माटी थनै बोलणौ पड़सी – कवि रेवतदान चारण

Rajasthan-Farmer

मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।
करणौ पड़सी न्याय छेड़लौ, माटी थनै बोलणौ पड़सी।

कुण धरती रौ अंदाता है, कुण धरती रौ धारणहार ?
कुण धरती रौ करता-धरता, कुध धरती रै ऊपर भार ?
किण रै हाथां खेत-खेत में, लीली खेती पाकै है ?
किण रै पांण देष री गाड़ी, अधबिच आती थाकै है ?
कहणौ पड़सी खरौ न खोटौ, सांचौ भेद खोलणी पड़सी।।
माटी थनै बोलणौ पड़सी।
मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।

थूं जांणै है पीढी-पीढी, खेत मुलक रा म्हे खड़िया।
थूं जांणै है काळ बरस में, भूख मौत सूं म्हे लड़िया।
थूं जांणै है कोट-कांगरा, मैल-माळिया म्हे घड़िया।
म्हांरी खरी कमाई कितरी, लेखौ थनै जोड़णौ पड़सी।।
माटी थनै बोलणौ पड़सी।
मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।

आ बात बडेरा कैता हा, धरती वीरां री थाती है।
माटी अै करसा झूठा हैं, यांरी तौ काची छाती है।
ठंडी माटी रा मुड़दा है, दिवलै री बुझती बाती है।
माटी रा म्हे रंगरेज हां, ज्यां कारण धरती राती है।
जे करसा मोल चुकाता व्है तौ धड़ नै सीस तोलणौ पड़सी।।
माटी थनै बोलणौ पड़सी।
मूंन राखिया मिनख मरैला
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।

जद मेह-अंधारी रातां में, तुटौड़ी ढांणी चवती ही।
तौ मारू रा रंगमैलां में, दारू री मैफिल जमती ही।
जद वां ऊनाळू लूंआं में, करसै री काया बदळी ही।
तौ छैलभंवर रै चौबारै, चौपड़ री जाजम ढळती ही।
इण भरी कचेड़ी देण गवाही, ऊभा-घड़ी दौड़णौ पड़सी।।
माटी थनै बोलणौ पड़सी।
मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।

~~कवि रेवतदान चारण

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One comment

  • Jay singh rajpurohit

    बहुत खूब रेवतदान जी , खूब अदभुत रचना