अंतस रा आखर

बात उण टेम री है जद म्हारी बाई (माताजी) आज सूं डेढ साल प्हैली अजुवाळी चवदस रा देशणोक म्हारै नानाणां सूं आप रा दूजा संगी साथी अर संबंधियों रे साथै देशणोक दरसण करवा रवाना हुवी। उण टेम म्है एक दूहौ मन में बणायौ के

ओरण माणस ऊमड्या, फेरी देवा काज।
आयी चवदस आपरी, मेहाई महराज।।

औ दूहौ बणियौ जद म्है औ सोचियौ के इण तरे रा चौथा चरण वाळा दोहा आज तांई किणी नी बणाया है। अर मौलिक चरण री वजह सूं अगर कोशिश करी जाय तो नामी फूटरा दूहा बण सके। इण रे बाद मां भगवती मेहाई री किरपा सूं एक पछै एक दुहा बणता गिया। म्है ऐ दुहा म्हारा सोसियल मिडिया रा ग्रुप “डिंगळ री डणकार” अर “थार थळी” मैं लगातार एक पछै एक पोस्ट करतौ रियौ।[…]

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तूं क्यूं कूकै सांखला!!

“बारै वरसां बापरो, लहै वैर लंकाल़!!”

महाकवि सूरजमलजी मीसण री आ ओल़ी पढियां आजरै मिनखां में संशय उठै कै कांई साचाणी बारह वरसां रा टाबरिया आपरै बाप-दादा रा वैर लेय लेवता! आं रो सोचणो ई साचो है क्यूं कै आज इणां रा जायोड़ा तो बारह वरसां तक कांई बीस वरसां तांई रो ई रोय र रोटी मांगे!! सिंघां सूं झपटां करणी तो मसकरी री बात है बै तो मिनड़ी रै चिलकतै डोल़ां सूं धैलीज जावै!! जणै आपां ई मान सकां कै आजरो मिनख आ बात कीकर मानै? पैला तो हर मिनख आपरी लुगाई नै कैया करतो हो कै “जे आपांरै जायोड़ै में बारह वरसां तक बुद्धि, सोल़ह वरसां तक शक्ति अर बीस वरसां तक कुल़ गौरव री भावना नींआवै तो पछै उणसूं आगे कोई उम्मीद राखणी विरथा है”[…]

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पद्मश्री डा. सीताराम लालस

पद्म श्री डा. सीताराम जी लालस (सीताराम जी माड़साब के नाम से जनप्रिय) राजस्थानी भाषा के भाषाविद एवं कोशकार थे। आपने ४० वर्षों की अथक साधना के उपरान्त “राजस्थानी शब्दकोष” एवं “राजस्थानी हिंदी वृहद कोष” का निर्माण किया। यह विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोष है जिसमे 2 लाख से अधिक शब्द, १५ हज़ार मुहावरें/कहावतें, हज़ारों दोहे तथा अनेकों विषय जैसे कृषि, ज्योतिष, वैदिक धर्म, दर्शन, शकुन शास्त्र, खगोल, भूगोल, प्राणी शास्त्र, शालिहोत्र, पशु चिकित्सा, संगीत, साहित्य, भवन, चित्र, मूर्तिकला, त्यौहार, सम्प्रदाय, जाति, रीत/रिवाज, स्थान और राजस्थान के बारे में जानकारी एवं राजस्थानी की सभी उप भाषाओं व बोलियों के शब्दों का विस्तार पूर्वक एवं वैज्ञानिक व्याकर्णिक विवेचन है। इस अभूतपूर्व कार्य के लिए स.१९७७ में भारत सरकार ने आपको पद्मश्री से सम्मानित किया। जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर ने आपको मानद पी.एच.डी. (डाक्टर ऑफ़ लिटरेचर) की उपाधि प्रदान की।
जोधपुर दरबार मानसिंह जी का जालोर के घेरे में जिन १७ चारणों ने साथ दिया था उनमे से एक थे नवल जी लालस जिनको सांसण में नेरवा गाँव मिला था।[…]

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म्है मरियां ई कोट भिल़सी !!

बीकानेर माथै जिण दिनां महाराजा सुजाणसिंहजी रो राज तो जोधपुर माथै अभयसिंहजी रो।
जोधपुर रै राजावां री कुदीठ सदैव बीकानेर माथै रैयी ही। उणां जद ई देखियो कै बीकानेर में अबार सत्ता पतल़ी है अथवा आपसी फूट रा बीज ऊग रैया है तो उणां बीकानेर कबजावण सारु आपरो लसकर त्यार राखियो।
ओ ई काम अभयसिंहजी कियो। ऐ ई बीकानेर माथै सेना लेय आया।[…]

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रात -रात तो मरुं कोनी!!

‘लिखी सहर सींथल़ सूं, आगे गांम कल़कतियै।‘ इण एक वाक्य सूं सींथल़ रै लोगां रो स्वाभिमान अर मातभोम रै प्रति अगाघ प्रेम नै परख सको। ओ वाक्य ई किणी कवि कै ठाकुर रै लिख्योड़ी कै लिखायोड़ो नीं है बल्कि ओ वाक्य सींथल़ रो हर साहूकार आपरै कल़कते रैवणियै पारिवारिक सदस्य नै कागज लिखती बगत लिखतो। इणी कारण तो डॉ शक्ति दानजी कविया लिखै कै मरू प्रांत रै पांच रतनां रै पाण ई इण धोरां धरती री सौभा आखै जगत में है-

संत सती अर सूरमा, सुकवी साहूकार।
पांच रतन मरू प्रांत रा, सौभा सब संसार।।

सींथल(बीकानेर)री धरती माथै संतां में हरिरामदासजी होया।[…]

