आपांरै महताऊ ग्रंथां रो मंथण कर’र मानखै सारू ज्ञान रूपी माखणियो काढणिया एक महात्मा हुया है परमहंस स्वामी माधवानंदजी। उणां गुजराती में एक पोथी लिखी ‘वेदार्थ चिंतामणि‘। आ पोथी राजर्षि नाहरसिंहजी तेमावास पढी तो इणां नै लागो कै ऐड़ी जनकल्याणकारी पोथी राजस्थानी मानखै रै हाथां पूगणी चाहीजै ताकि ऐ ई आपरो कल्याणकारी मार्ग चुण आपरो हिंत चिंतन कर सकै। इणी पावन ध्येय नै दीठगत राख’र आप इण पोथी रो राजस्थानी में अनुवाद कियो।
निसंदेह मानव कल्याण करण वाल़ी आ पोथी आम मिनख सारू अंवेरणजोग है। नाहरसिंहजी नै लागो कै वेदार्थ जैड़ै गूढ विषय नै बोधगम्य बणाय’र आमजन तांई पूगायो जावै ताकि ईसरदासजी बारठ रा ऐ भाव फलिभूत हुय सकै तो साथै ई ऋषि ऋण परिशोध रो काम ई साधियो जा सकै-
भाग वडा तो राम भज, दिवस वडा कछु देह।
अकल वडी उपकार कर, देह धर्यां फल़ ऐह।।[…]
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