🌹श्रीब्रह्मानंदमंगलस्तवनम्🌹- श्री कृष्णवल्लभाचार्य कृत

🌸शार्दूलविक्रीडीतवृत्तम्🌸

य: षड्भावविवर्जिताङक्षरपदस्थानादिमुक्त:स्वयं|
स्वेष्टाङ्ज्ञावशवर्तनाङप्तनृजनि सच्चारणज्ञातिक:|
सिद्धार्थ:सुरकोटिगो मतिमतां मूर्धन्य ईष्टव्रती|
आजीवाङदृतनैष्ठिको विजयते श्रीलाडुसंज्ञ:कवि:||१

जो ब्रह्मानंद स्वामी(लाडूदान जी)खुद मायिक जैसे कि होना,जन्मना,बढना,परिणमना,क्षीण होना ,नाश होना आदि षड भावों से रहित ऐसे दिव्य अक्षरधाम के वासी अनादि मुक्तराज है,वह खुद के इष्ट देव श्री परब्रह्म श्रीहरि के आदेश से इस इहलोक में देवकोटि में मानी गई चारण ज्ञाति में जन्म लेकर जन्मसिद्ध योगी रहके इष्टव्रत का अनुसरण करते हुए विद्वतजनों और मतिवान लोगों में मूर्धन्य कविराज के रूपमें प्रसिद्धि को प्राप्त है और आजीवन नैष्ठिक ब्रह्मचारी धर्म के अनुसार जीवन जिन्होंने व्यतित किया है ऐसे श्री लाडुदानजी सदा विजय ही प्राप्त करते है||१

भूता:सन्ति च भाविनोङपि कवयोसंख्या:स्वगर्वान्विता|
तर्कें केचन लेखने स्मृतिविधौकाव्येमतौ केचन|
स्फूर्तौचाङप्यपवर्गकाव्यकरणेसूच्यौष्ठमष्टस्यथा|
द्राक्प्रत्युत्तरदापनेत्विहगुणास्तेविज्ञसम्राङिधे||२

 

इस संसार में अनेक कवि अतीत में हुए है,वर्तमान में है और भविष्य में होंगे|जिन में से कोई तर्क शक्ति गर्वान्वित,कोई लेखनशक्ति गर्वान्वित,कोई स्मरण शक्ति गर्वान्वित,कोई काव्य शक्तिगर्वान्वित, कोई भविष्य फल कथन शक्ति गर्वान्वित,कोई स्फुरण शक्ति गर्वान्वित,कोई होठों के बीच सूई रखकर प- फ-ब-भ-म ईत्यादि वर्जित रहित अधरोष्ट प्रबंध काव्य रचना गर्वान्वित,कोई शीध्रप्रत्युत्तर देने की शक्ति से गर्वान्वित होते है|पर यह विद्वान कवि सम्राट ब्रह्मानंद मुनि तो स्वयं में यह सभी शक्तियाँ रूपी सद्गुणों को भक्ति के साथ समेटे हुए होने के कारण ही कविसम्राट की पदवी को सार्थक धारण किये हुए है||२

छंदोगीतिसुपध्यगध्यघटनारागव्रतश्लोकगी:|
यज्जिह्वाग्र सुनर्तकी विहरति श्रीशारदा मूर्तिधृक्|
यावत्काव्य सुपिंगलादिक निबन्धाङभ्यासमूर्तियति:|
ब्रह्मानंद मुनिक्षितौ विजयते,ब्रह्मात्मतादात्म्यक:||३
छंदों ,गीतों,पध्यों,गध्यों की रचनाऐं रागों ,वृत्तों और श्लोकों रूपी मां शारदा जिसके जीभ के अग्रभाग में एक कुशल नर्तकी की तरह हरदम रहकर नृत्य करती रहती है|केवल यह ही नहीं जो स्वयं में वीणापाणि मां शारदे की मूर्ति को धारण किये हुए है, और समग्र काव्यविधाऔं पिंगल शाश्त्र और निबंधों के अभ्यास खुद मूर्तिमान मूर्तिरूप इस ब्रह्मानंद यति में हों उसका क्या आश्चर्य ,और ब्रह्म तादात्म्य भाव के अनुभवि ऐसे ब्रह्मानंद स्वामी पृथ्वी में विजय को प्राप्त करते है||३

यत्काव्येषु वसन्ति वै नवरसा मूर्ता रसाब्धिर्यत:|
सद्वास्याङस्वरसोङतिपुष्टतनुधृक्काव्येन्वितोस्यास्त्यत:|
योलब्ध्वाशुभवासमाप्तमतुलंश्रीस्वामीनारायणं|
स्याङग्रे स्निग्धसखामुनिर्विजयते ब्रह्माख्ययोगीश्वर:||४

 

वह स्वयं रसों के सागर होने से खुद की कविताओं में मूर्तिमान नवरस हर पल उनकी कविता में रहता है|उसमें भी विशेष रूप से उनके हार्दिक काव्यों में उत्कृष्ठ हास्य रस तो अति पुष्ट रूप से विधमान है|और जो स्वयं भगवान स्वामीनारायण के सान्निध्य में खुद को रखते हुए स्नेहिल मित्र या सखा भाव से सदैव रहे है और बर्ताव किया है ऐसै योगीश्वर ब्रह्मानंद स्वामी सदैव विजय प्राप्त करें||४

