ईसरदासजी रो जस वखांण – मीठा मीर डभाल

दाखूं ईशरदास रा, जस आखर जगदीश।।१।।
हेक दास हिंगळाज रो, करे गयो औ कौल।
आप तणै घर आवसूं, बारठ सुणैह बोल।।२।।
सूरै बारठ सांभळे, विध मन कियो विचार।
जरूर मों घर जनमसी, अबै लेय अवतार।।३।।
गिरी हिम्म तन गाळयो, अडग करे मन आस।
जनम लेय हैं जावणो, वा सूरा रे वास।।४।।
सूरा घर जन्मयो सतन, धिन अवतार धरैह।
ईसर नाम दिनो अवस, कोडे हरख करैह।।५।।[…]

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प्रतापसिंह बारहठ प्रशस्ति – ठा. उम्मेदसिंह जी धोल़ी “ऊम”

अमर कविराज आपही, भारत अम्मर भाल।
अमर आप चेतावणी, अमर राण फतमाल।।1।।

अंगरेजां सु डरियो नह, शुत्रुवां रो उरसाल।
भारत मा रो लाडलो, खरवा रो गोपाल।।2।।

जोड़ बारठ राव जबर, भारत अजादि धार।
संगठन बण्यो सूरमा, भारत रा जूंझार।।3।।

कर्जन दल्ली दरबार हि, अंगरेजां री शान।
भूप उदेपर ढाबतां, मिटेज यां रो मान।।4।।

रांण उदेपर रामजी, जांणे बंशज हांन।
भेळा दरबार न मिले, (तो) फिकि अंगरेजां शान।।5।।[…]

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खोटे सन्तां रो खुलासो – जनकवि ऊमरदान लाळस

।।दोहा।।
बांम बांम बकता बहै, दांम दांम चित देत।
गांम गांम नांखै गिंडक, रांम नांम में रेत।।1।।

।।छप्पय।।
अै मिळतांई अेंठ, झूंठ परसाद झिलावै।
कुळ में घाले कळह, माजनौ धूड़ मिलावै।
कहै बडेरां कुत्ता, देव करणी नें दाखण।
ऊठ सँवेरे अधम, मोड चर जावै माखण।
मुख रांम रांम करज्यो मती, म्हांरो कह्यो न मेटज्यो।
चारणां वरण साधां चरण, भूल कदे मत भेटज्यो।।2।।[…]

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करन्यास – जनकवि ऊमरदान लाळस

करन्यास
(दोहा)
कौडी बिन कीमत नहीं, सगा न राखै साथ।
हाजर नांणौं हाथ में, बैरी बूझै बात।।
ओऽम् वाक् वाक्।।1।।

दाळद घर दोळौ हुवै, परणि न आवै पास।
रुपिया होवै रोकड़ा, सोरा आवै सास।।
ओऽम् प्राण: प्राण:।।2।।

कळजुग में कळदार बिन, भायां पड़िया भेव।
जिण घर माया जोर में, दरसण आवै देव।।
ओऽम् चक्षुः चक्षुः।।3।।[…]

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जेखल सुजस जड़ाव – मोडूदानजी आशिया

कविराजा बांकीदासजी नें कच्छ-भुज के प्रसिध्द दानवीर जेहा भाराणी की स्मृति में एक रचना “जेहल जस जड़ाव” 102 दोहों की बनाई थी। उसी में मिलते शीर्षक की रचना कवि मोडजी आशिया ने की थी “जेखल सुजस जड़ाव”। इसमें वीरता के प्रतीक सिंह, सुअर, वृषभ, नाग आदि बताए गए हैं। कवि आशियाजी के अनुसार वाराह, सिंह से भी अधिक पराक्रमी और वीर होता है। इसलिए आशियाजी नें सुअर को नायक बनाकर रचना की है। वाराह, डाढाऴो, जेखल कवल, दात्रड़िलाऴ, ऐकल, गिड़, सूर, सावज इत्यादि सुअर के पर्यायवाची डिंगऴ शब्द हैं। कुल पचास दोहों की इस वीररसात्मक रचना में काव्य-कृति का प्रारम्भ वाराह अवतार द्वारा पृथ्वी को अपनी दाढ (दांतऴी) पर उठाये जाने के पौराणिक प्रसंग से किया गया है।[…]

