रघुवरजसप्रकास [8] – किसनाजी आढ़ा
— 169 — दूहौ साठ सहस सुत सगररा, नहचै मुवा निकांम। तै धन ग्रीध जटाय तं, रिण रहियौ छळ रांम।।१२ वारता जींनै रूपग कहै जींसूं अपूठी कहीजै सौ सुद्ध पर मुख उक्ति कहावै, और रौ जस और प्रत सूं भाखण करणौ सौ सुद्ध परमुख उक्ति। अथ सुध परमुख उक्ति उदाहरण सोरठौ जीपे दससिर जंग, समंदां लग दीपै सुजस। ऊ रघुनाथ अभंग, जन पाळग समराथ जग।।१३ वारता परमुख उक्ति ने अन्योक्ति री कर कहणौ सौ गरभित परमुख उक्ति कहावै। अथ गरभित परमुख उक्ति उदाहरण दूहा हर समरौ होसी हरी, जीते जमरौ जंग। कर उदिम रोलंब करै, भमरौ कीटी भ्रंग।।१४ जिणनूं जांण […]
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