लिछमी – कवि रेवतदान चारण

ओढ्यां जा चीर गरीबां रा, धनिकां रौ हियौ रिझाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा !

हळ बीज्यौ सींच्यौ लोई सूं तिल तिल करसौ छीज्यौ हौ।
ऊंनै बळबळतै तावड़ियै, कळकळतौ ऊभौ सीझ्यौ हौ।
कुण जांणै कितरा दुख झेल्या, मर खपनै कीनी रखवाळी।
कांटां-भुट्टां में दिन काढ्या, फूलां ज्यूं लिछमी नै पाळी।
पण बणठण चढगी गढ-कोटां, नखराळी छिण में छोड साथ।
जद पूछ्यौ कारण जावण रौ, हंस मारी बैरण अेक लात।
अधमरियां प्रांण मती तड़फा, सूळी पर सेज चढाती जा।
चूंदड़ी रौ अेक झपेटौ दै,
अै लिछमी दीप बुझाती जा ![…]

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मांडणा

उर रख कोड अपार, रीझ कर त्यार रँगोली।
प्रिया-विष्णु पधार, बहुरि मनुहार सुबोली।
सिंधुसुता सुखधाम, नाम तव है घणनामी।
तोड़ अभाव तमाम, अन्न-धन देय अमामी।
कवि अमर-सुतन ‘गजराज’ कह, मांडै धीवड़ माँडणा।
बेटियां हूंत घर व्है बडा, ओपै मनहर आँगणा।।[…]

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भाव व भाषा का सुभग संगम: मेहाई महिमा

कवि श्रेष्ठ सागरजी कविया, जिन्हें कवियों ने ‘सागर सिद्ध’ की संज्ञा से अभिहित किया है, की गौरवशाली वंश परंपरा में रामप्रतापजी कविया के घर वि.सं.1924 की माग शुक्ला 13 शनिवार के दिन सेवापुरा गांव में कवि पुंगव हिंगलाजदान जी कविया का जन्म हुआ। कुशाग्र बुद्धि, विलक्षण स्मृति, वाग्मिता, आदि गुण आपमें वंशानुगत थे। यही कारण है कि आप एक नैसर्गिक कवि थे। आपका समग्र काव्य हृदयग्राही व चित्ताकर्षक है। डिंगल़-पिंगल़ में आपको समरूप प्रावीण्य प्राप्त था तो साथ ही आप संस्कृत व उर्दू में भी निष्णांत थे। यही कारण है कि डिंगल़ के मर्मज्ञ विद्वानों ने आपको डिंगल़ परंपरा का अंतिम महाकवि माना है जो वस्तुतः सत्य प्रतीत होता है।

आपकी उल्लेखनीय रचनाएं हैं-‘मेहाई-महिमा‘, ‘दुर्गा बहतरी’, ‘मृगया-मृगेंद्र’, ‘अपजस-आखेट’, ‘प्रत्यय-पयोधर’, ‘सालगिरह शतक‘, ‘वाणिया रासो’। इन महनीय रचनाओं के अलावा आपके कई डिंगल छंद व चिरजाएं शक्ति की भक्ति में प्रणीत हैं जो अत्यंत प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं।[…]

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दीपमालिका का दीपक

मानव इस सृष्टि मे ईश्वर की सुंदरतम कृति है और वह अपने विवेक के लिए विश्ववरेण्य है। प्राणिजगत में मानव अन्य प्राणियों से अलग है तो वह अपने विवेकसम्मत व्यवहार के कारण है। विवेक मनुष्य को बुद्धिमान, व्यावहारिक एवं श्रेष्ठ बनाता है। यही कारण है कि मानव ने अन्य प्राणियों की बजाय अपने जीवन को अधिक नियोजित किया है। उसने हर कदम पर अपनी खुशियों का इजहार करने तथा आनंद लेने का प्रावधन भी किया है। हमारे यहां प्रचलित सभी त्योंहार तथा पर्व इसी कड़ी की लड़ियां हैं। होली, दीपावली, दशहरा, ईद इत्यादि सब त्योंहार इसी क्रम में उल्लेखनीय है।[…]

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