नीं लागै अठै कोई तीज!

अजै तो नीं आई
आधुनिकता री आंधी!
ओ तो फगत दोटो है
आधुनिकता रो!
जिणमें ई आपांरी जड़ां
जोखमीजर उखड़गी!
तो पछै कीकर झालांला?
अरड़ाट देती वा आकरी आंधी!
आपांनैं तो इण दोटै ई
चाढ दिया टोरै!
भमा दिया भोगना!
नाख दी आंख्यां में धूड़
अर
कर दिया चितबगना