श्री सोमनाथ महादेव स्तुति – गंगारामजी बोगसा, सरवड़ी कृत

।।छंद – भुजंगी।।

नमो स्याय संता नमो सोमनाथं, महाजोग जोगेस दक्खं(दक्ष) जमातं।
जुधं काम पूर्यो प्रथी वात जानं, थरू वास कैलाश उद्यान थानं।।1

धर् या हात धानंख त्रेसूल धारी, त्रये नेत्र अगनी जरै त्रिपुरारी।
गले रूंडमाळा जटाधार गंगा, उमा प्राण प्यारी सदा वांम अंगा।।2

भख्यौ काळकूटं भयानंख भारी, अहीफेन सूगं धतुरां अहारी।
भलै तेज चंदं ललाटं भळक्कै, कितं भूत पिछास(पिशाच) दौळी कलक्कै।।3[…]

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||शिव वंदना अष्टक – जोगीदान गढवी कृत||

छंद: त्रिभंगी

करतुंड कटंकर खाग खटंकर मुंड मटंकर भयभीन्ना |
मंथन दधी मंकर भुजबल भंकर गरल गटंकर गणकीन्ना ||
निलकंठ नटंकर लचक लटंकर जटा जटंकर जणणाटी |
नम हर शिव शंकर डाक डणंकर धोम धणंकर धणणाटी||01||

जोगण पत जंकर बात बधंकर दक्ष दधंकर हथलीन्ना |
गीयणां गणणंकर चकर चटंकर प्रथी पटंकर रतपीन्ना ||
दावानल दंकर फाट फटंकर खडग खटंकर खणणाटी |
नम हर शिव शंकर डाक डणंकर धोम धणंकर धणणाटी||02||[…]

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फागण रा दूहा

तन तो पिव मैं रंग लूं,मन रंगूं किण भाँत|
इण फागण आया नहीं,धणी करी घण घात||१
फागण फूल उछाळतौ,अलबेलौ अणपार|
आयौ मन रे आंगणै,करै प्रेम मनुहार||२
फागण इतरो फाट मत,फूल न मौ पर फैक|
विरहण धण री वेदना,समझ करे सुविवेक||३ […]

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होळी रा रंग

होळी में झोळी भरै, रंगों री अणपार|
सह टोळी फागण सखी,आयौ आपण द्वार||१
साजण तन भल रंग मत ,पण मन रँग दे जोर|
तन रंग मिटसी झीलतां,मन रँग मेटण दोर||२
मन चुनरी मन भावणी,तन री रेशम कोर|
पिचकारी भर प्रेम री,ढोळो मत चितचोर||३ […]

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ओपै सूं रूठै ! बो म्हांरै सूं रूठै! अर म्हांरै सूं रूठै उण सूं सिरोही रूठै

कवि विश्वास अर सम्मान रो एक ऊजल़ो प्रेरक प्रसंग ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ सिरोही माथै वैरीसाल देवड़ा राज करै। उण रो एक सिरदार चांदो देवड़ो उण सूं रीसाय बारोटियो होयग्यो। सिरोही में घणा उजाड़ किया पण बख में नीं आयो। चांदो अपरबली । उण सूं कुण बाथां आवै – चांदा चोरंगवार उरल़ां बगलां ऊबड़ै। अरजण रो अवतार दुसासण तूं देवड़ा।। छेवट वैरीसाल दरबार बुलाय उमरावां सूं सलाह करी कै चांदै नैं कीकर वश में कियो जावै। उमरावां सलाह दीनी कै आप पेशवा रा आढा ओपाजी नैं चांदै कन्नै मेलो। बो इणां नै ओपो भाई कैय बतल़ावै सो हरगिज ई ओपैजी नैं नट नीं […]

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जा रै डोफा चाखू कोट रो ई कोजो लगायो !

