गणपति वंदना

🌺छंद त्रिभंगी🌺

दुख भंज दुँदाळा, देव दयाळा, सुत शिव वाळा, गिरजाळा।
जय चार भुजाळा, हे फरसाळा, नमन निराळा, मन वाळा।
वंदन विरदाळा, तरसूळाळा आव उताळा, गणनाथम्।
रिधि सिधि रा स्वामी, नाथ नमामी, हुं खल कामी, माफ करम्।1

आखू असवारी, गज मुख धारी, हुं बलिहारी, हुं थारी।
नह जिण री कारी, संकट भारी, उण दो जारी, दुख हारी।
भगतां रा भारी, हे हितकारी, द्रढ व्रत धारी, इक दंतम्।
रिधि सिधि रा स्वामी नाथ नमामी, हुं खलकामी, माफ करम्।।2

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श्री सुरेन्द्र सिंह रत्नू

सुरेन्द्र सिंह रत्नू पुत्र श्री हिंगलाज सिंह जी रत्नू प्रपोत्र श्री गंगा सिंह जी रत्नू गाँव जिलिया चारणवास (ज़िला नागोर) का जन्म २२ अक्टूबर १९५१ को गाँव सेवापुरा में हुआ। स्टैट बैंक ओफ़ बीकानेर एण्ड जयपुर में मैनेजर के पद से रिटायर सुरेन्द्र सिंह जी ने श्री बांगड कॉलेज डीडवाना से साइंस मेथ्स में स्नातक किया तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ओफ़ बेंकर्स, मुंबई से C.A.I.I.B. करने के अतिरिक्त कम्प्यूटर की शिक्षा भी प्राप्त की। संगीत का शोक आपको शुरू से ही था। आपने गायकी में भातखंडे संगीत विद्यापीठ, लखनऊ से तीन वर्ष का डिप्लोमा भी किया। चिरजा गायन में आप एक […]

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भक्त कवि ईसरदास

संवत पन्नर पनरमें, जनम्या ईशर दास चारण वरण चकोर में, उण दिन भयो उजास।। सर भुव सर शशि बीज भ्रगु, श्रावण सित पख वार। समय प्रात सूरा घरे ईशर भो अवतार।। भक्त कवि ईसरदास की मान्यता राजस्थान एवं गुजरात में एक महान संत के रूप में रही है | संत महात्मा कवि ईसरदास का जन्म बाडमेर राजस्थान के भादरेस गाँव में वि. सं. 1515 में हुआ था। पिता सुराजी रोहड़िया शाखा के चारण थे एवं भगवान् श्री कृष्णके परम उपासक थे। जन मानस में भक्त कवि ईसरदास का नाम बडी श्रद्घा और आस्था से लिया जाता है। इनके जन्मस्थल भादरेस में भव्य […]

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हरिरस (भक्त कवि महात्मा ईसरदास प्रणीत)

।।मंगलाचरण।।
पहलो नाम प्रमेश रो जिण जग मंड्यो जोय !
नर मूरख समझे नहीं, हरी करे सो होय।।१

!! छंद गाथा !!
ऐळेंही हरि नाम, जाण अजाण जपे जे जिव्हा !
शास्त्र वेद पुराण, सर्व महीं त‍त् अक्षर सारम्।।२

!! छंद अनुष्टुप !!
केशव: क्लेशनाशाय्, दु:ख नाशाय माधव !
नृहरि: पापनाशाय, मोक्षदाता जनार्दनः।।३[…]

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देवियांण (भक्त कवि महात्मा ईसरदास प्रणीत)

( छंद अडल )
करता हरता श्रीं ह्रींकारी, काली कालरयण कौमारी
ससिसेखरा सिधेसर नारी, जग नीमवण जयो जडधारी….१
धवा धवळगर धव धू धवळा, क्रसना कुबजा कचत्री कमळा
चलाचला चामुंडा चपला, विकटा विकट भू बाला विमला….२
सुभगा सिवा जया श्री अम्बा, परिया परंपार पालम्बा
पिसाचणि साकणि प्रतिबम्बा, अथ आराधिजे अवलंबा….३[…]

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