सत्संगाङयसमग्र संस्थिति महामाया दीपोङगी स्वयं|
यद्योगा निजवाहनोपितुरगो, ब्रह्मवतं सन्दधै|
शूरोधार्मिकवर्तनेङतिद्रढसद् वृत्ति कृतौ स्वेप्सिते|
ब्रह्मानंद यति सदा विजयते,सत्यार्थवाग्वारिधि:||५

 

जिनके योग के प्रभाव से खुद का वाहन अश्व भी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता था,और खुद स्वयं भी सत्संग में अग्रगण्य और समग्र सुस्थिति वाले स्वामीनारायण संप्रदाय के नियमों की मर्यादाओं के पोषक और धार्मिक व्रत में शूरवीर और खुद द्रढ निश्चयी और अडिग मनोबल वाले और सदवर्तन वाले और सत्य अर्थ वाली वाणी के वारिधि(सागर)ऐसे श्रीब्रह्मानंद मुनि सदा विजय प्राप्त करें||५

भव्य यस्य हि दर्शनम् निजपदाङस्थाप्राप्तकल्याणदम्|
यत्संग: परमुक्ति दोङक्षरपदे, लोकेङत्रविधाप्रदम्|
विध्या यस्य करोत्थिताङस्ति जनताङकृष्टिप्रकर्षाङङर्तिदा|
स्वामी ब्रह्ममुनिश्वरकवि: कोत्यार्युषा जीवति||६

 

जिनका दर्शन उनके शरण में आए हुए अस्थायी जनों के लिए कल्याणदायी है,जिनका समागम अक्षरधाम की परम मुक्ति परम मुक्ति का दाता है,एवं इस लोक में उत्तम विध्याओं का प्रदाता है जिनके हाथ की वर मुद्रा(आशीर्वाद मुद्रा)और उपदेश मुद्राए लोगों को आकर्षित करने वाली और सर्व दु:खों की नाशक है,ऐसे कविश्वरों के कवि श्रीब्रह्मानंद स्वामी कीर्तिरूपी दीर्घायु से आज भीे चिरंजीवी है||६

देवज्ञातिगताङ्ङश्वलायनभिधा शाखाङस्ति वै भारते|
तीर्थोङद्रयअर्बुदभूश्रयोङस्ति खनिकाग्रामोङत्रतातोस्य हि|
नाम्ना स्माङस्तिहि शंभुदान इतियो माता च वै लालबा|
ताम्बां लब्धजनिर्हि लब्धइति य: श्रीरंग संज्ञोङपि स:||७

 

इस भारत के देवकोटि की चारण जाति की अश्वलायन शाखा के चारण आबू पर्वत की तलहटी में आए हुए खांण ग्राम में बसते है,जिसमें यह ब्रह्म मुनि के शंभुदान नामक पिता और लालु बाई नामक माताजी बसते थे|उनसे जन्म धारण कर लाडुदानजी बाद में श्रीरंग कवि नाम से यह ब्रह्मानंद स्वामी प्रसिद्ध हुए||७

ब्रह्मानंदभिधः स एव सहजानन्दस्य शिष्य:कवि:|
जित्वामायिजगद् ययौ हरिपदं यद् ब्रह्मधामोत्तमम्|
तस्यब्रह्मसुसंहिताभिधमिदं सज्जीवनं कीर्तये|
निर्विघ्नाङस्य समाप्तिरस्त्वतिवृणेङहंमावदान:कवि:||८

 

ततपश्चात श्रीसहजानंद स्वामी कि जो स्वामी नारायण भगवान ,उनके शिष्य श्रीरंग कवि हुए और ब्रह्मानंद स्वामी के नाम से जग मशहूर हुए कि जिन्होंने माया और जगत को जीत कर स्वबल और स्वनाम से स्मरण कर सके ऐसा श्रीहरि का ब्रह्मधाम प्राप्त कर लिया,ऐसे ब्रह्ममुनि के जीवन वृतांत रूपी यह ब्रह्मसंहिता ग्रंथ को मावदानजी रतनू कविराज निर्विघ्न समाप्त करने हेतु श्रीहरि और ब्रह्ममुनि के पास वरदान मांगता हूं||८

वृतालयेङवाप महा प्रधानता|
चकार मूल्यांशिखराढ्यमंदिरम्|
जीर्णादयदुर्गेङपि चकार मंदिरम|
ब्रह्मादिनन्दो मयि स प्रसीदताम्||९

 

वडताल धाम में जिसने महंतपद प्राप्त किया,मूली नगर में शिखर बध्ध मंदिर निर्माण किया,एवं जूनागढ में भी शिखरमयी मंदिर का निर्माण किया वह सद्गुरू ब्रह्मानंद स्वामी आप मुझ पर प्रसन्न रहिये||९

रचयिता: श्री सौराष्ट्रीय श्रीजीर्णदुर्गी श्री कृष्णवल्लभाचार्य शास्त्र दार्शनिक पज्जानन, षड्दर्शनाचार्य, नव्यन्यायाचार्य, सांख्ययोगवेदांतमीमांसातीर्थ: (काशी वाराणसी)

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