परंपरा-पच्चीसी

चारणां में रतनू चावी जात है, जिणरो उद्गम पुष्करणां बांमणां री पुरोहित शाखा सूं होयो। तरणोट रै राजकुमार देवराजजी नैं बिखमी में शरण देवण अर उणांरै भेल़ै भोजन करण सूं बामणां रतनैजी नै त्याग दिया। कालांतर में देवराजजी शासन थापियो जद रतनैजी नैं आपरा मोटा भाई मान अणहद सम्मान दियो। चारण बणाय आपरा पोल बारहठ बणाया। इणी रतनैजी री संतति चारणां में रतनू चारण है। रतनैजी रै पिताजी वासुदेवायतजी सूं लेयर फगत म्हारै (गिरधर दान रतनू दासोड़ी) वडेरां रो अर म्हारै तक रो प्रमाणिक विवरण आप तक पूगाय रैयो हूं। लंबी कविता भेजण सारु आंगूच माफी।

।।परंपरा-पच्चीसी।।
वीसोतर चारण वसू, विद्याधर विदवान।
ज्यां में रतनू जात इक, रसा गुजर रजथान।।1
सामधरमी सतवादिया, दिपिया के दातार।
भगत केक धरती भया, जबर कई जोधार।।2[…]

» Read more

पोकरण प्रशंसा पच्चीसी

सदन भलै रै संकरी, उपनी देवल आय।
पोकण आ पिछमांण में, वसू पेख वरदाय।।1
संडायच भलिये सदन, करणी ऊजळ कोम।
जनमी देवल जोगणी, भल पोढी री भोम।।2
वंसी मेघां मे बेगड़ा, धरी मात धणियाप।
कारू समरथ यूं किया, अवनी निज री आप।।3
महिपत गड़सी माड रो, पडियो आयर पाय।
मन तन पीड़ा मेटदी, महर करी महमाय।।4[…]

» Read more

आज उडाए बाज

व्यर्थ न अब बैठे रहो,बनकर यारों बुद्ध।
सुख शांति सौहार्द को, यवन करे अवरूद्ध।।१
अमन चैन की बात कर, चलते चाल विरूद्ध।
उनको देने दंड अब, करें न क्यों हम युद्ध।।२
हाथों में गांडीव धर,अर्जुन है तैयार।
आज कृष्ण पर मौन क्यों,महा समर को यार।।३

» Read more

तरस मिटाणी तीज!

हड़हड़ती हँसती हरस, तरस मिटाणी तीज।
हरदिस में हरयाल़ियां, भोम गई सह भीज।
भल तूं लायो भादवा, तरस मिटाणी तीज।।
भैंसड़ियां सुरभ्यां भली, पसमां घिरी पतीज।
मह थल़ बैवै मछरती, तकड़ी भादव तीज।।
सदा सुहागण सरस मन, धन उर राखै धीज।[…]

» Read more

क्रोड नमन किरमाल़

खल़ पर खीजै खार कर, खय करवा खुंखार।
भय हरणी रण रंजणी, तनें नमन तलवार।।१
अशरणशरणी अंबिका, हुई सदा रह हाथ।
रे!रणचंडी रीझजै, मनसुध नामूं माथ।।२
धावड बण बिच ध्रागडै, सूरां रखै संभाल़।
रणचंडी! खंडी खल़ां, , करूं नमन किरमाल़।।३[…]

» Read more

चारण जिकी अमोलख चीज

।।चारण उत्तम चीज।।
उत्तम कुल़ देख्यो अवन, चारण धारण चाय।
सगत हींगल़ा सांपरत, सदन प्रगट सुरराय।।1
करणी जन कलियाण कज, सरब हरण संताप।
चंडी जद घर चारणां, आई आवड़ आप।।2
पर्यावरण पशु प्रेम पुनी, जात सरब सम जाण।
भरण भाव प्रगटी भली, कुल़ चारण किनियाण।।3[…]

» Read more

गोख खडी छै गोरडी

चंदा थारी चांदणी, कीकर पडगी मंद?
गोख खडी छै गोरडी, निरखण नें नँद नंद।।१
अली !कली सूं आज कल, रहे न क्यूं रति रंग?
राधा मिसरी री डल़ी, चली श्याम रै संग।२

» Read more

रंगमाल़ सूं कीं दूहा

विघन विडारण वड वदन, अपण सदन उछरंग।
आद गणेशा आपनैं, रेणव आखै रंग।।1
कारज सिग करणो कठण, हरणो विघन हमेस।
इण कारण ईसर तणा, गहरा रंग खणेस।।
आद सुजस आखै इटल़, साच मनां कव सेव।
वीण धरण हंस वाहणी, सरसत रंग सदैव।।

» Read more

माण मिटाणा मीत

बाजै देखो वायरो, लाज उडावण लीक।
रलकीज्या ऐ रेत में, ठाठ वडां रा ठीक।।1
मरट वडां रो मेटियो, समै किया इकसार।
भरम अबै तो भायलां, लेस न रैयो लिगार।।2
कठै गयो वो कायदो, कठै गई वा काण।
फट्ट मिल़ै कीं फायदो, वीरां! पड़गी बाण।।3 […]

» Read more

मनहर नाचै मोर

वादल़िया वल़िया थल़ी, सधरा घुरै सजोर।
छटा अनोखी निरख छिब, मधरा बोलै मोर।।1
आयो सुरपत उमँगियो, काल़ी कांठल़ कोर।
ढब सज लाडो ढेल रो, मनभर नाचै मोर।।2
उमँग्यो मास असाढ में, तण तण वासव तोर।
जबर सवागत जेणरी, मनसुध सजियो मोर।।3 […]

» Read more
1 7 8 9 10 11 19