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परमवीर प्रभु प्रकाशःअदम्य साहस रो अमिट उजास

रजवट (साहस) रो वट जिण सूरां आपरै रगत सूं सींच र पोखियो उणां रो नाम ई अमर रैयो है। कायर अर वीर रै मरणै में ओई फरक है कै कायर तो मरर धूड़ भेल़ा होवै अर वीर जस देह धार अमरता नै प्राप्त होवै। आजरै इण नाजोगै जमानै में ई आपरो जोगापणो बतावणिया जनम लेय, देश रै कारण मरण खाट, ऊजल़ै वेश सुरग पथ रा राही बणै। ऐड़ो ई एक वीर लारलै दिनां देश भक्ति रो दीप दीपाय अमरता नै प्राप्त होयो।
इण वीर रो नाम हो प्रभुसिंह गोगादेव।[…]

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लूणोजी रोहड़िया री वेलि

बीठूजी नै खींवसी सांखला 12 गांव दिया। बीठूजी आपरै नाम सूं बीठनोक बसायो। कालांतर में इणी गांव म़े सिंध रै राठ मुसलमानां सूं सीमाड़ै अर गोधन री रुखाल़ी करतां बीठूजी वीरगति पाई। जिणरो साखीधर उठै एक स्तंभ आज ई मौजूद है। बीठूजी री वंश परंपरा में धरमोजी होया अर धरमोजी रै मेहोजी। मेहोजी रै सांगटजी/सांगड़जी होया। बीठनोक भाईबंटै में सांगड़जी नै मिलियो जिणरै बदल़ै में तत्कालीन जांगलू नरेश इणां नै सींथल़ इनायत कियो।
सांगड़जी सींथल आयग्या। सांगड़जी रै च्यार बेटा हा-मूल़राजजी, सारंगजी, पीथोजी, अर लूणोजी। एकबार भयंकर काल़ पड़ियो तो च्यारूं भाई आपरी मवेशी लेयर माल़वै गया परा। लारै सूं सूनो गांम देख ऊदावतां सींथल माथै कब्जो कर लियो। मेह होयो। हरियाल़ी होई तो ऐ पाछा आपरै गांम आया। आगे देखै तो ऊदावत धणी बणिया बैठा है! उणां विध विध सूं समझाया पण उणांरै कान जूं ई नीं रेंगी।[…]

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चारणों वीरों की यादें!

चारणों ने राजपूतों के साथ अनेकानेक ऐतिहासिक युध्दों में भाग लिया है, सन 1311 में सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालौर के राजा कान्हड़दे सोनगरा पर आक्रमण किया तब उसके उसके सेनापति सहजपाल गाडण ने असाधारण शौर्यप्रदर्शन कर वीरगति पाई थी।
महाराणा हम्मीर के साथ चारण बारुजी सौदा 500 घोड़े लेकर अल्लाउद्दीन खिलजी से लड़े थे और खिलजी के मरने के पश्चात हम्मीर को चित्तौड़ की गद्दी पर बैठाने में सफलता पाई थी।
प्रसिध्द हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप के साथ सेना में रामाजी सांदू व सौदा बारहठ जैसाजी व कैसाजी भी लड़े थे व तीनों ने अदभूद वीरता दिखाकर वीरों के मार्ग गमन किया था।
सन 1573 में अकबर द्वारा गुजरात आक्रमण के समय वीरवर हापाजी चारण मुगल सेना में तैनात थे।

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अठै तो नानोसा री पगरखियां रुखाल़ूं !!

मारवाड़ में चारणां आऊवा री धरा माथै गोपाल़दासजी चांपावत रै संरक्षण में ‘लाखा जमर’ कियो-

आवधां बांध खटतीस अंग, भुजां लाज सबल़ां भल़ी!
रेणवां कनै गोपाल़ रा, बैठा आयर महाबल़ी!!
–खीमजी आसिया

इण जमर पछै, जिका चारण बचिया उणांनै अर गोपालदासजी नै महाराजा रायसिंहजी(बीकानेर) बीकानेर बुला लिया-

रायसिंघ बीकाण, पटो दीनो भुज पूजै।
सब्बां पायो सुक्ख, धरा वंकां सत्र धूजै।।
–खीमजी आसिया

उण बगत मारवाड़ सूं जितरा ई चारण आया उवै सगल़ा बीकानेर सूं सींथल़ आयग्या[…]

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वह समय-वे भक्त-वह बातें

ई. सन 1895-1900 के बीच बीकानेर से मेड़ता के बीच रेलवे लाईन को व्यापार तथा आवागमन के लिए खोल दिया गया था, जनता को सुविधा हो गई थी, उस समय रियासतों के खर्चे पर ही रेलवे बनती थी, महाराजा का कहा ही आदेश बनता था। राजे-महाराजे जनता का दुख-दर्द भी यथा संभव दूर करने की कोशिष करते थे, उक्त रेलकी लाईन बिछाने में गंगासिंह जी की महत्ती भूमिका थी।
रेल का जब सुचारू संचालन होने लग गया तो माँ करनी जी के भक्तगण यात्रियों को सूदूर प्रान्तों से आवागमन की सुविधा मिल गई तथा आना-जाना आसान हो गया, परन्तु रेलवे की स्टेशन देशनोक से पूर्व दिशा में तीन कोस दूरी पर गीगासर नामक गांव में बनाई गई थी। जहां से यात्रियों को पैदल या ऊँट पर सवार होकर माँ के मढ में जाना पड़ता था, सर्दी गर्मी वर्षा के दिनों में सुनसान स्टेशन पर रात्रि को रूकना भी परेशानी वाला काम था।[…]

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