राजिया रा दूहा – कृपाराम जी बारहट (खिड़िया)

नीति सम्बन्धी राजस्थानी सौरठों में “राजिया रा सौरठा” सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है| भाषा और भाव दोनों द्रष्टि से इनके समक्ष अन्य कोई दोहा संग्रह नही ठहरता| संबोधन काव्य के रूप में शायद यह पहली रचना है| इन सारगर्भित सौरठों के भावों, कारीगरी और कीर्ति से प्रभावित हो जोधपुर के तत्कालीन विद्वान् महाराजा मान सिंह जी ने उस सेवक राजिया को देखने हेतु आदर सहित अपने दरबार में बुलाया और उसके भाग्य की तारीफ करते हुए ख़ुद सौरठा बना भरे दरबार में सुनाया —-

सोनै री सांजांह जड़िया नग-कण सूं जिके |
कीनो कवराजांह, राजां मालम राजिया ||
अर्थात हे राजिया ! सोने के आभूषणों में रत्नों के जड़ाव की तरह ये सौरठे रच कर कविराजा ने तुझे राजाओं तक में प्रख्यात कर दिया |[…]

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हरिरस (भक्त कवि महात्मा ईसरदास प्रणीत)

।।मंगलाचरण।।
पहलो नाम प्रमेश रो जिण जग मंड्यो जोय !
नर मूरख समझे नहीं, हरी करे सो होय।।१

!! छंद गाथा !!
ऐळेंही हरि नाम, जाण अजाण जपे जे जिव्हा !
शास्त्र वेद पुराण, सर्व महीं त‍त् अक्षर सारम्।।२

!! छंद अनुष्टुप !!
केशव: क्लेशनाशाय्, दु:ख नाशाय माधव !
नृहरि: पापनाशाय, मोक्षदाता जनार्दनः।।३[…]

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देवियांण (भक्त कवि महात्मा ईसरदास प्रणीत)

( छंद अडल )
करता हरता श्रीं ह्रींकारी, काली कालरयण कौमारी
ससिसेखरा सिधेसर नारी, जग नीमवण जयो जडधारी….१
धवा धवळगर धव धू धवळा, क्रसना कुबजा कचत्री कमळा
चलाचला चामुंडा चपला, विकटा विकट भू बाला विमला….२
सुभगा सिवा जया श्री अम्बा, परिया परंपार पालम्बा
पिसाचणि साकणि प्रतिबम्बा, अथ आराधिजे अवलंबा….३[…]

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