अपभ्रंश साहित्य में वीररस रा व्हाला दाखला

आचार्य हेमचंद्र आपरी व्याकरण पोथी में अपभ्रंश रा मोकळा दूहा दाखलै सरूप दिया है। आं दूहाँ में वीर रस रा व्हाला दाखला पाठक नै बरबस बाँधण री खिमता राखै।आँ दूहाँ रो सबसूं उटीपो पख है -पत्नियां रो गरब। आपरै पतियां रै वीरत री कीरत रा कसीदा काढ़ती अै सहज गरबीली वीरबानियां दर्पभरी इसी-इसी उकतियां री जुगत जचावै कै पाठक अेक-अेक उकत पर पोमीजण लागै। ओ इसो निकेवळो काव्य है, जिणमें मुरदां में नया प्राण फूंकण री खिमता है।

आप-आपरै वीर जोधार पतियां री बधतायां गिणावती वीरबानियां में सूं अेक बोलै-“हे सखी! म्हारो सायबो इण भांत रो सूरमो है कै जद बो आपरै दळ नैं टूटतो अर बैरी-दळ नैं आगै बढतो देखै तो चौगणै उछाह रै साथै उणरी तलवार तण उठै अर निरासा रै अंधकार नैं चीरती ससीरेख दाईं पिसणां रा प्राण हर हरख मनावै-
भग्गिउ देक्खिवि निअअ वलु, वलु पसरिअउ परस्सु।
उम्मिल्लइ ससिरेह जिंव, करि करवालु पियस्सु।।[…]

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हालाँ झालाँ रा कुँडळिया – ईसरदास जी बारहट

हालाँ झालाँ रा कुँडळिया” ईसरदास जी की सर्वोत्कृष्ट कृति है। यह डिंगल भाषा के सर्वश्रेष्ट ग्रंथों में से है। अपने कवि धर्म का पालन करने के लिए भक्तवर व भक्ति काव्य के प्रधान कवि इसरदास जी को इस वीर रस के काव्य का सर्जन क्यों करना पडा इसके पीछे निम्नलिखित किंवदंती प्रसिद्ध है।

एक बार हलवद नरेश झाला रायसिंह ध्रोळ राज्य के ठाकुर हाला जसाजी से मिलने के लिए ध्रोळ गये। ये उनके भानजे होते थे। एक दिन दोनों बैठकर चौपड़ खेलने लगे। इतने में कहीं से नगाड़े की आवाज इनके कानों में पड़ी। सुनकर जसाजी क्रोध से झल्ला उठे और बोले – “यह ऐसा कौन जोरावर है जो मेरे गांव की सीमा में नगाड़ा बजा रहा है” फौरन नौकर को भेजकर पता लगवाया गया।[…]

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म्हनै कांचल़ी रा मांगिया पांच वरस दे!!

आपां मध्यकाल़ रै राजस्थान नै पढां कै सुणां तो ऐड़ै-ऐड़ै पात्रां सूं ओल़खाण होवै जिकै फखत आपरी बात रै सारू ई जीया अर बात सारू ई मरिया। बीजी भांगघड़त में उणां रो कोई विश्वास ई नीं हो।
भलांई आपां जैड़ा आजरा तथाकथित समझणा उणां री इण प्रतिबद्धता नै खाली सनक कै कालाई समझता होसी पण उणां सारू वा बात फखत सहज ही। इयां तो राजस्थानी कवियां ई आ बात मानी है कै दैणो, मरणो अर मारणो जैड़ा तीन काम समझणां सूं पार नीं पड़ै ऐ तो नाम राखण सारू काला ई कर सकै-

नर सैणां सूं व्है नहीं, निपट अनौखा नाम।
दैणा मरणा मारणा, कालां हंदा काम।।

ऐड़ी ई एक बात है लोहियाणा रै कुंवर नरपाल देवल री।[…]

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प्रतापसिंह बारहठ प्रशस्ति – ठा. उम्मेदसिंह जी धोल़ी “ऊम”

अमर कविराज आपही, भारत अम्मर भाल।
अमर आप चेतावणी, अमर राण फतमाल।।1।।

अंगरेजां सु डरियो नह, शुत्रुवां रो उरसाल।
भारत मा रो लाडलो, खरवा रो गोपाल।।2।।

जोड़ बारठ राव जबर, भारत अजादि धार।
संगठन बण्यो सूरमा, भारत रा जूंझार।।3।।

कर्जन दल्ली दरबार हि, अंगरेजां री शान।
भूप उदेपर ढाबतां, मिटेज यां रो मान।।4।।

रांण उदेपर रामजी, जांणे बंशज हांन।
भेळा दरबार न मिले, (तो) फिकि अंगरेजां शान।।5।।[…]

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अठै ! कै उठै !!

