हूं नीं, जमर जोमां करसी!!

धाट धरा (अमरकोट अर आसै-पासै रो इलाको) सोढां अर देथां री दातारगी रै पाण चावी रैयी है। सोढै खींवरै री दातारगी नै जनमानस इतरो सनमान दियो कै पिछमांण में किणी पण जात में ब्याव होवो, पण चंवरी री बखत ‘खींवरो’ गीत अवस ही गाईजैला-

कीरत विल़िया काहला, दत विल़ियां दोढाह।
परणीजै सारी प्रिथी, गाईजै सोढाह।।

तो देथां रै विषय में चावो है-

दूथियां हजारी बाज देथा।।

इणी देथां रो एक गांम मीठड़ियो। उठै अखजी देथा अर दलोजी देथा सपूत होया। अखजी रै गरवोजी अर मानोजी नामक दो बेटा होया। मानोजी एक ‘कागिये’ (मेघवाल़ां री एक जात) में कीं रकम मांगता। गरीब मेघवाल़ सूं बखतसर रकम होई नीं सो मानोजी नै रीस आई। वे गया अर लांठापै उण मेघवाल़ री एकाएक सांयढ आ कैय खोल लाया कै – “थारै कनै नाणो होवै जणै आ जाई अर सांयढ ले जाई।”[…]

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म्है अबै पाणी तिलाक दियो!!

एक समय हो जद लोग आपरी बात री कीमत जाणता अर हिम्मत रै साथै उण माथै कायम रैता। मर जाणा कबूल पण दूध- दल़ियो नीं खाणा री बात माथै अडग रैता। आज लोग लांठै मिनख री नगटाई अर नुगराई रो विरोध करण सूं डरै अर उणरै आगै लटका करै। क्यूंकै ‘कुतको बडी किताब, लांठाई लटका करै’ पण उण बखत अन्याय अर अत्याचार रै खिलाफ उठ ऊभा होवता तो का तो बात मनायर छोडता अर पार नीं पड़ती तो उण जागा नै तिलाक सदैव रै सारू छोड देता। छोड देता तो पछै भलांई कोई कितरा ई चीणी रा धोरा बतावो वांरो मन नीं डिगतो।
ऐड़ो ई एक किस्सो है महाराजा सूरतसिंहजी बीकानेर री बखत रो। […]

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बाजीसा बालुदान जी रतनू बोनाड़ा री बातां

।।३।।
हमे माड़वै सरण लो!!

रुघजी फतेहसिंह रै रो बेटो ऊमजी (ऊमसिंह) भोमै रै तल़ै रै सिंधी भोमै रा ऊंठ खोस लायो। बात इयां बणी कै मंगल़िया अर जंज दोनूं सिंधी। एक मंगल़ियै अर एक जंज री लुगाई अरटियै माथै ऊंन कातती “कोठा कल़प्या” यानि आपरै पेट पड़्यै बेटे-बेटी री सगाई करी। दोनां कवल कियो कै दोनां रै आपस में भलांई जको ई होवो, बेटे-बेटी री सगाई करांला।
जोग ऐड़ो बणियो कै जंज री लुगाई रै बेटो होयो अर मंगल़ियै री लुगाई रै बेटी!![…]

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जसोड़ां रा बूंठा छोड देई

दिन अर दशा हरएक री बदल़ती रैवै, इणी कारण इणनै घिरत-फिरत री छिंयां कैयो गयो है। जिकै जसोड़ कदै ई जैसलमेर में जोरावर होता, जिणां रो राज में घातियो लूण पड़तो पण सगल़ी मिनखां री माया रा प्रताप हा!कृपारामजी खिड़िया सटीक ई लिख्यो है कै-

नरां नखत परवांण, ज्यां ऊभां संकै जगत।
भोजन तपै न भांण, रांवण मरतां राजिया!!

ज्यूं-ज्यूं मिनखां रो तोटो आयो, ज्यूं-ज्यूं जसोड़ पतल़ा पड़िया अर त्यूं-त्यूं उणां रो मरट मिटतो ग्यो।[…]

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अजै कांई रोटियां होवै!!

