बाईजी को बोलणो अर भलै घरां की राड़

मिनखाजूण रै फळापै अर फुटरापै सारू आपणां बडेरां, संत-साहितकारां अर लोकनीत-व्यवहार रो ज्ञान करावणियां गुणीजणां खास कर इण बात पर जोर दियो है कै आ जीभ जकां रै बस में है, वां रो ई जीवण धन्य है। ‘बाई कैवतां रांड’ कहीजै जकां नैं जस री ठौड़ जूता ई पानै पड़ै। वाणी तो व्यक्तित्व री आरसी मानीजी है। आदमी नीं बोलै जितरै उणरो ठा नीं पड़ै पण जियां ई बोलै उणरो कद आपणै सामी आवणो सरू हुवै। बोली में मिनख रा संस्कार, व्यवहार, ग्यान अर सभाव रो अेकै सागै खुलासो हुवै। आदमी री ठीमरता, धीरज अर संयत व्यवहार री सूचना उणरी वाणी ई दिया करै। जियां ई मिनख बोलै आ ठा पड़ ज्यावै कै ओ कुणसी संगत अर संस्कारां में रैवणियो आदमी है। […]

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मतलब जठै, बठै न मिताई

अखिल चराचर मांय मानखै जितरा रिश्ता-नाता बणाया है, वां मांय अेक उल्लेखणजोग रिश्तो है- मिताई वाळी। मिताई यानी कै मित्रता, यारी, दोस्ती, भायलाचारी। इतियास री आंख सूं देखां तो मिताई री मोटी-मोटी मिसालां आपणै सामी है, जिणमें भगवान कृष्ण अर सुदामा री मिताई तो जगचावी है। कृष्ण अर अरजण पण तगड़ा मित्र हा। श्रीराम रै ई सुग्रीव अर विभीखण जियांकला मित्रां री कथावां आपणै सामी है। भगवान कृष्ण री फोटू वाळो अेक पोस्टर देख्यो, जकै माथै लिख्योड़ो हो कै – कृष्ण सूं कोई पूछ्यो कै महाराज मित्रता रो मतलब कांई है? कृष्ण भगवान मुळकता सा जबाब दियो कै भोळा “मतलब हुवै बठै मित्रता कद हुया करै?”[…]

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जवानां

जीवण असली जंग जवानां,
जंग जुट्यां ही रंग जवानां।
रण नैं छोडणियां निरभागी,
कोई न वांरै संग जवानां।
जीवटता नैं सौ जग पूजै,
आंकस राखो अंग जवानां।
खाडा, पाथर, काँटा, आंटा,
आं सूं डरै अपंग जवानां।[…]

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डग-डग माथै खौफ डगर में

डग-डग माथै खौफ डगर में,
नागां रो उतपात नगर में।
जिणनै भूल चैन सूं जील्यूं,
(क्यूँ) बात बा ही पूछै बर-बर में।
स्याळ्यां परख्यो जद सूरापण,
नीलगाय रो नाम निडर में।
श्रद्धा, स्नेह न भाव चावना,
कोरी फुलमाळावां कर में।

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माता

प्रेम को नेम निभाय अलौकिक,
नेम सों प्रेम सिखावती माता।
त्याग हुते अनुराग को सींचत,
त्याग पे भाग सरावती माता।
जीवन जंग को ढंग से जीत के,
नीत की रीत निभावती माता।
भाग बड़े गजराज सपूत के,
कंठ लगा दुलरावती माता।।1।।

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चारण ने हमेशा उत्कृष्ट के अभिनंदन एवं निकृष्ट के निंदन का अहम कार्य किया है

कल की अशोभनीय खबर का खेद प्रकट करते हुए आज राजस्थान पत्रिका ने लिखा है कि उन्होंने ‘ऐसा मुहावरे के तौर’ पर लिखा है। जहां तक हमारी जानकारी है हिंदी शब्दकोश या मुहावरा-लोकोक्तिपरक कोशों में ऐसा कोई मुहावरा नहीं जो कल के समाचार में लिखे मंतव्य को बयां करता हो। और जहां तक जातिसूचक मुहावरों या लोकोक्तियों की बात है तो बहुत से ऐसे मुहावरे हो सकते हैं लेकिन क्या किसी मुहावरे को मनचाहे ढंग से कहीं भी प्रयुक्त करना सही है। यदि ऐसा है तो मैं ऐसे अनेक शब्दों की जानकारी राजस्थान पत्रिका एवं लेखक मि. वर्मा को उपलब्ध […]

