लिछमी – कवि रेवतदान चारण

ओढ्यां जा चीर गरीबां रा, धनिकां रौ हियौ रिझाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा !
हळ बीज्यौ सींच्यौ लोई सूं तिल तिल करसौ छीज्यौ हौ।
ऊंनै बळबळतै तावड़ियै, कळकळतौ ऊभौ सीझ्यौ हौ।
कुण जांणै कितरा दुख झेल्या, मर खपनै कीनी रखवाळी।
कांटां-भुट्टां में दिन काढ्या, फूलां ज्यूं लिछमी नै पाळी।
पण बणठण चढगी गढ-कोटां, नखराळी छिण में छोड साथ।
जद पूछ्यौ कारण जावण रौ, हंस मारी बैरण अेक लात।
अधमरियां प्रांण मती तड़फा, सूळी पर सेज चढाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा ![…]