बगत सूं बंतळ करती कागद री कवितावां रहसी अमर

राजस्थानी साहित्य-आकाश रो अेक चमकतो सितारो अर आपां सगळां रो प्यारो बेली, भाई अर सैयोगी श्री ओम पुरोहित कागद आपरी लौकिक लीला नैं समेट र लारलै साल स्वर्ग पयाण करग्यो। आपरै व्यक्तित्व अर कृतित्व दोनां सूं साहित्यक समाज में आपरी न्यारी-निकेवळी अर उल्लेखणजोग छवि राखणियै अभिन्न अंग रो बिछोह साहित्यिक समुदाय सारू अपूरणीय क्षति है। कागद जी आज इण लौकिक संसार में नीं है पण वां रो साहित आज अर आगै ई वां री सूक्ष्म उपस्थिति आपां बिचाळै करावतो रैसी। आओ कागद री कवितावां सूं जुड़ी बात कर वांनै साची श्रद्धांजलि देवां-
स्ंवेदना री गहराई अर संचेतना री सबळाई रै पाण अनुभूत ज्ञान नै बुद्धि रै बळबूतै सबद-सांचां में ढाळण रो अनूठो काम रचनाकार करै। रचनाकार आपरै परिवेश अर परिचय क्षेत्र में घटित हूवण वाळी छोटी-बड़ी घटनावां नै आपरी ऊंडी दीठ सूं देखतां थकां उणरै भावी प्रभाव नै आगूंछ भांप लेवै। बखत रो बायरो आपरी चाल में बै’वतो जावै पण वो कई लोगां नै सहलावतो सो महसूस हुवै तो कई लोगां नै धक्का लगावतो सो जाण पड़ै। कवि भी असल में अेक सामान्य आदमी री हैसियत सूं उण बखत-बायरै रै ल्हरकां अर झपेटां सूं प्रभावित हुवै पण उण कनै आपरी विवेक दीठ मौजूद रैवै जकी उणनै बखत-बायरै री साच सूं रूबरू करावै। कवि आपरी उण अनुभूत सच्चाई नैं आपरी रचनावां रै माध्यम सूं सामाजिकां रै सामी राखै अर उणरै हाण-लाभ सूं भी लोगां नैं अवगत करवावै। असल में बो ई रचनाकार सफल मानीजै जको आपरै पाठक वर्ग रै मन री बात नैं आपरी जुबान में उकेरै। रचना नै पढ़ती बेळां पाठक नैं आ महसूस हूणी चाईजै कै बात तो आ ई म्हारै मन में है पण म्हारै सूं कहीजी कोनी अर कवि खराखरी कै न्हाखी। पाठक नैं आ पण लागणी चाईजै कै कवि नैं बात कैवण रो मर्यादित अर सुसंस्कारित तरीको ई है, जकै सूं करड़ी सूं करड़ी बात भी सहजता सूं अभिव्यक्त कर दी अर सामलै नैं नाराजगी जतावण रो मौको भी नीं दियो। साहित्य में लंबै समय सूं प्रचलित अन्योक्तिपरक काव्य इण रो सबसूं सशक्त उदाहरण है।
कवि ओम पुराहित कागद री कवितावां जीवन जगत री सच्चाई सूं गहरी जुडि़योड़ी है, जकी बखत सूं बंतळ करती सी लखावै। आं कवितावां में अनुभूति अर अभिव्यक्ति दोनों पख आप आपरी ठावी ठौड़ दृढ़ताई सूं उभा निगै आवै। आज रै समाज री विद्रूपतावां, राजनीति रा छळ-प्रपंच, आर्थिक छीना-झपटी, सांस्कृतिक विघटन, शैक्षणिक अवमूल्यन रै सागै-सागै कवि गौरवमयी इतिहास, सुरम्य प्रकृति अर अनुकरणीय सांस्कृतिक परिवेश री बात करणी भी नीं भूलै। ठौड़-ठौड़ कवि मानखै नैं बखत रो हेलो सुणण-सुणावण सारू चेतावतो निगै आवै अर लोगां नैे आह्वान करै कै ‘‘मन री बात करां आ रे भाई’’ अर ‘‘सूत्यां नै जगावण चालां’’।
कवि री पीड़ा आ है कै मिनखपणो खुद मिनखां रै ई हाथां आज घायल अवस्था में है। मिनखां री करतूतां रै कारण आज मिनखपणै पर संकट रा बादळ मंडरावै है। पसु-पंखेरू भी आपरी प्रकृति रै मुजब काम करै पण ओ मानखो कद आपरी प्रकृति बदळ लेवै ठा ई नीं पड़ै। कदै ई मानखो संस्कृति री संगत करतो आपरी मूळ प्रकृति सूं ऊपर उठतो निगै आवै जणां मिनखपणै पर नाज हुवै पण सदा अेड़ो सौभाग नीं मिळै।
घणी बार मानखो प्रकृति सूं भी नीचै गिरतो विकृति रै गळबाथ घाल्यां फिरै जणां मिनखपणों खुद ई लाजां मरै। कवि ओम पुरोहित कागज मिनख अर मिनखपणै रै अंतस री ऊंडी अनुभूति नै आपरी कवितावां में अभिव्यक्ति दी है, जकी आम पाठक रै मन री बात लागै।
आजादी रा सात दशक बीतण नैं आया है। आज ई दुनियां रै सै सूं मोटै जनतंत्र इण भारत री लगैटगै चाळीस प्रतिशत जनता गरीबी रेखा रै नीचै जीवण सारू मजबूर है। जनता रै खुद आपरै राज में जनता रोट्यां रा टोटा भुगतै अर सरकारां विकास री लांबी-लांबी लिस्टां छापै जद कवि रै अंतस रो दरद सबदां रै सांचै ढळतो लोकराज री पोल खोलतो बोल उठै-
लोकराज में आटो कठै ?/ खोसै जकां रै घाटो कठै ?