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पहले जान लें कि चारण क्या है, फिर टिप्पणी करें

राजस्थान पत्रिका जैसे राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध समाचारपत्र में ‘तथाकथित रूप से  अतिख्याति प्राप्त पत्रकार’ महोदय श्री आनन्द स्वरूप वर्मा की ‘चारण’ समाज के प्रति अभद्र टिप्पणी को पढ़कर अत्यंत वेदना हुई।
आदरणीय वर्मा साहब!  वैसे तो किसी जाति या परंपरा पर बिना सोचे समझे टीका-टिप्पणी करने वाले लोग किसी समाज के प्रतिनिधि नहीं हो सकते लेकिन फिर भी आपसे यह जानने की इच्छा जरूर है कि चारण तो जैसे थे या हैं, वैसे ठीक हैं पर आपकी जाति, जो भी है, उसमें कितने तथा किस तरह के साहित्यकार एवं कलाकार रहे हैं, जरा उनका परिचय करवाइए ताकि साहित्य के इतिहासों से‘चारण-साहित्य’, चारण-काल, चारण-युग, चारण-प्रवृत्तियां आदि के स्थान पर आप द्वारा निर्दिष्ट नाम लिखकर समाज का उचित मार्गदर्शन करें। उनके साहित्य की उपादेयता एवं उल्लेखनीय प्रवृत्तियों से भी अवगत करवाएं। इससे हम जैसे लोगों को यह फायदा होगा कि हम भी कहीं सही मायने में कलाकार एवं साहित्यकार बन सकें।

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बिन बेटी सब सून

यह संसार सामाजिक संबंधों का जाल है, जिसमें हर व्यक्ति एक-दूसरे से किसी न किसी रिश्ते से जुड़ा हुआ है। अरस्तु ने तो यहां तक लिखा है कि बिना समाज के रहने वाला व्यक्ति या तो पागल है या फिर पशु है यानी कि व्यक्ति के लिए समाज का होना अत्यावशक है। समाज की एक सशक्त कड़ी है – परिवार। परिवार ही वह आधारशिला है, जहां रिश्तों का ताना-बाना बुना जाता है, रिश्तों की फसलों को सींचने तथा सहेजने-संवारने का काम यहीं से होता है। परिवार रूपी बगिया में खिलने वाला हर पुष्प रिश्तों के मिठास का जल पाकर सुरभित […]

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जद भोर भयंकर भूंडी है

जद भोर भयंकर भूंडी है
अर सांझ रो नाम लियां ही डरां।
इसड़ै आं सूरज चंदां रो
किम छंदां में गुणगान करां।।
कळियां पर काळी निजरां है
सुमनां री सौरभ सहमी है।
उर मांय उदासी उपवन रै
जालिम भंवरा बेरहमी है।। […]

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परतख प्रेरणा-पुंज : आपणी लोकदेवियां 

किणी देस-समाज री पूरी अर परतख पिछाण उणरी संस्कृति सूं इज हुवै। संस्कृति रो मूळ संस्कार हुवै। संस्कारां रै सिगै ई किणी मिनख, समाज अर देस री रीत-नीत, माण-मरजादा, लेण-देण, आचार-विचार आद रो ठाह लागै। भारतीय संस्कृति मांय मिनख रै जलम सूं लेय छेहलै पड़ाव ताणी जीवण री जुगत सिखावण सारू संस्कारां, मान्यतावां, रीत-रिवाजां अर कमनीय कल्पनावां री भरमार है। इण संस्कृति मांय कांई है, इणरै साथ कांई व्हेणो चाईजै, इणरी बात पुरजोर ढंग सूं करीजी है। मिनख नैं पग-पग माथै उत्तम जीवण जीणै री प्रेरणा देवण सारू आपणी संस्कृति मांय देवी-देवता, संत-ओलियां, पीर-भोमियां, सूरां-जुझारां रै उल्लेखणजोग अर अनुकरणजोग जीवण […]

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