गायां तांझी नीं मांझी गी!!

दासोड़ी रै उतरादी कांकड़ रै कड़खै एक मोटो धोरो है, जिणनै गौयर धोरो कैवै। गौयर मतलब गायां रै स्थाई बैठण री जागा। रात री बखत चौमासै में गांम री गायां अठै बैठती अर इण गायां रो ग्वाल़ो मोहर अथवा मेहर जात रो मुसल़मान हो। पैला दासोड़ी में इण जातरै मुसल़मानां रा खासा घर हा।
एक दिन रात री गायां बैठी अर बो सूतो हो कै अचाणचक उणनै लागो कै कोई गायां नै टोर रैयो है। बो हाकल करर उठियो कै उणनै तीन -च्यार जणां पकड़र बांध दियो। उण पड़ियै पड़ियै ई किरल़ी (जोर से किसी को हेला करना या आवाज देना) करी।

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दोय उदैपुर ऊजल़ा!!

उण दिनां उदयपुर माथै महाराणा जगतसिंह राज करै। उदार अर मोटै मन रा राजा। जिणां रै विषय में ओ दूहो घणो चावो है-

पारेवा मोती चुगै,
जगपत रै दरबार!!

एक दिन उणां रो दरबार उमरावां अर कवियां सूं थटाथट भरियो। बात चाली कै ‘आज री बखत महाराणा जगतसिंह री बराबरी रो कोई दातार नीं!! जितै किणी कैयो कै एक है!! उदयपुर छोटा(शेखावाटी) रा धणी टोडरमल!!’
किणी कैयो कै ‘कठै बापड़ो उदयपुरियो अर कठै उदयपुर!! तुलै सोनो अर मींडीजै ईंटां!!’

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भाज गई भेडांह !!

बीकानेर महाराजा दलपतसिंह स्वतंत्र प्रकृति रा पुरूष हा। इणां री इण प्रकृति रो कुफायदो केई लोगां उणां रै कुंवरपदै में उठायो ई हो जिणरै परिणामस्वरूप बाप-बेटे में खटरास ई पड़ियो पण इणां इण बात री कोई घणी गिनर नीं करी।
महाराजा रायसिंह रै सुरगवास पछै ऐ पाट बैठा। इणां नर नानाणै री गत महाराणा प्रताप रै चीले बैतां थकां मुगल़ सत्ता री घणी कद्र नीं करी।
जैड़ोकै आपां सगल़ा जाणां कै इणां रो नानाणै मेवाड़ महाराणा प्रताप रै घरै हो। इणां ई विद्रोह रो झंडो भलांई ऊंचो नीं राखियो पण मेलियो ई नीं!! इणसूं घबराय पातसाह जहांगीर इणांरै विद्रोही भाई महाराज सूरसिंह रो पख लियो अर बीकानेर माथै सेना मेली।[…]

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अठै ! कै उठै !!

जोधपुर राव मालदेवजी भायां नै दबावण री नीत सूं मेड़ता रै राव जयमलजी नै घणो दुख दियो। जयमलजी ई वीर अर भक्त हृदय राजपूत हा, उणां सदैव इण आतंक रै डंक नै अबीह होय झालियो।
मेड़ता माथै राव मालदेवजी आक्रमण कियो, उण बखत जयमलजी रा भाई चांदाजी मेड़तिया ई मालदेवजी रै साथै हा। उणां, उण बखत किनारो ले लियो जिणसूं मालदेवजी नै थोड़ो शक होयो। मेड़तिया ऐड़ा भिड़िया कै जोधपुर रा पग छूटग्या। नाठतां आपरो नगारो ई पांतरग्या। जिणनै जयमलजी सनमान सैती आपरै भांभी साथै लारै सूं पूगतो कियो। गांम लांबिया कनै जावतां उण भांभी रै मन में आई कै एकर नगारै माथै डाको देय देखूं तो सरी कै बाजै कैड़ोक है!![…]

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पत तूं राखै पातला!!

सरवड़ी बोगसां रो गांम। साहित्य अर संस्कृति रो सुभग मेऴ।

एक सूं एक टणकेल अर जबरेल कवियां री जनम-भोम सरवड़ी कविराजा बांकीदासजी आसिया अर शब्द-मनीषी सीतारामजी लाल़स रो नानाणो। जैड़ो पीवै पाणी ! वैड़ी बोलै वाणी अर जैड़ो खावै अन्न ! वैड़ो हुवै मन्न!! शायद ओ ईज कारण रैयो होवैला कै ऐ दोनूं मनीषी राजस्थानी साहित्य रा कीरतथंभ हा। होणा ई हा ! क्यूंकै नर नाणाणै अर धी दादाणै रो कैताणो आदू!! पछै ‘मामा ज्यारां मारका, भूंडा किम भाणेज!!'[…]

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तो कांई म्हारी दाऴ अलूणी ही!!

