कोडमदेसर भैरुंजी रा छंद

kodamdesarbheruji
कोडमदेसर भैरुंजी रो बीकानेर में ऐतिहासिक महत्व है। जद बीकोजी जोधपुर सूं जांगल़धरा में आया तद आ मूरती मंडोवर सूं साथै लाय अठै कोडमदेसर गाम में उण ताल़ाब री पाल़ माथै थापित करी जठै कदै ई कोडमदे मोयल आपरै पति पूगल़ रै राजकुमार सादै (शार्दूल) री वीरगति पायां पछै एक हाथ री चूड़ सूं ओ ताल़ाब खोदायो अर एक हाथ बाढर आपरी सासू रै पगै लगाई में मेलियो। इणी भैरुं माधोदास रामस्नेही जैमलसर रै भंडारै सारु मुल़ताण रै एक बाणियै रो सीरै सूं भरियो कड़ाव आणियो, जिणरी अल़ग कहाणी है। कालै विद्यालय स्टाफ भैरुनाथ रा दरसण करावण नैं आग्रह सहित लेग्या। मानता है कै देवद्वारै, राजद्वारै अर गुरुद्वारै खाली हाथ नीं जावणो सो उणां तो मीठी पूज की अर म्हैं एक रोमकंद छंद भैरु भुरजाल़ै नैं भेंट कियो सो आपरी निजर कर रैयो हूं-

।।दूहा।।
मंडोवर तज माल़िया, हिव धर जंगल़ हाथ।
रहै इणी धर रीझियो, नितप्रत भैरवनाथ।।1
जाहर कोडांणो जगत, सधर धारी रह स्वान।
चावो है चहुंकूंट में, ठावो थल़वट थान।।2
सिध कामा करणा सफल़, मामा सुण मतवाल़।
जसनामा कवियण जपै, सामा देख सचाल़।।3
सतधारी चामँड सुतन, पतधर विघन प्रजाल़।
मुणियो जस मत रै मुजब, नितप्रत निजर निहाल़।।4

।।छंद रोमकंद।।
थपियो थल़ मांय अनुप्पम थांनग,
छत्र मंडोवर छोड छती।
थल़वाट सबै हद थाट थपाड़िय,
पाट जमाड़िय बीक पती।
दिगपाल़ दिहाड़िय ऊजल़ दीरघ,
भाव उमाड़िय चाव भरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।1

प्रगल़ो हद नीर सरोवर पालर,
तालर रै अधबीच तठै।
हरणी मन हेर फबै हरियाल़िय,
जंगल़-मंगल़ कीध जठै।
वरदायक ऊपर पाल़ विराजिय,
दूठ जितायक दीठ डरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।2

मन थाक अयो सरणै सँत माधव,
आरत सारथ काज अखी।
सिंध जाय कड़ाव उठायर सांमथ,
राज अड़ाव में लाज रखी।
‘सर जैमल’में पड़ियो अज साबत,
भाल़ थल़ीजन साख भरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।3

अगवांण दिपै धिन आयल रो इल़,
मांण अपै मनपूर मही।
सबल़ापण आंण दफै कर संकट,
लंब सुपांण रुखाल़ लही।
वरियांम बखांण बहै बसुधा बड,
तीर समँदाय पार तरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।4

नर-नार अलेखत भेद बिनां निज,
मांग सँपूरत सांम मढै।
कितरा कव जाप जपै जस कायब,
पंडत मत्र अलाप पढै।
नरपाल़ कितायक नाक नमै नित,
धांम सिधेसर ध्यांन धरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।5

सिंणगार सिंदूर सजै तन सुंदर
सोरम माल़ ग्रिवाल़ सही।
डणकार सवांन चढै अरि दाबण,
शूल़ करां अजरेल सही।
मनरा महरांण सदा रँग मांणण,
झींटिय तेल फुलेल झरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।6

लहरां मँझ रास रचै लटियाल़क,
रात उजाल़क रीझ रमै।
पद घूघर बाज छमाछम पावन,
जोर घमाघम नाथ जमै।
डमकार डमाडम बाजिय डैरव,
धूज धमाधम यूं धररै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।7

मुख बांण सिरै मुझ आपण मातुल,
दान विद्या रिझवार दहै।
इणभांत पढूं छँद आणददायक,
कान करै कवि गीध कहै।
सुण साद सताबिय भीर सहायक,
दोस दयाल़िय कीध दुरै।
कवियां भय हार सदा सिग कारज,
कोडमदेसरनाथ करै।।8

।।छप्पय।।
नमो भैरवानाथ, जगत जाहर जस जांणै।
बंकै बीकानेर, कियो निवास कोडांणै।
जंगल़पत री जोय, वार करी के वारां।
उरड़ सरण तो आय, जोड़ हथ नमै हजारां।
तणकार स्वान तातो तुरत, भीर सिमरियां भैरवा।
रीझ नै सांम गिरधर रखै, मामा निसदिन मैरवा।।

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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