रीत-नीत तज राड़ करै

रीत-नीत तज राड़ करै,
बाखळ में ऊभ बोबाड़ करै,
परिवार दुखी वां पूतां सूं,
कुळ नै रिगदोळ कबाड़ करै।
सावळ कावळ रो भान नहीं,
कुळ गौरव रो अभिमान नहीं,
लालच रै लपकां लाग्योड़ा,
ऐ गिणै कोई अहसान नहीं।[…]

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चिरजा: बिड़द रख बीसहथी वरदाई

बिड़द रख बीसहथी वरदाई,सेवग दुख हर लीजे सुरराई।

खल को खंडन कर खलखंडनि, मेछां उधम मचाई।
संतन के मन गहरो सांसो, पुनि-पुनि-पुनि पछताई।।1।।

खल संग निर्मल होय सफल कब, अंत मिलत अफलाई।
दुष्ट दलन कर हे दाढाळी, एक आसरो आई।।2।।[…]

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मन मान्यै री बात

मन री सत्ता घणी मजबूत है। मन री गति अपार। बिना सवारी मन तीनूं लोकां री जात्रा करतो आनंद री ल्हरां लेवै। मन री सत्ता सूं संत अर फकीर ई घबरावै। ओ ई कारण है कै कबीर जियांकलै फक्कड आदमी नैं ई मन नैं नियंत्रण में राखण सारू कलम चलावणी पड़ी। कबीर री रचनावां मांय ‘मन को अंग’ नाम सूं मोकळी साखी लिखीजी है।

मन लोभी मन लालची, मन चंचल मन चोर।
मन के मते न चालिए, पलक पलक मन और।।

कबीर आद मोकळा संतां री सीख सुण्यां पछै ई मानखो तो मन री सत्ता नैं ई मानै अर मनगत मोजां माणै।[…]

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एतबार रखिए अवस

एतबार रखिए अवस, इस बिन सब अंधार।
रिसते रिश्तों के लिए, अटल यही आधार।।

एतबार पे ही टिके, घर-परिवार-संसार।
एतबार से ही बहे, रिश्तों की रसधार।।

प्रीति परस्पर है वहीं, उर-पुर जंह पतियार।
प्रीति अगर परतीति बिन, केवल मिथ्याचार।।

मन की तनक न मानिए, मन नाहक मरवाय।
मन के शक की मार से, एतबार मर जाय।।[…]

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खुद तो खुद सूं साचो बोल

खुद तो खुद सूं साचो बोल
सै सूं पैली खुद नै तोल,
खुद रै मन री घुन्ड्यां खोल,
औरां सूं तो झूठ भलांई
खुद तो खुद सूं साचो बोल।
मन री सगळी घात बता तूं,
प्रतिघाति हालात बता तूं,[…]

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माता

प्रेम को नेम निभाय अलौकिक,
नेम सों प्रेम सिखावती माता।
त्याग हुते अनुराग को सींचत,
त्याग पे भाग सरावती माता।
जीवन जंग को ढंग से जीत के,
नीत की रीत निभावती माता।
भाग बड़े गजराज सपूत के,
कंठ लगा दुलरावती माता।।1।।[…]

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बदळण रो हेलो कर बेली

तन भूखो अर मन उदियासू,
जीवण धारा डंक डसेली।
समय शंख में मंत्र फूंक अब,
बदळण रो हेलो कर बेली।।

जनशोषक सत्ता गळियारा,
जनगण मंगळ यूं गावै है।
शेषनाग री बांबी जाणै,
इमरत रो घट ढुळकावै है।
जनपथ सूळ, धूळ जन आंख्यां,
सपनां में जहरल गुळ भेली।
समय शंख में मंत्र फूंक अब,
बदळण रो हेलो कर बेली।।01।।