रावल़ मूल़राज अर रतनसी रै साको करियां पछै जैसल़मेर रो गढ घणा दिन सोग में डूब्योड़ो सूनो पड़ियो रह्यो।

जैसल़मेर जैड़ो गढ अर सूनो!! आ बात जद महेवै रै कुंवर जगमालजी मालावत नै ठाह पड़ी तो उणां आपरा आदमी अर सीधै रा सराजाम लेय जैसल़मेर कानी जावण रो मतो कियो।

उण दिनां काल़ काढण नै सिरूवै रा रतनू चंद्रभांणजी ई महेवै रैता, ऐड़ी सल़वल़ सुणी तो चंद्रभांणजी आपरै दादै आसरावजी नै समाचार कराया कै राठौड़ जैसल़मेर रो गढ दाबणो चावै!![…]

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सिद्ध मिलियो सादूऴ रो

ऊदावतां रो नीमाज ठिकाणो चावो। कनै ई पांच-सात कोस माथै कांवऴिया खिड़ियां रो गांम। उठै रा खिड़िया रुघनाथजी सादूऴजी रा मौजीज अर मोतबर मिनख। साहित्य अर संगीत रा प्रेमी तो कऴाकारां रा कद्रदान। कांवऴिया आपरी दातारगी अर उदारता रै पाण चावी रैयी है-

के के अदवा ऊबरै, छिप छिप छांवऴियाह।
आज व्रण में ऊजऴी, कीरत कांवऴियाह।।

इण नीमाज ठिकाणै रा ढोली नरो अर बहादरो गायबी में प्रवीण तो साथै ई ठिकाणै री धणियाप रै कारण करड़ाण ई राखता सो बीजै जोगतै मिनखां नै शुभराज कम ई करता।[…]

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जनकवि उमरदान जी लाळस – जीवन परिचय

जनकवि ऊमरदान का नाम राजस्थानी साहित्याकाश में एक ज्योतिर्मय नक्षत्र की भांति देदीप्यमान है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की पृथक पहचान है। पाखण्ड-खंडन, नशा निवारण, राष्ट्र-गौरव एवं जन-जागरण का उद्घोष ही इस कवि का प्रमुख लक्ष्य था। इसकी रचनाओं में सामाजिक व्यंग की प्रधानता के साथ ही साहित्यिकता, ऐतिहासिकता एवं आध्यात्मिकता की त्रिवेणी सामान रूप से प्रवाहमान है। मरू-प्रदेश की प्राकृतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक छवियों के चितांकन में यहाँ के लोक-जीवन की आत्मा की अनुगूंज सुनाई देती है। डिंगल एवं पिंगल के विविध छंदों की अलंकृत छटा, चित्रात्मक शैली और नूतन भावाभिव्यंजना सहज ही पाठक का मन मोह लेती है।[…]

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म्हारो कोई कागज आयो?

मैं उन दिनों ग्यारहवीं का विद्यार्थी था जब मुझे आत्मीजनों से पत्र द्वारा संवाद करने का शौक जागृत हुआ। मैं सींथल पढ़ा करता था, वहां मेरा ननिहाल था। यह बात 1989 की है। जब जस्सुसर गेट स्थित बिनाणी भवन में अकादमी का विशाल साहित्यकार सम्मेलन हुआ था। मैं ग्यारहवीं का विद्यार्थी था ऐसे में मेरी उसमें प्रतिभागिता की कोई संभावना ही नहीं थी। लेकिन महापुरूषों ने कहा है कि जहां चाह वहां राह। मैं भी सींथल से बीकानेर आ गया और छात्रावास के कुछ मित्रों के साथ सांयकाल नियत स्थान पर पहुंच गया। हालांकि गांगी कोई गीतों में नहीं थी फिर भी कवि होने का भ्रम तो था ही अतः हुंसरड़पणै से श्रोताओं में सबसे आगे बैठ गया।[…]

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कांमेही काल़ो नाग

अन्याय, अत्याचार अर अनाचार रै खिलाफ चारणां में तेलिया, तागा अर जम्मर करण री परंपरा ही। किणी आतंक रै डंक सूं चारण शंक’र नीं रह्या। जद-जद किणी राजा, ठाकुर या मधांध मोटै आदमी इणां माथै अत्याचार करण री कोशिश करी तो इणां मोत नै अंगेजण में रति भर ई जेज नीं करी।

ऐड़ी ई एक गरवीली कथा है मा कांमेही रै आत्मोत्सर्ग री। यूं तो आप सुधिजन इण बात नै जाणो पण तोई म्है एकर आपनै पाछी याद दिराय दूं।

हारोबड़ी(गुजरात) रै चारण जसाजी रै घरै कांमेही रो जनम हुयो अर[…]

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चारण मनोहरदास नांदू (गांव – सुरपाऴिया, नागौर)

इतिहास में केई काऴ भुरजाऴ जंगी जोधारां रा संगी साथी ऐहड़ा कण पाण वाऴा अर आत्म बलिदानी होवता हा कि उणानै आपरै स्वामी री भक्ति आगै आपरो जीवण तोछो लखावतो अर बखत जरूरत माथै बलिदान देवण में कदैई शंकै अर हबक नें नैड़ी नीं आवण देवता। आज इतियास रा ऐहड़ा शूरवीर री चतुराई अर वीरत री वारता रो लेखो जोखो आंके करावां सा।[…]

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