भर्तुहरी कृत नीति शतक का राजस्थानी पधानुवाद
दिसा काल पूरण दिपै, अनुभव घट आनन्द|
लख्यौ अलख नें भरथरी, नमो सच्चिदानंद||१
समझ जाय ना- समझ ही, समझै समझण हार|
ब्रह्मा गुरू व्है भरतरी, समझै मूढ न सार||२
जडता हर चित साच भर, मान बढे हर पाप|
भरतरी कीरत लोक में, फल सतसंग प्रताप||३
जय रस सिध्ध कविसरां, दिव्य जोत दरसाय|
मरियां भरतरी आप रो, जस तन जुगां न जाय||४ […]