रघुवरजसप्रकास [8] – किसनाजी आढ़ा

— 169 — दूहौ साठ सहस सुत सगररा, नहचै मुवा निकांम। तै धन ग्रीध जटाय तं, रिण रहियौ छळ रांम।।१२ वारता जींनै रूपग कहै जींसूं अपूठी कहीजै सौ सुद्ध पर मुख उक्ति कहावै, और रौ जस और प्रत सूं भाखण करणौ सौ सुद्ध परमुख उक्ति। अथ सुध परमुख उक्ति उदाहरण सोरठौ जीपे दससिर जंग, समंदां लग दीपै सुजस। ऊ रघुनाथ अभंग, जन पाळग समराथ जग।।१३ वारता परमुख उक्ति ने अन्योक्ति री कर कहणौ सौ गरभित परमुख उक्ति कहावै। अथ गरभित परमुख उक्ति उदाहरण दूहा हर समरौ होसी हरी, जीते जमरौ जंग। कर उदिम रोलंब करै, भमरौ कीटी भ्रंग।।१४ जिणनूं जांण […]

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गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद – कवि वीरेंद्र लखावत

गीता रौ राजस्थानी में भावानुवाद (चौपाई छंद अर गद्य)

।।श्लोक।।
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सुव:।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।१।।

।।चौपाई।।
भाळ धरा कुरुखेत धुजाई, लड़ण भिड़ण री लोय लगाई।
मम सुत अर पाण्डव रा जाया, संजय हुय की देख बताया।।१।।

।।भावार्थ।।
संजय सूं धृतराष्ट्र कैवै-हे संजय! म्हनै आ बता कै धर्म री धरा कुरुक्षेत्र में म्हारा अर पाण्डव रा बेटा युद्ध करण खातर गया है उण ठौड़ इण बगत कांई होय रह्यौ है थारी दिव्य दीठ सूं देख ‘र बता। […]
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वेलि क्रिसन रुकमणी री – महाकवि पृथ्वीराज राठौड़

महाकवि पृथ्वीराज राठौड़ रचित अनुपम प्रबंध काव्य।
भावार्थ – श्री मातु सिंह राठोड़
छंद वेलियो

।।मंगलाचरण।।
परमेसर प्रणवि, प्रणवि सरसति पुणि
सदगुरु प्रणवि त्रिण्हे तत सार।
मंगळ-रूप गाइजै माहव
चार सु एही मंगळचार।।1।।

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रघुवरजसप्रकास [7] – किसनाजी आढ़ा

— 137 — छंद भुजंगप्रियात निभौ रांम जेणं तरी भ्रम्ह नारी। यं हीं ताड़का मार बांणां उधारी।। सुबाहं कियौ खंड खंडं सरंखे। निमौ च्यारसै कोस मारीच नंखे।। करी ज्याग स्याहाय मूनेस कज्जं। दखे जै जया बोल आंनेक दुज्जं।। चितं चाय सीता सपीता अचूकं। कियौ चाप भूतेसरौ टूक-टूकं।। ‘किसन्नेस’ आखै अरज्जी कविंदं। बडौ आसरौ रांम पादारब्यंदं।।९४ छंद लक्ष्मीधर (र. र. र. र. ) रांम वांळी रजा सीस ज्यां रै रहै। कूंण त्यांनै हुवा हीण मांणं कहै।। वीसरै जीवहूं जेह सीतावरं। न्यायहीण मदां होय तेता नरं।।९५ दूहौ च्यार स तोटक च्यार तह, कह सारंग सुतत्थ। च्यार ज मुत्तीय दांम चव, च्यार भ […]

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रघुवरजसप्रकास [6] – किसनाजी आढ़ा

— 105 — अथ चौटीबंध छप्पै लछण दूहौ आद कहै सौ अंत में, नांम गणत नरबाह। सिरै कवित बंधै सिखा, चौटीबंध सराह।।२४६ अथ चौटीबंध छप्पै उदाहरण सूरजपणौ सतेज, स्रवण अम्रत हिमकर सम। उर दाहक सम आग, तौर सुर-राज राज तिम।। सत हरचंद समांन, प्रगट दरियाव अथघपण। सुर तर आस सपूर, जांण पारस सेवक जण।। रवि अमी आग इंद चंद हरि, दूध सुरतरमण आद ले। परभाव आठ निज कांम पर, एक रांम तन ऊझळै।।२४७ अथ हीराबेधी छप्पै लछण दूहौ एकण हीरौ विहरियां, दूजौ हीरौ थाय। हीराबेधी कवित जिम, दोय अरथ दरसाय।।२४८ अथ हीराबेधी छप्पै उदाहरण नारंगी संसार नीम, ऊंबर कर अंबह। […]

