हूं नीं, जमर जोमां करसी!!

धाट धरा (अमरकोट अर आसै-पासै रो इलाको) सोढां अर देथां री दातारगी रै पाण चावी रैयी है। सोढै खींवरै री दातारगी नै जनमानस इतरो सनमान दियो कै पिछमांण में किणी पण जात में ब्याव होवो, पण चंवरी री बखत ‘खींवरो’ गीत अवस ही गाईजैला-
कीरत विल़िया काहला, दत विल़ियां दोढाह।
परणीजै सारी प्रिथी, गाईजै सोढाह।।
तो देथां रै विषय में चावो है-
दूथियां हजारी बाज देथा।।
इणी देथां रो एक गांम मीठड़ियो। उठै अखजी देथा अर दलोजी देथा सपूत होया। अखजी रै गरवोजी अर मानोजी नामक दो बेटा होया। मानोजी एक ‘कागिये’ (मेघवाल़ां री एक जात) में कीं रकम मांगता। गरीब मेघवाल़ सूं बखतसर रकम होई नीं सो मानोजी नै रीस आई। वे गया अर लांठापै उण मेघवाल़ री एकाएक सांयढ आ कैय खोल लाया कै – “थारै कनै नाणो होवै जणै आ जाई अर सांयढ ले जाई।”[…]
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