करै भळायां काज
जिण नवघण जिमाडियो,बाई दळां बळाज।
वा अनपूरण बिरवडा,मेहाई महराज॥153
भाले नवघण रे भली ,बाई रही बिराज।
सुगनचिडी बण मां स्वयं,मेहाई महराज॥154
भावनगर रा भूप रा,किया मात घण काज।
खोडल मां खुद है स्वयं,मेहाई महराज॥155 […]
Charan Community Portal
जिण नवघण जिमाडियो,बाई दळां बळाज।
वा अनपूरण बिरवडा,मेहाई महराज॥153
भाले नवघण रे भली ,बाई रही बिराज।
सुगनचिडी बण मां स्वयं,मेहाई महराज॥154
भावनगर रा भूप रा,किया मात घण काज।
खोडल मां खुद है स्वयं,मेहाई महराज॥155 […]
शतक बणे वा सतसई,ललित लेखणी काज।
सुरसत खुद भेजी स्वयं,मेहाई महराज॥ 105
शतक बणै वा सतसई,उणरी नी परवा ज।
म्है बस चाहूँ बोलणो,मेहाई महराज॥ 106
थळ जळ अर पातळ तथा,अतळ वितळ अधिराज।
सृष्टि सकळ संचालिका,मेहाई महराज॥ 107 […]
गुरुवर गणपत औ गिरा,म्हारी थूं सब मां ज।
इणसूं वंदन आपनें,मेहाई महराज॥1
एक रदन अर गज बदन,ह्रदय सदन मँह राज।
आखर लिखणा अंब रा,मेहाई महराज॥2
क्यूं गणपत वंदन करूं,जिणरी पण थूं मां ज।
गौरी रुप गिरिजा स्वयं,मेहाई महराज॥3 […]
गणाध्यक्ष गण राज रो, गमियो मूषक राज।
तद तव मंदिर आविया,मेहाई महराज॥97
कोई उणनें जद कह्यो,मूषक उठै घणाज।
देशाणै रे देवळे,”मेहाई महराज॥98
उछळ कूदता ऊंदरा,गजब देख गणराज।
मन मूंझ्या वां पण कह्यौ,”मेहाई महराज॥”99 […]
वरदे वीणा वादनी, बसजै ह्रदय विशाळ।
कीरत आई री कथूं, मां मोगल मछराळ।।१
समद समीपां सोहती, बीस भुजी विकराळ।
तनें नमन तारण तरण, मां मोगल मछराळ।।२
ओखा री आणंद घन, वंदन बीस भुजाळ।
सबळ निबळ री स्वामिनी, मां मोगल मछराळ।।३
साद सुणंता शंकरी, तीजी आवै ताळ।
झटप बाज जिम जोगणी, मां मोगल मछराळ।।४[…]
गीर रा गाढ ओरण रे माय एक वळे जगह है जिण रो नाम नाळियेरी नेस/नाळेरीनेस है जठे आवड जी महाराज मढ में बिराजियोडा है। वन पशु पंखेरू अर प्राणी मात्र नें मां आवड अनपूरण रे ज्यूं प्रकृति रे अनुपम अखैपातर सूं केर , करमदा बोर, जांबु, केरी, चीकू, केळा रो नित भोजन करावै। माता रो रसोडो अणखूट है किणी नें मा निराश नी करे। प्रकृति री इण अनुपम भेट ने आधार बणायर म्है ओ बात नें कविता मे केवण री कोशिश करी है कि आप अगर तर्क री दीठ सूं प्हैला शगती अवतरण रा मिथक ने देख अर राव शेखा […]
» Read moreगीर रा जंगल रे माय एक जगह है जठे आवड जी महाराज रो मढ है। जंगल अर झाडी इतरी गाढी है के सूरज री किरणां धरती पर दीसै नी। म्है उण बात ने आवडजी महाराज री पुराणी मिथक कथा सूं प्रकृति रे सागै समन्वित करी। अगर किणी आदमी रे मन में इण बाबत री कोई शंका कुशंका वा तर्क हुवै तो वै लीलापाणीनेस जाय ने जंगल री झाडी देख सके जठै आज भी आवड जी महाराज प्रकृति री वनराजि री अनुपम लोवडी/भेळियो ओढर आज भी रोज सूरज नारायण ने साक्षात रोक रह्या है। दोहौ इण तरह सूं है। मन शंको […]
» Read moreकाळे डूंगर राय रे, नित मढ बजै नगाड।
गरजै घन जाणक गगन,आवत मास असाढ॥129
काळे डूंगर राय है,भाखर री भूपाळ।
सात बहन सँग ब्राजिया,खेलत खेतरपाळ॥130
कमळ दळां आसन करै, आवड मावड आप।
काळै डूंगर राय मढ,बैठा थें मां बाप॥131 […]
जद आवड जी महाराज री मन में कल्पना आवै तद मन कृष्ण रे विराट रूप ज्यू उण री कल्पना करे अर एक अनंत चितराम खडो हुवै। मां नें आपे विराट वपु धारणी चारणी जगतारणी कह सकां। उणमें छपन क्रोड चामुंड नव लख लोवडियाळ अर चौरासी चारणी रो एकीकृत अवतार समझ सकां। गर छपन क्रोड नवलाख अर चौरासी वपु धारणी आवड मां आप रा उतरा मुख सूं मां सुभाषीष देवै। उणसूं दुगणी आंख सूं पुरा जगत रा चराचर जीव ने देख सके।उण सूं बीस गुणा हाथ (बीस हथी) सूं सबने आसीस दे सके अर उण री सब आंगळी सूं जगत रा […]
» Read moreगांव खांण रे गुंदरे, बैठी मां बिरदाळ।
आवड आंबलियाळ, जुग जुग जूनी जोगणी॥49
रखवाळी निश दिन करै, कर पकडै किरमाळ।
डोकरडी डाढाळ, गाढाळी गढवी तणी॥50
आया जिण दिन आसिया,लाखणथूंब ज छोड।
आवड मढ थाप्यौ उ दिन,कर कर मन मँह कोड॥51 […]