काळ – कवि रेवतदान जी चारण “कल्पित”

आभै ऊपर भमै गिरजड़ा चिलां उड़ती जाय
पग पग ऊपर ल्हास मिनख री कुत्ता माटी खाय
लूट डकैती खून चोरियां लाय लगी तो झालौझाळ
भूख भचीडा फिरै खावती नाचै झूमै सौ सौ ताळ
सुगन चिड़ी सूरज नै पूछ्यो गिरजा नै पूछ्यो कंकाळ
धोरां नै पूछै रुखड़ला ल्हासां नै अगनी री झाळ
क्यूं मौत री मरजी माथै जीवण री पड़गी हड़ताळ
हिरणी बोली रया करै कंई रखवालां रौ पडग्यो काळ[…]