आधुनिक सोच राखणिया अर सामंती जीवण मूल्यां सूं अजाण लोग आपरी मूंछ ऊंची राखण सारु जिण भांत सामंतवाद नैं भूंडै उणां नैं शायद जमीनी धरातल़ रो लेस मात्र ई ज्ञान नीं है या उणां किताबां सूं ओ ई ज्ञान पायो है कै उणकाल़ अर उण शासकां नैं विगोवो। ओ ई कारण है कै ऐड़ै लोगां नैं बै ठाकुर शोषक, क्रूर अमानवीय व्यवहार वाल़ा अर प्रजा रै सारु राकस रै समरूप निगै आवै। पण एक दो नै छोड र बाकी रा शासक दिल रा दरियाव, मिनखपणै सूं मंडित अर दया री प्रतिमूर्त हा। ऐड़ो ई एक किस्सो आप री निजर कर […]

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श्री करणी जी रौ छन्द

मन मन्दिर रा मावड़ी,करणी खौल कपाट।
सुन्दर रचना कर सकु,करणी रुप विराट।।

आदी अहुकारण
आदि अहुकारण सकल़ उपासण मान सुधारौ जौगमाया।
पंचो तंत सारै त्रिगुण पसारै घिर ब्रह्मन्ड थया।
नखतर निहारिका नैम नचाया ध्रुव गगन गंगा धरणी।
नित नमस्कार नवलाख निरंतर करणी करणी जय करणी ।।1।। […]

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चामुंडा माता रा त्रिभंगी छंद

छंदःत्रिभंगी
असूरां सर कोपं,म्रजाद लोपं,खप्पर खोपं, धींखारी।
अरकां सम ओपं,मलकै मोपं,सिंघे चोपं किं स्वारी?
गिरा श्रुति गोपं,करे विलोपं,पद व्रत पापं,परजाळी।
चामुंडा चंडी,परम प्रचंडी,वैरि विहंडी,बिरदाळी॥1॥[…]

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कीरत रै खातर कवि सूं कोरड़ा खाया

कवि अर कविता री कूंत रा मध्यकालीन उदाहरण आज ई बेजोड़ है। ऐड़ो ई एक उदाहरण है कणवाई रा ठाकुर खंगारसिंह लाडखानी अर मूंजासर रा बीठू उदयरामजी रो। उदयरामजी अमल रा जितरा मोटा बंधाणी। उतरा ई मोटा कवि। घण जोड़ै कवि रै रूप उदयरामजी री ख्याति चौताल़ै चावी। घूमता घूमता एकर कणवाई पूगा। कणवाई रा ठाकुर खंगारसिंह कविता रा कद्रदान अर कवियां रा गुणग्राहक। उदयरामजी ठिकाणै आयां ठाकुर साहब रो मन राजी होयो। जोरदार हथाई जची। इतिहास अर साहित्य री सरस चर्चा चाली। रात रा कवि विश्राम करण सोया। आधीक रात रा डोकरै रै होकै री बायड़ उठी। अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम। वाल़ी बात डोकरै रै आधी रात रो कुण होको भरै। हाजरिया जाय सूता। डोकरै सूतै-सूतै ई हाजरियै नैं हेलो कियो पण आधी रात रा नींद में गैल़ीजिया हाजरिया किणरी गिनर करै! उणां कवि नै कोई पूगतो जवाब नीं दियो। कवि रो हेलो रावल़ै पोढिया ठाकुर साहब रै कानां पड़ियो।[…]

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भर्तुहरी कृत नीति शतक का राजस्थानी पधानुवाद

दिसा काल पूरण दिपै, अनुभव घट आनन्द|
लख्यौ अलख नें भरथरी, नमो सच्चिदानंद||१
समझ जाय ना- समझ ही, समझै समझण हार|
ब्रह्मा गुरू व्है भरतरी, समझै मूढ न सार||२
जडता हर चित साच भर, मान बढे हर पाप|
भरतरी कीरत लोक में, फल सतसंग प्रताप||३
जय रस सिध्ध कविसरां, दिव्य जोत दरसाय|
मरियां भरतरी आप रो, जस तन जुगां न जाय||४ […]

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