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डिगऴ में मर्यादा रौ मांडण

राजस्थानी रा साहित में मर्यादा रो आछो मंडण, विशेषकर चारण साहित में घणों सखरो अर सोहणो हुयो है। जीवण री गहराई ने समझ परख अर ऊंचाई पर थापित करणे री मर्यादावाँ कायम करी गई है। इण मर्यादा रे पाण ही माणस समाज संगठित अर सुव्यवस्थित रैय र आपरी खिमता अर शक्ति में उतरोतर बढाव करियो है। चारण कवेसरां कदैई नीति रो मारग नी छोडियो है, अर नीतिबिहूणा जीवण ने पाट तोड़ बिगाड़ करण हाऴी नदी रै कूंतै मानियो है, इण भाव रो दोहो निजरां पैश है।

।।दोहा।।
तोड़ नदी मत नीर तूं, जे जऴ खारौ थाय।
पांणी बहसी च्यार दिन, अवगुण जुगां न जाय।[…]

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झालामान शतक – नाथूसिंह जी महियारिया

नाथूसिंहजी महियारिया रचित झालामान शतक सर कोटि री उंचे दरजे री बेजोड़ रचना है, जिण कृति में सादड़ी (मेवाड़) रै राजराणा झाला मानसिंह जी रै उद्भट शौर्य, अदम्य साहस अर सूरापण, अर बिना सुवारथ बऴिदान रो बड़ो बर्णन करियो है। हऴ्दीघाटी री लड़ाई रो बड़ वीर नायक झालामान आप रै प्राणा नै निछावर कर आपरा धणी महाराणा रा प्राण बचाय इतियास मं अखीजस खाटियो।
हेक मान मुगलांण दिस, हेक मान हिंदवाण।
कूरम गज हौदे रह्यो, सुरग गयो मकवांण।।[…]

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पदमण सुजस प्रकास

पापी के खपिया प्रिथी, विटळा केक विनास।
जस धिन दूणो जगमगै, पदमण तणो प्रकास।।

जिण झाळां री झाट सूं, खपियो खिलजी खास।
प्रिथमी सारी पसरियो, पदमण सुजस प्रकास।।

सत उर में साहस सधर, जबर वर्यो जसवास।
सांम नांम स्वाभिमान रो, पदमण तणो प्रकास।।

आय अलाऊदीन ऊ, निसचै हुवो निरास।
वर अगनी कीधो वसू, पदमण सुजस प्रकास।।[…]

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चित्तौड़ का साका और राव जयमलजी – राजेंन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा-सीकर)

जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी के पुत्र दूदाजी के वंश के जयमलजी मेड़तिया युध्द विद्या में प्रवीण विसारध हुए जो प्रतापी राव मालदेव से अनेक युध्द करके उनके हमलों व अत्याचारों से तंग आकर मेड़ता छोड़कर उदयपुर महाराणा उदयसिंहजी की सेवा में चले गए एवं वहां पर अपनी शौर्य वीरता दिखाकर स्वर्णिम इतिहास में नाम कायम कर दिया। आज भी यदा कदा चित्तौड़ की वीरता की गाथाओं के साथ जयमलजी का नाम जरूर आता है।

जयमलजी वीर के साथ साथ भगवान चारभुजा नाथ के बहुत बड़े भक्त भी थे। भक्तमाल मे भी उनका वर्णन आता है किः…..

जै जै जैमल भूप के,
समर सिध्दता हरी करी।।
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मेड़ता आदि मरूधर धरा,
अंस वंस पावन करियौ।
जयमल परचै भगत को,
इन जन गुन उर विस्तरियो।।

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नवदुर्गा वंदना – कवि स्व. अजयदान जी लखदान जी रोहड़िया मलावा

शैलपुत्री जय शिवप्रिया, प्रणतपालिनी पाहि।
निज अपत्य टेरत तुझे, त्राहि त्राहि मां त्राहि।।१
जयति जयति ब्रह्मचारिणी, बीज सरूपिणी बानि।
विषम समय पर राखिये, प्रियजन के सिर पानि।।२
चारू चंद्र घंटा सुमति, प्रणति देहु कर प्रीति।
भवभय भंजनी भंजिए, ईति, भीति अनीति।।३
कुषुमांडा बिनती करत, सेवक करहु सुयोग।
कल्याणी अरु काटिये, कल्मष, कष्ट, कुयोग।।४[…]

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