🌺श्रीदेवल माता सिंढायच🌺

देवल माता का जन्म पिंगलसी भाई ने सवंत १४४४ माघ सुद्धी चौदस के दिन बताया है। लेकिन वि सं 1418 में घडसीसर तालाब की नींव इन्होने दी थी जिसका शिलालेख वहां मौजूद है। ऐसा उल्लेख जैसलमेर की ख्यात व तवारीख में आता है। अत इस प्रकार इनका जन्म 14 वी शताब्दी में माघ सुदी चवदस के दिन होना सही लगता है। देवल माता हिंगलाज माताजी की सर्वकला युक्त अवतार थी। देवल माता ने भक्त भलियाजी और भूपतजी दोनों पर करुणा कर के एक के घर पुत्री और दुसरे के घर पुत्र वधु बनकर दोनों वंश उज्जवल किए। इनका जन्म माडवा […]

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गीत कोठारियां री अनीति रौ – जनकवि ऊमरदान लाळस

ऐक गीत उमरदानजी लाऴस री दबंगता दरसावतो, जिणमें तीन कोठारी बाणियां रा माजाया भाई, चारणां रा मुंदियाड़ ठिकाणा में घणी रापटरोऴ मचाय लूटणो शुरु करियो अर बठां रा ठाकुर साहब चैनसिंहजी बारहठ ने घणा दुखी करिया। सेवट आ बात उमर कवि कनै पूगी। कवि मारवाड़ रा तत्कालीन मुसाहब आला सर प्रताप रा खास मानिता हा, वै निडरता दिखावता थका बाणियां रो हूबोहूब गीत बणाय सर प्रतापसा ने खऴकायो अर कोठारियां री कामदारी ने खोस जेऴ में न्हाक मुंदियाड़ ने बचाई।

।।गीत – बड़ी सांणौर।।
पुत्र वणक त्रहुं भ्रात अन्याव रा पूतळा,
छिद्र कलकता तक न को छांनां।
जुलम री करी वातां जिके जणावूं
कळपतरु सुणीजे पता कांनां।।1।।[…]

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कलरव रा कमठाण

आछो नरपत, आसियो, चारण वरण चकार।
गाँव गाँव गुंजाय दी, डिंगल री डणकार।।1।।
आछो नरपत आसियों, खरो गुणों री खांण।
कव चारण घण कोडसू, विध विध करे बखाण।।2।।
घटाटोप नभ गरजणा, गांजे डिंगल गाज।
महि बोले कवि मोरिया, नरपत ऊपर नाज।।3।।
नपसा तो नाइस लिखे, ख्वाइश पूरे खूब।
साहित तणै समुद्रमें, दिलजावत हे डूब।।4।।
कोहीनूर नरपत कवि, वैतालिक विद्ववान।
जगमग हीरा जातरां, गिरधर अर गजदान।।5।[…]

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आशिया प्रभुदानजी भांडियावास !

आशिया प्रभसा रो जसौल ठिकाणै म सदा सनातनी सीर, रावऴसा व बाजीसा एक बीजा रा दुख सुख रा साथी, बाजीसा न देखियां बिना रावऴसा ने चैननंई मिऴै अर बाजीसा रो बीजी जागां मन नीं लागे।
एकर प्रभसा सियाऴा रा दिना आपरै घरै एक तगड़ो तियार हुयैड़ो खाजरु, संधीणा री सोच अर करियो अर आपरा कीं साथियां ने भी निमतिया, साथी वांरी कूंत हूं घणा पूगग्या, बीं मां सूं आधे सूं घणो तो रात ने ई जिमकायगा व बचियौड़ा ने एक ऊंची जागां टांक दियौ अर बै लोग निंशंक सोयग्या, रातै एक मिनड़ी आयर बचियौड़ा भाग ने खायगी, प्रभसा रै संधीणा री मनसा मन में ई रैयगी, भाई सैण पाड़ोसी तथा भायला बाजीसा ने संधीणा रा ताना देवण लागा।प्रभसा ईरा उपाय में जसोल रावऴसा कने एक गीत लिखर ऊंठ सवार रे साथै भेजियो।

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माटी थनै बोलणौ पड़सी – कवि रेवतदान चारण

मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।
करणौ पड़सी न्याय छेड़लौ, माटी थनै बोलणौ पड़सी।

