सरस्वती वंदना

।।छंद: हरिगीतिका/सारसी।।
शुभ स्वेत वसना, ललित रसना, दडिम-दसना, उज्जवला।
कलहंस करती, फरर फरती, तिमिर हरती, निर्मला।
सिर मुकुट सुंदर, हार गल वर, माल मनहर कर अति।
प्रिय पुस्तपाणि, वाक-वाणी, वीण पाणी, सरसती।।१[…]

» Read more

बीरवड़ी वंदना

छंद सारसी
अन्नपूर आई चक्खड़ाई, तूं सदाई सेवियां।
बातां बधाई बह बडाई, दख सवाई देवियां।
नरपत नमाई इम अथाई, पहुम बाई परवड़ी।
निज सुजस जाहर चढै नाहर, बणै वाहर बिरवड़ी।। 1 […]

» Read more

राधा रमण देव स्तुति

।।छंद सारसी/हरिगीतिका।।
जेहि नाम आधा, गयँद साधा, जल अगाधा, अंतरे।
जब जूड खाधा, करी हाधा, शरण लाधा, अनुसरे।
मिट गई उपाधा, चैन बाधा, बंध दाधा, धा करी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा, श्रीहरी।।1

वसुदेव द्वारे, देह धारे, भार टारे, भोमके।
सुरकाज सारे, संत तारे, द्वैषी मारै, होम के।
सुरपति हँकारे, मेघ बारै, ब्रज उगारै, गिरधरी।
जय रमणराधा, मित्र माधा, हरण बाधा श्रीहरी।।2[…]

» Read more

काली रूप आवड वंदना

छंद सारसी
क्रां भद्रकाळी, क्रीं कृपाळी, क्रूं कराली, कालिका।
मां मुण्डमाळी, डं डमाली, वपु विशाळी, ज्वालिका।
जय जगतपाली, वृद्ध बाली वेश भाळी मावडा।
काली कराली, वदन वाली, अस्थिमाली, आवडा॥1
समसान वासी, अट्टहासी, वपुअमासी, कज्जला।
प्रति पल पिपासी, पुंज राशी, भव्य भासी, चप्पला॥
मेटो उदासी, हिये वासी, फँस्यौ फासी, डावडा।
काली कराली, वदन वाळी, अस्थि माळी, आवडा॥2 […]

» Read more

बिरवडी जी रा छंद – कवि कानदासजी

॥छंद सारसी (हरिगीत)॥
दांतां बतीसां सौत जाई, लिया दांत सु लोहरा।
अचरज्ज दरशण हुऔ अंबा, मिट्या वादळ मोहरा।
पख दोय पूरी शगत सूरी,पिता हुकम पर वडी।
नित वळां अन वळ दियण नरही, वळां पूरण वरवडी॥ 1 ॥

नव लाख घोडे चढै नवघण, सूमरां घर सल्लडै।
सर सात खळभळ, शेष सळवळ, चार चकधर चल्लडै।
इण रुप चढियो सिंध धरपर इळा रज अंबर अडी।
नित वळां अन वळ दियण नरही, वळां पूरण वरवडी॥ 2 ॥ […]

» Read more

चंदू माजी रा छंद

।।छंद – सारसी।।
पीसण उथालण संत पाल़ण, भीर हालण भाणवां।
सालम सालण वसू वाल़ण, जग उजाल़ण जाणवा।
सेव्यां संभाल़ण चाड चालण, दुख दाल़ण दीसरी।
किरपाज सिंधू कर अणंदू आद चंदू ईसरी।।१[…]

» Read more
1 2