मारवाड़ के चारण कवियों की मुखरता

राजस्थानी भाषा के साहित्य का हम अध्ययन करते हैं तो हमारे सामने लोक-साहित्य, संत-साहित्य, जैन-साहित्य एवं चारण-साहित्य का नाम उभरकर आता है। इस चतुष्टय का नाम ही राजस्थानी साहित्य है। इस साहित्य के सृजन, अभिवर्धन एवं संरक्षण में चारणों का अद्वितीय अवदान रहा है। इस बात की स्वीकारोक्ति कमोबेश उन सभी विद्वानों ने की हैं जिन्होंने राजस्थानी साहित्य के अध्ययन-अध्यापन पर काम किया या कर रहे हैं।[…]

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बैश कीमती बोट – कवि मोहनसिंह रतनू (चौपासनी)

आगामी दिनो मे पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं, मतदान किसको करना हे इसके लिए कवि ने एक गाइडलाइन बनाई है। शांत सम्यक भाव से सही निष्पक्ष स्वंतत्र होकर मतदान करें।

दिल मे चिंता देश री,मनमे हिंद मठोठ।
भारत री सोचे भली,बी ने दीजो बोट।।

कुटलाई जी मे करै,खल जिण रे दिल खोट।
नह दीजो बी निलज ने,बडो कीमती बोट।।[…]

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सदा रंग समियांण

गढ सिंवाणा नै समर्पित-

इल़ भिड़ करबा ऊजल़ी, चढिया रण चहुंवांण।
बिण सातल रो बैठणो, सदा रंग समियांण।।1

खिलजी रो मद खंडियो, सज मँडियो समियांण।
कट पड़ियो हुयनै कुटक, चढ कटकां चहुंवाण।।2[…]

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ठग्गां रो मिटसी ठगवाड़ो

गीत-जांगड़ो

सरपंची रो मेल़ो सजियो, भाव देखवै भोपा।
धूतां धजा जात री धारी, खैरूं होसी खोपा।।1

दूजां नै दाणो नीं दैणो, एक समरथन आपै।
वित लूटण मनसोबा बांधै, जनहित झूठा जापै।।2[…]

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जिंदगी और बंदगी

कर रहा हूँ यत्न कितने सुर सजाने के लिए
पीड़ पाले कंठ से मृदु गीत गाने के लिए
साँस की वीणा मगर झंकार भरती ही नहीं
दर्द दाझे पोरवे स्वीकार करती ही नहीं
फ़िर भी हर इक साज से साजिन्दगी करती रही
ऐ जिंदगी ताजिंदगी तू बन्दगी करती रही।[…]

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सरपंची सौरी कोनी है

घर में बड़तां ई घरवाळी,
बर-बर आ बात बतावै है।
जो दिन भर सागै हांडै है,
बै रात्यूँ घात रचावै है।

वो बाबै वाळो बालूड़ो,
अबकाळै आँटो चालै है।
सरपँच बणबा नैं साच्याणी,
सोहन रै सड़फां चालै है।[…]

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बीसहथ रा सौरठा – रामनाथ जी कविया

उभी कूंत उलाळ, भूखी तूं भैसा भखण।
पग सातवै पताळ, ब्रहमंड माथौ बीसहथ।।१
सौ भैसा हुड़ लाख, हेकण छाक अरोगियां।
पेट तणा तोई पाख, वाखां लागा बीसहथ।।२
थरहर अंबर थाय, धरहरती धूजै धरा,
पहरंता तव पाय, वागा नेवर बीसहथ।।३
पग डूलै दिगपाळ, हाल फाळ भूलै हसत।
पीड़ै नाग पताळ, बाघ चढै जद बीसहथ।।४
करनादे केई वार, मन मांही कीधो मतो।
हुकुम बिनां हिकवार, देसाणों दीठौ नहीं।।५[…]

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मन में रही उम्मेद!

राजस्थानी साहित्य रो ज्यूं-ज्यूं अध्ययन करां त्यूं-त्यूं केई ऐड़ै चारण कवियां रै विषय में जाणकारी मिलै जिकां रो आभामंडल अद्भुत अर अद्वितीय हो। जिणां आपरै कामां रै पाण इण पंक्ति नै सार्थक करी कै-

सुत होत बडो अपनी करणी, पितु वंश बडो तो कहा करिए?

पण दुजोग सूं ऐड़ै सिरै कवियां रै विषय में साहित्येतिहास में अल्प जाणकारी ईज मिलै। कारण कोई ई रह्यो हुसी पण साहित्येतिहास माथै काम करणियां ऐड़ै कवियां रै बारै में कोई ठावी जाणकारी नीं दी।
ऐड़ा ई एक सिरै कवि अर मिनखाचार सूं मंडित साहित्य मनीषी हा उम्मेदरामजी पालावत।[…]

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