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रघुवरजसप्रकास [5] – किसनाजी आढ़ा

— 73 — अथ गाथा उदाहरण गिरिस गिरा गौ गौरी, हर गिर हिम हंस हास सिस हीरा। सुसरि सेस सुरेसं ए, स्रीरांम क्रत आरख्यं।।१३० अथ गाथा गुण दोस कथन छंद बेअखरी निज आखै किव ‘किसन’ निरूपण, सुणौ गाहा गुण दोस सुलछण। सात चतुरकळ अंत गुरु सज्ज, देह छठे थळ जगण तथा दुज।।१३१ बांधव पूरब अरध एण बिध, यम हिज जांण जगण उत्तरारध। काय छठे थळ यक लघु कीजै, दुसट विखम थळ जगण न दीजै।।१३२ मत्त सतावन स्रब गाथा मह, कळातीस पूरबा अरध कह। वीस सात कळ उतर अरध विच, रेणव अेम छंद गाथौं रच।।१३३ पाय प्रथम पढ़ हंस गमण पर, […]

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रघुवरजसप्रकास [4] – किसनाजी आढ़ा

— 41 — अथ मात्रा व्रत्ति वरणण दूहा मत्त व्रत्त में सुकव मुण, मात्र प्रमांण मुकांम। आवै समता आखिरां, वरण व्रत्त जिण ठांम।।१ मत्त व्रत हिक अह मुणी, पढ़ि सौ च्यार प्रकार। मत्त छंद उप छंद पद, असम सुदंडक धार।।२ छंद चंद्रायणौ* लग मत्ता चौवीस छंद मत्त लेखजै। सुज यां अधिका मत उपछंद विसेखजै।। वरण मत सम नहीं असम पद जांणजै। बे छंदां मिळ दंडक मत्त बखांणजै।।३ अथ मात्रा छंद तंत्र गमक छंद पंच मत, गमक सत। सीत बर, रांम रर।।४ छंद बांम छ मात्रा छ मत ‘बांम’ समरि स्यांम। झूठ धंध, मन म बंध।।५ १. मुकांम-स्थान। आखिरां-अक्षरों में। ठांम-स्थान। […]

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रघुवरजसप्रकास [3] – किसनाजी आढ़ा

— 17 — अथ मात्रा स्थांन विपरीत कड़ौट फेर प्रस्तार लछण। दूहौ अंत गुरु तळ लघु धरौ, आगै पंत समांण। ऊबरे सौ गुरु लघु धरौ, पाछै एह प्रमांण।।५७ अथ मात्रा स्थांन विपरीत कौ प्रकारांतर। चौपई अंत निकट लघु सिर गुरु धरौ, अधर पंत सम अग्र विचारौ। ऊबरे सौ पाछै लघु आवै, कळा थांन विपरीत कहावै।।५८ अथ मात्रा संख्या विपरीत कौ प्रकारांतर दोनूं भेळा कहै छै। चंद्रायणौ आद अंत लघु संनिध तळ गुरु आंणजै। जेम प्रकारांतर गुरु सिर लघु जांणजै।। धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर कीजिये। संख्या बिहुं प्रकार उलट्ट सुणीजियै।।५९ वारता संख्या विपरीत का आद लघु का अंतकौ […]

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रघुवरजसप्रकास [2] – किसनाजी आढ़ा

— 1 — श्रीगणेशाय नमः श्रीगुरुगणपतीष्ट देवताभ्यो नमः * ॐ नमः श्रीसीतारामाय अथ आढ़ा किसनाजी क्रत पिंगळ रघुवरजसप्रकास लिख्यते ** श्रीगणेस स्तुति छप्पै कवित्त-भाखा मुरधर श्री लंबोदर परम संत बुद्धवंत परम सिद्धिबर। आच फरस ओपंत, विघन-बन हंत ऊबंबर। मद कपोल महकंत, मधुप भ्रामंत गंधमद। नंद महेसुर जन निमंत, हित दयावंत हद।। उचरंत ‘किसन’ कवि यम अरज, तन अनंत भगति जुगत। जांनकी-कंत अक्खण सुजस, एकदंत दीजै उगत।।१ प्रथम भ्रहंम मझ बेद, छंद मोरग दरसायौ। खग अग पिंगळनाग, ‘नागपिंगळ’ कर गायौ।। ‘काळिदास’, ‘केदार’, ‘अमरगिर’ पिंगळ अक्खे। भाखा ब्रज सुखदेव, ‘सुरतचिंतामण’ भक्खे।। लछ भाखा पिंगळ ग्रंथ लख, एकठ बोह मत आंणियौ। रघुबरप्रकास जस […]

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