दूखता हो सी थारै घाव !/ म्हारै खनै पाटो कठै ?
भारत री राजनीति में पनपतो वंशवाद भी लोकतंत्र सारू मोटो खतरो है। वंशवाद असल में राजतंत्र सूं भी घणों खतरनाक तंत्र है क्योंकै राजतंत्र में राजवंशां री आपरी सुदीर्घ वंश परंपरा तो ही जकी वां सारू संविधान रो काम करती। का पछै वां नै आपरै पूर्वजां रै नामां-कामां सूं समझाया जा सकता पण आज रै नेतावां री ना तो कोई वंश परंपरा है अर ना ई कोई ऊजळो इतिहास। अठै तो मो. सद्दीक साहब रै सबदां में कहूं तो ‘‘लूटो, खोसो, खावो किसी रोकथाम सा, तामझाम सा तामझाम सा’’ वाळी परंपरा ई देख्योड़ी है। वंशवाद रै कारण दूजै लोगां नै मौको मिलै नहीं अर जनता रो संकट बियां रो बियां ई रैवै। कवि कागद इण विसंगति नै रेखांकित करै-
नेतां रै घर में नेता जामै, आपस में बांटै ताज बापजी।
कोठ्यां में पीज्जा गटकै गंडका, गरीब रै कोनी अनाज बापजी।।
लोकतंत्र रो चौथो पायो मीडिया मानीजै पण बखत बायरै रो मार्योड़ो मीडिया भी पेड न्यूज रै नाम माथै धनवानां रै इशारां पर नाचतो दीखै। घणकरा सा अखबार सरकारी विज्ञापन मात्र बण’र रैयग्या। सामाजिक सरोकारां का सांस्कृतिक पृष्ठभूमि री खबरां हासियै माथै भी आवण री मोहताज बण्योड़ी है अर अश्लील अर अमर्यादित क्रियाव्यापारां नै बार-बार फोर-फोर’र न्यारा-न्यारा चेनलां माथै दिखावता जावै। चेनल वाळा आपरी टीआरपी बढ़ावण रै चक्कर में खबरां नै सायास मसालेदार बणावै। कवि इण सच्चाई नै उजागर करतो लिखै-
सरकारू विज्ञापन, सरकारू खबरां/ अखबार मसालेदार बापूजी।
हाथां थरपी सरकार बापूजी/ डूब्या काळी धार बापूजी।।
भारतीय स्वातंत्रता संग्राम रा नायक महात्मा गाँधी रो सपनो हो कै गांव-गांव में पंचायतां बणैली अर लोग आपरी सरकार खुदोखुद चलावैला । पंचायतां बणी अर अधिकारां री दीठ सूं भी पंचायतां आज खासा सक्षम है पण समै रो प्रभाव अैड़ो है कै पंचायतां आपरी मर्यादावां नै भूल’र उजड़ चालण लागगी। जनता रै प्रति जबाबदेही वाळी पंचायत जनता री परवाह ही नीं करे। कवि जनता री इण पीड़ा नै भी वाणी दी है-
धरमी नै रोस्सै, पाप्यां नै पाळै/ ठा नीं कठै छोड़ दी लाज पंचायत।
जीत्यां भरै हाजरी बै हाकम री/ कठै जनता री मोहताज पंचायत।।
नेता अर धणी-लुगाई दो चरित्र रचनाकारां सारू खास चा’वा अर ठावा मानीजै जकां पर कव्यां रा व्यंग्य बाण चालै। कई बार नेतावां नै अर धणी-लुगायां नै आ शिकायत रैवै कै आखिर अै कवि म्हारै ई लारै क्यूं पड़्या रैवै तो इणरो जबाब ओ है कै नेतावां रै हाथ में तो देश री बागडोर है तो धणी सारू लुगाई रै अर लुगाई सारू धणी रै हाथ में घर-परिवार री बागडोर है। अब जे धणी का लुगाई आपरै काम नै ढंग सूं नीं कर सकै तो घर-परिवार री हळकाई हुवै अर नेता आपरो काम ढंग सूं नीं