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ठा पड़सी बींदणी उठाण्यां

अेकर अेक गाम में अेक सेठजी हा। सेठजी घणां धनवान ई कोनी हा अर रूपवान तो बिल्कुल ई कोनी हा। हा जिकां में ई अेक आंख री सोझी जाती री इणसूं लोग काणियों काणियों करण लागग्या। बांणियै रो बेटो। पांच रिपिया कमावण खावण री लकब ली। घरबार तो ठीक ठाक चालै पण ब्याव रो कोई गेलो बैठ्यो कोनी। च्यारां कानीं हाथ-पांव मार धाप्या पण कोई आपरी बेटी इण काणै अर कुरूप सेठ नैं देवण सारू त्यार नीं। कोई बाप जे करड़ी छाती कर’र सगपण री बात चलावै तो आड़ोसी-पाड़ोसी पार कोनी पड़ण द्यै। बात चलावतां ई लुगायां रा टुणकला त्यार। ईं नांव तो छोरी नैं बोडि़यै कूवै में न्हाख देता। सूओ सी छोरी नैं काणैं रींछ लारै कियां करीजै। इणनैं परणावण सूं तो आछो कै कंठ मोस’र मारद्यो बेटी नैं। इयांकली बातां सुणतां कोई गिनायत त्यार कोनी हुयो। […]

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अम्मा तेरी है क मेरी

आ दुनिया अलबेली है। इणमें बडाबडी रा डेरूं बाजै। अेक सूं अेक उपरला पीर पैदा हुवै। हर मिनख खुद नैं दुनिया रो सबसो स्याणो अर सही आदमी मानै अर दूजोड़ां रै कामां में कमियां निकाळै। खुद री अकल माथै इधको गुमेज राखै। कई बार जाणबूझतां लोग जागतां नैं पगांथियां न्हाखण री असफळ कोसीसां करै। कई बार तो फब ज्यावै पण कई बार खुद रो वार खुद पर भारी पड़ ज्यावै। आपसूं उपरलो उस्ताद मिल्यां आंख्या चरड़-चरड़ खुल ज्यावै। नहलै पर दहलो मारणियां रो घाटो कोनी, इण खातर घणी हुंस्यारी दिखाण सूं पैली आदमी नैं सोचणो जरूर चाईजै।

आपणै अठै घरां मांय सासू अर बहू री छोटी-मोटी खींचताण आम बात मानीजै। सासू अर बहू री खींचताण में दुधारी तलवार रा रगड़का बापड़ै बीं मिनख रै लागै जको अेक रो बेटो अर अेक रो घरधणी है। बो दो पाटां रै बिचाळै पिसीजै। बात घणी बधज्यावै जणां न्यारा-न्यारा होवणो पड़ै। अेकर इयांकलै ई जंजाळ में फंस्योड़ै अेक मोट्यार राड़ आडी बाड़ करण री सोच’र आपरी मा नैं गाम में राखी अर बहू नैं शहर मांय ले आयो। पण न्यारी हुयां पछै ई बहू रै मन में सासू रै प्रति भाव सागण ई रैया। सासू-बहू रै ठीकरी में घाली ई नीं रळै। बहू आपरी सासू नैं सबक सिखावणो चावै।[…]

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साहित-खेत रो सबळ रुखाळो: अड़वौ – पुस्तक समीक्षा

‘लघुकथा’ साहित्य री इयांकली विधा है जकी दूहे दाईं ‘देखण में छोटी लगै (अर) घाव करै गंभीर’ री लोकचावी साहित्यिक खिमता नैं खराखरी उजागर करै। ओपतै कथासूत्र रै वचनां बंध्योड़ी पण मजला सूं इधको हेत राखती गळ्यां-गुचळ्यां अर डांडी-डगरां री अंवळांयां सूं बचती सीधी अर सत्वर सोच्योड़ै मुकाम पूगण वाळी विधा है- लघुकथा। राजस्थानी साहित्य अर संस्कृति रा जाणीजांण, राजस्थानी प्रकृति नैं परतख पावंडां नापणियां, वनविभाग रा आला अधिकारी श्री अर्जुनदान चारण लघुकथावां रा खांतीला कारीगर है। आपरा दो लघुकथा संग्रै छप्या थका है। दोनूं मायड़भासा राजस्थानी मांय है। पैलो ‘चर-भर’ अर दूजो ‘अड़वौ’। ‘अड़वौ’ संग्रै मांय राजस्थानी जनजीवण, नीत-मरजाद, लोक-व्यवहार, लेण-देण, सेवा-चाकरी, मैणत-मजूरी, नीत-अनीत आद विषयां सूं जुड़ी 52 लघुकथावां भेळी है। […]

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