जोधपुर राव मालदेवजी भायां नै दबावण री नीत सूं मेड़ता रै राव जयमलजी नै घणो दुख दियो। जयमलजी ई वीर अर भक्त हृदय राजपूत हा, उणां सदैव इण आतंक रै डंक नै अबीह होय झालियो।
मेड़ता माथै राव मालदेवजी आक्रमण कियो, उण बखत जयमलजी रा भाई चांदाजी मेड़तिया ई मालदेवजी रै साथै हा। उणां, उण बखत किनारो ले लियो जिणसूं मालदेवजी नै थोड़ो शक होयो। मेड़तिया ऐड़ा भिड़िया कै जोधपुर रा पग छूटग्या। नाठतां आपरो नगारो ई पांतरग्या। जिणनै जयमलजी सनमान सैती आपरै भांभी साथै लारै सूं पूगतो कियो। गांम लांबिया कनै जावतां उण भांभी रै मन में आई कै एकर नगारै माथै डाको देय देखूं तो सरी कै बाजै कैड़ोक है!![…]

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काश हम भी प्रताप बने होते – “रुचिर”

मुझसे उसने पूछा होता,
मैं मस्तक पर तिलक लगाती।
घोड़ी पर बिठलाकर उसका,
चुम्बन लेती विदा कराती।
पर वह स्वतन्त्रता का राही माँ से चुप चुप चला गया।
बिन पूछे ही चला गया।।[…]

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जेखल सुजस जड़ाव – मोडूदानजी आशिया

कविराजा बांकीदासजी नें कच्छ-भुज के प्रसिध्द दानवीर जेहा भाराणी की स्मृति में एक रचना “जेहल जस जड़ाव” 102 दोहों की बनाई थी। उसी में मिलते शीर्षक की रचना कवि मोडजी आशिया ने की थी “जेखल सुजस जड़ाव”। इसमें वीरता के प्रतीक सिंह, सुअर, वृषभ, नाग आदि बताए गए हैं। कवि आशियाजी के अनुसार वाराह, सिंह से भी अधिक पराक्रमी और वीर होता है। इसलिए आशियाजी नें सुअर को नायक बनाकर रचना की है। वाराह, डाढाऴो, जेखल कवल, दात्रड़िलाऴ, ऐकल, गिड़, सूर, सावज इत्यादि सुअर के पर्यायवाची डिंगऴ शब्द हैं। कुल पचास दोहों की इस वीररसात्मक रचना में काव्य-कृति का प्रारम्भ वाराह अवतार द्वारा पृथ्वी को अपनी दाढ (दांतऴी) पर उठाये जाने के पौराणिक प्रसंग से किया गया है।[…]

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शहीद दलपतसिंह शेखावत

जोधपुर रियासत रा देसूरी परगना रा देवली गांव रा शेखावत हरजीसिंह जी, महाराजा साब जसवंतसिंहजी अर सर प्रताप रा घणा मर्जींदान मिनख हा। आप आपरै जीवन रो घणो समय आं सर प्रताप रै साथै रावऴी सेवा में ही बितायो। आं हरजीसिंहजी रे दो बेटा मोभी दलपत सिंहजी अर छोटा जगतसिंहजी हां। हरजीसिंह जी री असामयक मौत हुवण रै बाद दोनां भाईयां री पढाई भणाई रो बंदोबस्त सर प्रताप करियो अर दलपत सिंह जी मेजर जनरल रा पद पर आसीन हुवा।[…]

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झालामान शतक – नाथूसिंह जी महियारिया

नाथूसिंहजी महियारिया रचित झालामान शतक सर कोटि री उंचे दरजे री बेजोड़ रचना है, जिण कृति में सादड़ी (मेवाड़) रै राजराणा झाला मानसिंह जी रै उद्भट शौर्य, अदम्य साहस अर सूरापण, अर बिना सुवारथ बऴिदान रो बड़ो बर्णन करियो है। हऴ्दीघाटी री लड़ाई रो बड़ वीर नायक झालामान आप रै प्राणा नै निछावर कर आपरा धणी महाराणा रा प्राण बचाय इतियास मं अखीजस खाटियो।
हेक मान मुगलांण दिस, हेक मान हिंदवाण।
कूरम गज हौदे रह्यो, सुरग गयो मकवांण।।[…]

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चारण मनोहरदास नांदू (गांव – सुरपाऴिया, नागौर)

इतिहास में केई काऴ भुरजाऴ जंगी जोधारां रा संगी साथी ऐहड़ा कण पाण वाऴा अर आत्म बलिदानी होवता हा कि उणानै आपरै स्वामी री भक्ति आगै आपरो जीवण तोछो लखावतो अर बखत जरूरत माथै बलिदान देवण में कदैई शंकै अर हबक नें नैड़ी नीं आवण देवता। आज इतियास रा ऐहड़ा शूरवीर री चतुराई अर वीरत री वारता रो लेखो जोखो आंके करावां सा।[…]

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