कर सकै जणां देश री हळकाई हुवै। देश अर घर-परिवार री हळकाई हुयां पछै लारै के बचै ? ईं बिगाड़ री आशंका सूं डरतो कवि नेतावां नै अर धणी-लुगायां नै चेतावतो रैवै क्योंकै कवि तो समय रो केमरो है ‘‘कवि समय रो केमरो विश्व बात विख्यात’’। केमरै में तो हुवै जिसो ई चेहरो आवै इण वास्तै कवि नेतावां नै बार-बार चेतावै। कई बार कव्यां री भाषा सीधी-सीधी हुवै तो कई बार व्यंग्यपरक हुवै। कवि कागद नेतावां री आदत पर व्यंग्य करतां लिखै-
ल्याओ-ल्याओ करतां ले लियो राज/ ईं सूं आगे बां नै कीं आवै कोनीं।
हाकम है अगला समूळै रा हकदार/ हक रै अलावा कीं रो ई कीं खावै कोनी।।
थोड़ै सै सबदां में कित्तो गहरो व्यंग्य कर्यो है- हक रै अलावा कीं रो ई कीं खावै कोनी मतलब कै जनता रो हक अै नेता खा रिया है।
कवि ओम पुरोहित कागद आपरै कवि कर्म नै याद राखतां भटक्योड़ै अर निराश हुयोड़ै मानखै नै हिम्मत बंधावण रो काम लगोलग कर्यो है। कविता रो धर्म ओ ई है कै समाज री विद्रूपतावां अर विसंगतियां पर प्रहार करे, आक्रोश में आफरो झाड़े पण जनता-जनार्दन हताश नीं व्हे ज्यावै, इण सारू आशावादी सोच अर चिंतन कवि सारू जरूरी है। कवि कागद रो आक्रोश देखो-
अब सिणियां बधग्या अणथाग/ लांपो ले लगावण चालां।
गिरज ढूक्या छातां माथै/ आंख दिखा उडावण चालां।।
कवि समाज में व्याप्त अंध-विश्वास अर दिखावै री प्रवृत्ति पर प्रहार अर धर्म नै समाज रै ठेकेदारां पर व्यंग्य करतां लिखै-
तन ढकण नै गाभां रो तोड़ो/ चादर पण जरूर चढ़ावै लोग।
इंसानियत नै अब बिलमावै है लोग/ भाठां नै ईश्वर बतावै है लोग।
भाठां आगै भोग धरै/ मिनखां आगै कद धरसी।
कवि संस्कार रूपी भींतां नै बचावण री खेंचळ करतां चिंता व्यक्त करै कै बिना भींतां छात क्यां पर टिक्योड़ी रैवैली-भींतां जद धुड़गी सगळी/ कठै टिकै छात बता दादी।
कवि री आशावादी दीठ देखण जोग है, जकी रै पाण कवि दब्योड़ै, डर्योड़ै अर डांवांडोल हुयोड़ै मानखै नै धीरज बंधावै-
हाल अंधारो है चौगड़दै/ आभै री धूड़ हटसी देखी।
हाकम हाल तांई मिजळा है/ जनता रा जाप रटसी देखी।
कुल मिला’र ओम पुरोहित कागद री रचनावां समय रै साच नै उघाड़ती नयी पीढ़ी नै सावचेत करण रो काम करै। सरल अर ठेठ राजस्थानी भाषा रै शब्दां रो प्रयोग, लोकोक्तियां अर मुहावरां रो फबतो अर फूठरो जोड़ आं रचनावां नै घणी पठनीय बणावै। कवि री व्यंग्य विधा में गहरी पैठ निगै आवै। राजस्थानी कविता रै वर्तमान ढाळै नै आगै बढ़ावतां कवि भावी लिखारां सारू एक आधार देवण री आफळ करी है। वरिष्ठ रचनाकारां रो दायित्व भी ओ ई बणै कै बै कोई आदर्श स्थापित करै जिणनै आधार बणावतां नौजवान पीढ़ी आपरी मंजिल तलाश सकै। कलम कोरणी रै साचै कलाकार नैं शत-शत वंदन। ….
~~डॉ.गजादान चारण ‘शक्तिसुत’