कुण धरती रौ अंदाता है, कुण धरती रौ धारणहार ?
कुण धरती रौ करता-धरता, कुध धरती रै ऊपर भार ?
किण रै हाथां खेत-खेत में, लीली खेती पाकै है ?
किण रै पांण देष री गाड़ी, अधबिच आती थाकै है ?
कहणौ पड़सी खरौ न खोटौ, सांचौ भेद खोलणी पड़सी।।
माटी थनै बोलणौ पड़सी।
मूंन राखियां मिनख मरैला।
धरती नेम तोड़णौ पड़सी।।[…]

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जांभा सुजस – कवि भंवरदान माडवा “मधुकर”

।।छंद – त्रिभँगी।।
जन मन जयकारा, धन तन धारा, अवन उचारा अवतारा।
पिंपासर प्यारा, दीन दुलारा, पुन प्रजारा, परमारा।
तपस्या तन तारा, भव पर भारा, भल भंयकारा भूप भया।
परगट परमेश्वर, जय जांभेशवर, निज अवधेश्वर रूप नया।।

नव विसी न्याती, धर्म धराती, वर्ण विनाती विख्याती।
जम्भ देव जमाती, कर्म कराती, मेहनत भाती मन थाती।
खिति पर धन ख्याती, परमल पाती, जबरी जाती सूंप जयो।
परगट परमेश्वर, जय जांभेश्वर, निज अवधेश्वर रूप नयो।।[…]

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छंद भयंकर भ्रमर भुजंगी – कवि भंवरदान माडवा “मधुकर”

।।छंद – भ्रमर भुजंगी।।
जटा धार जंगा, गले में भुजंगा, सती नार संगा, गंगा धार गाजे।
खमे भ्रंग खारी, जमे कांम जारी, भमे रीस भारी लमे चन्द लाजे।
हुरां बीच हाले, चँडी साथ चाले, घटां प्रेम घाले, पटां प्रीत पावे।
अहो ओम कारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावे।।
कवी जो मधूको, धणी हेत धावे।

नचे खेल नट्टा, छिले अंग छट्टा, गिरां देत गट्टा, सुघट्टा, सुहाणी।
वजे नाद वाजा, अनेकां अवाजा, तपे भांण ताजा तके रीठ तांणी।
धुबे धोम धारां तिके थै ततारां, हजारां तरां ताल, भूमी हिलावे।
अहो ओमकारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावै।।[…]

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संतन स्वामी तो सरणं

।।छंद – त्रिभंगी।।
पैहाळ तिहारो भगत पियारो, निस थारो नाम रटै।
हिरणख हतियारो ले घण लारो, झैल दुधारो सिर झपटै।
हरनर ललकारो कर होकारो, दैत बकारो द्यो दरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।

इन्दर कोपायो ब्रिज पर आयो, वारिद लायो वरसायो।
धड़हड़ धररायो जोर जतायो, प्रळै मचायो पोमायो।
नख गिर ठैरायो इन्द्र नमायो, धिनो कहायो गिरधरणम।
नमहूं घणनामी जय जगजामी, संतन स्वामी तो सरणम।।[…]

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चारणों की आपसी मसखरी ! – राजेंद्र सिंह कविया

एक बार गांव हणूतिया मे आस पङोस के सभी सजातिय व अन्य सज्जनों का एक पर्व पर आने का संयोग हुआ हथाई का मेऴा मंडा चौक के पा स में कुआ बना था उसमें रस्सी से बालटी लगा कर भूणी पर से रस्सी को खेंच कर पाणी निकालने की प्रक्रिया चल रही थी भूणी जिसे चाकला भी कहते हैं आवाज कर रहा था पाणी भरकर बालटी या चङस बाहर आते समय आवाज धीमी व अलग होती है वापसी में खाली चङस वेग से जाता है तो आवाज अलग होती है।

वहां विराजित एक कवि ने प्रस्ताव किया कि सब कवि कल्पना करो किः…..
“यौ चाकलौ कांई कह रैयो छै”[…]

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गजल: देख लै – कवि जी. डी. रामपुरिया

🌺गजल🌺
चीरड़ा चुगता गळी गोपाळ देख लै।
पेट सारूं सैंग ही पंपाळ देख लै।।

मोह-माया रो दिनो दिन वाधपो दीसे।
काल कुण देखी है गैला काळ देख लै।।

प्रीत री माळा है काचे सूत में पोई।
रीत रिसती जा रही परनाळ देख लै।।

चींचड़ा कुरसी रै कितरा जोर सूं चिपिया।
लपलपाती जीब गिरती लाळ देख लै।।[…]

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