होरी के पद

।।होरी पद-१।।

होली! खेलत श्री यदुबीर।
छिड़कत लाल गुलाल बाल पर, अनहद उड़त अबीर।।१

बरसाने की सब ब्रजबाला, आई होय अधीर।
भर भर डारी अंग पिचकारी, भीगै अंगिया चीर।।२

ग़्वाल बाल सब ठाडै हिल मिल, जिन बिच कान्ह अहीर।
बंशी धुन ! मन मोहन छेड़त, जल जमुना के तीर।।३

गावत गारी मिल ब्रजनारी, भई गोप जन भीर। ‌
चंग मृंदग डफ ढोलक बाजै, बाजत झांझ मंजीर।।४

नटनागर पर “नरपत” वारी, हरि हरते मन पीर।
बरसाने बरसाते अमरित, सुंदर-श्याम शरीर।।५

।।होरी पद-२।।

होरी! खेलत नवल किशोरी!
श्याम रंग में आज रंग गई, कल तक थी जो गोरी!

पीत वसन धर सिर सरसों का, किंशुक की अरुणाई!
झिंगुर झील्ली की झांझरिया, पहन राधिका आई!
रोम रोम मन भीगा है पर, सिर पर गगरी कोरी!
होरी! खेलत नवल किशोरी!
श्याम रंग में आज रंग गई, कल तक थी जो गोरी!!१

ह्रद तंत्री के तार झनकते, चित में बजती चंग!
बांसुरिया पहले थी बैरन, पर अब भरे उमंग!
कान्हा ले बरसाने आए, हुरियारों की टोरी!
होरी खेलत नवल किशोरी!
श्याम रंग में आज रंग गई, कल तक थी जो गोरी!!२

नंदगाँव में रम गई राधा, बरसाने में माधा!
दोऊ मिलिके अब एक रंग है, खेलत तिक तिक धा धा,
नरपत रंग गुलाल उड़ै ब्रज, मनवा मगन भयो री!
होरी! खेलत नवल किशोरी!
श्याम रंग में आज रंग गई, कल तक थी जो गोरी!!३

~~©नरपत आसिया “वैतालिक”

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