भांजण भीड़ भगतन री – करनीजी री चिरजा

भांजण भीड़ भगतन री मदत सजै मेहाई।।टेर।।
पड़तां कूप कारीगर कूक्यो
साद सुणै सुरराई
सांधो दियो बरत रै सगती
बोगी बण बरदाई।।१
भांजण भीड़ भगतन री मदत सजै मेहाई।।[…]
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भांजण भीड़ भगतन री मदत सजै मेहाई।।टेर।।
पड़तां कूप कारीगर कूक्यो
साद सुणै सुरराई
सांधो दियो बरत रै सगती
बोगी बण बरदाई।।१
भांजण भीड़ भगतन री मदत सजै मेहाई।।[…]
।। छन्द – नाराच।।
नमो अनन्द कन्द अम्ब, मात मैह नन्दिनी।
निकन्द फन्द दास द्वन्द, विश्व सर्व वन्दिनी।।
कृपा निधाण किन्नियांण, बीस पाण धारणी।
नमौ धिराण दैशणोक, तीन लौक तारणी।।
माँ, सर्व काज सारणी।।१।।[…]
वेदां मह ढील रती नह वरनी।
धाबलयाल़ रही दिसी धरनी।
वीदग बेल थई वीसरनी।
किण दिस गई हमरकै करनी।।
आप तणी म्हारै अवलम्बा।
आवे मनमें घणा अचम्बा।
ईहग कूक सुणी नह अम्बा।
बोल़ी हुय बैठी जगतम्बा।।[…]
।।छंद-मोतीदाम।।
रटूं दिन रात जपूं तुझ जाप,
अरूं कुण नाद सुणै बिन आप।
नहीं कछु हाथ करै किह जीव,
सजीव सजीव सजीव सजीव।।१।।
लियां तुझ नाम मिटै सब पीर,
पड़ी मझ नाव लगै झट तीर।
तरै तरणीह कियां तुझ याद,
मृजाद मृजाद मृजाद मृजाद।।२।।[…]
।।छंद – रोमकंद।।
जब मानव जट्टीय कुड़ कपट्टीय, काम निपट्टीय नीच करै।
मरजाद सुमट्टीय लोकन लुट्टीय, पाप प्रगट्टीय भुम परे।
कय आपस कट्टीय वारन वट्टीय, देख दुषटिय लोक डरयो।
करणी जग कारण पाप प्रजारण, धर्म वधारण रुप धरयो।
देवी धिय सुधारण रुप धरयो।।1।।[…]
।।गीत – साणौर।।
धिनो धाबळा-धारणी करनला धिराणी,
धिनो देसाणपत धजा धारी।
अवन पर अवतर्या उबारण सेवगां,
मावड़ी मदद कर हमें म्हारी।।
जानकी तणी अरदास सुण जकी तूं,
थकी नां समंदां पार थाई।
पाहनां तणां पुळ तिराया तोय पै,
अम्बिका राम रै मदद आई।।[…]
आजकल किसी चमत्कार की बात लिखते हुए ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि लोग अंधविश्वासी घोषित करते हुए जेज नहीं करते !! कुछ हद तक यह बात सही भी है कि आजकल स्वार्थी लोग मनगढ़ंत बातों को प्रचार का सहारा लेकर प्रसारित कर दुकानदारी चलातें हैं।
मैं आपसे उन लोगों के संस्मरण साझा कर रहा हूं जिनके हृदय में अगाध आस्था और भक्ति की भागीरथी प्रवाहित होती थी।
मेरे दादोसा (गणेशदानजी रतनू) का ननिहाल सुवाप था। वे अपने ननिहाल का एक संस्मरण सुनाते थे कि सुवाप में जंवारजी किनिया थे। उनके एक ही पुत्र था। पुत्र जवान हुआ और एक दिन दोपहर को अकस्मात काल कवलित हो गया। लोगबाग अर्थी बनाने लगे तो जंवारजी ने दृढ़ता से मना कर दिया और कहा कि “भूवा अवस हेलो सुणसी।”[…]
जंगल़ थप थांन विराजै जांमण
देवी आप देसांणै।
द्रढकर राज बैठायो दाता,
बीको पाट बीकांणै।।1
अरजन विजै जांगलू आख्यो,
चारण जोड चरावै।
धारै नाय रोफ धणियां रो,
करनी हांण करावै।।2
चरती धेन जोड में चारो,
मन व्रदावन मांनै।
आयो दुसट बैठ अस आसण,
करी दूठ तंग कांनै।।3[…]