एकबार खेतसिंह कोई घरेलु काम-काज रै मिस जोधपुर गया। आपरो ऊंठ निमाज हवेली में बांध सामान-सट्टो खरीदण गया अर, पाछा आय हवेली रातवासो लियो। दिनूंगै उठिया तो सऴवऴ सुणीजी कै हवेली मानसिंहजी घेराय दी है।

ठाकरां रो साथ भेऴो होयो अर मुकाबलो करण री तेवड़ी। उणां मांय सूं किणी खेतसिंहजी नै कैयो कै-
“खेतसिंहजी ! थे अणखाधी रा क्यूं मरो !! थे थांरै ऊंठ सवार होय जावो परा !! दरबार रो कोप ठाकरां माथै है दूजै किणी माथै नीं सो थे क्यूं उडतो तीर गऴै में लेवो?”[…]

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अजै कांई रोटियां होवै!!

रावल़ मूल़राज अर रतनसी रै साको करियां पछै जैसल़मेर रो गढ घणा दिन सोग में डूब्योड़ो सूनो पड़ियो रह्यो।

जैसल़मेर जैड़ो गढ अर सूनो!! आ बात जद महेवै रै कुंवर जगमालजी मालावत नै ठाह पड़ी तो उणां आपरा आदमी अर सीधै रा सराजाम लेय जैसल़मेर कानी जावण रो मतो कियो।

उण दिनां काल़ काढण नै सिरूवै रा रतनू चंद्रभांणजी ई महेवै रैता, ऐड़ी सल़वल़ सुणी तो चंद्रभांणजी आपरै दादै आसरावजी नै समाचार कराया कै राठौड़ जैसल़मेर रो गढ दाबणो चावै!![…]

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सिद्ध मिलियो सादूऴ रो

ऊदावतां रो नीमाज ठिकाणो चावो। कनै ई पांच-सात कोस माथै कांवऴिया खिड़ियां रो गांम। उठै रा खिड़िया रुघनाथजी सादूऴजी रा मौजीज अर मोतबर मिनख। साहित्य अर संगीत रा प्रेमी तो कऴाकारां रा कद्रदान। कांवऴिया आपरी दातारगी अर उदारता रै पाण चावी रैयी है-

के के अदवा ऊबरै, छिप छिप छांवऴियाह।
आज व्रण में ऊजऴी, कीरत कांवऴियाह।।

इण नीमाज ठिकाणै रा ढोली नरो अर बहादरो गायबी में प्रवीण तो साथै ई ठिकाणै री धणियाप रै कारण करड़ाण ई राखता सो बीजै जोगतै मिनखां नै शुभराज कम ई करता।[…]

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कांमेही काल़ो नाग

अन्याय, अत्याचार अर अनाचार रै खिलाफ चारणां में तेलिया, तागा अर जम्मर करण री परंपरा ही। किणी आतंक रै डंक सूं चारण शंक’र नीं रह्या। जद-जद किणी राजा, ठाकुर या मधांध मोटै आदमी इणां माथै अत्याचार करण री कोशिश करी तो इणां मोत नै अंगेजण में रति भर ई जेज नीं करी।

ऐड़ी ई एक गरवीली कथा है मा कांमेही रै आत्मोत्सर्ग री। यूं तो आप सुधिजन इण बात नै जाणो पण तोई म्है एकर आपनै पाछी याद दिराय दूं।

हारोबड़ी(गुजरात) रै चारण जसाजी रै घरै कांमेही रो जनम हुयो अर[…]

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दोय दृष्टांन्त माँ भगवती इन्द्रेश भवानी के

।।माँ भगवती इन्द्रेश भवानी की समदृष्टि व कड़े अनुशासन की पालना के दो दृष्टांन्त।।

** १ **

भव-भय-भंजनी भगवती मावड़ी के चारण-वास में हुये प्रवास के दस दिवस के दौरान हर श्रध्दालुगण भक्तों नें माँ को मिजमानी देने की अथाह तथा पुरजोर कोशिश की तथा भाग्यशाली भक्तों के घर माँ भगवती ने पधार कर भोजन ग्रहण करना स्वीकार भी किया। वहीं पर साधारण व सदगृहस्थ भैरवदानजी जागावत भी रहते थे व उनकी धर्मपत्नि श्रीमती मोहनकुंवर कवियाणी बड़ी धर्मपरायणा व सीधी संकोची स्वभाव की नारी थी।[…]

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