक्तपान नै धार ध्यान में।।
ऊमस, गरमी हुवो कितीही, भांवै सांस निकाळै आवै।
आँख लागतां पाण जुझारू, सागण जूनी तान सुणावै।।
कड़कड़ ठंड दांत कड़कावै, भांवै बरसै मूसळाधार।
ओ नीं सोवै नीं सोवण दे, ओ छोटो मोटो सरदार।।[…]

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टकै-टकै मत बेच

मोत्यां मूंघो माण जगत में
अर मोत्यां री कीमत भारी।
टकै-टकै मत बेच बावळा, आ जिंदगाणी लाख टकां री।।

लख चौरासी भटक बितायां
मिनख जूण रो मोको आवै।
करम देख करतार पूरबला
करमां सारू काज भुळावै।।
कर करणी भंूडी या सखरी
बही लिखीजै बंदा थारी।
टकै-टकै मत बेच बावळा, आ जिंदगाणी लाख टकां री।।01।।

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राणी पदमावती री गौरव गाथा

चित्तौड़ दुर्ग री बात चल्यां,
मन भारत माता मोदीजै।
पदमण रो पावन प्रेम पढ्यां,
हर हिंदुस्तानी गरबीजै।

वा रतन सिंह री रजपूती,
वा साख सपूती पदमण री।
गौरा-बादळ रो साम-धरम,
वा सीख सदीनै भलपण री।[…]

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पद्मिनी का प्रेम

सुंदरता खुद जिससे मिलकर, सुंदरतम हो आई थी।
जिसके मन मंदिर में अपने, पिय की शक्ल समाई थी।

शील, पतिव्रत की दुनिया को, जिसने सीख सिखाई थी।
जौहर की ज्वाला में जलकर, जिसने जान लुटाई थी।

सदियों के गौरव को जिसने, अम्बर तक पहुंचाया था।
स्वाभिमान को शक्ति देकर, खिलजी से भिड़वाया था।

जीते जी राणा को चाहा, और चाह ना उसकी थी।
सत-पथ पे चलती थी हरदम, सत पे जीती मरती थी।[…]

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