बड़े मियाँ – राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)

सबकी सुनकर भी अपनी पर अड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
लोग शहर के कैसे चिकने घड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
पहले यूं ख़ुदगर्ज़ नहीं था कुछ अपनापा बाक़ी था।
आख़िर हम भी इसी शहर में बड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
ये मत सोचो इस मरभुख्खे गाँव में क्या तो रक्खा है।
जाने कितने बड़े ख़जाने गड़े हुये हैं बड़े मियाँ।[…]

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बदलते हैं – ग़ज़ल – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

बदलने को बहुत कुछ आज भी अक्सर बदलते हैं।
न शीशे हम बदलते हैं न वो पत्थर बदलते हैं।।

ज़मीं फिरती है बरसों और फ़लक बरसों बरसता है।
कसम से तब कहीं जाकर ये पसमंजर बदलते हैं।।

हमें ख़ौफ़े ख़ुदा है और तुम्हें ज़ालिम जहाँ का डर।
चलो कुछ देर की ख़ातिर हम अपने डर बदलते हैं।।

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बच्चे – ग़ज़ल – राजेश विद्रोही

हमारे मुल्क में मासूमियत खोते हुये बच्चे .
लङकपन में बुजुर्गों की तरह होते हुये बच्चे ..

कहीं से भी किसी उम्मीद के वारिस नहीं लगते .
घरौंदो की बगल में बेबसी बोते हुये बच्चे ..

उदय होते हुये भारत की शाईनिंग पे धब्बा हैं.
अभावों की सङक पर गिट्टियाँ ढोते हुये बच्चे .[…]

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सम्बन्धों की फुहारें-भाटी नीम्बा और रतनू भीमा – डा. आईदान सिंह जी भाटी

मारवाड़ के चाणक्य कहे जाने वाले भाटी गोयन्ददास के दादा की कथा है यह। उनका नाम नीम्बा था। यह नीम्बा उस समय उचियारड़े नामक ग्राम में रहता था, जहां सोलंकी राजपूतों का आधिक्य था। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि यह नीम्बा भाटी ‘जैसा’ का पौत्र था। इस जैसा को राव जोधा अपने संकट काल में इस वचन के साथ अपने साथ जैसलमेर रियासत से लाये थे कि वे राजकीय आय का चौथा हिस्सा उसे देंगे। यह ‘जैसा’ जैसलमेर के रावल केहर का पौत्र और राजकुमार कलिकर्ण का पुत्र था व सुप्रसिद्ध हड़बू सांखला का दोहिता था। पर मंडोर हाथ […]

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गीत सूंधा माता रो – दल़पत बारठ

स्वंय पिडं ब्रहमंड भुज डंड ईकवु सस,
दयतां डंड प्रचण्ड दाता।
सकल़ विहमंड चंड कुण कर सकै,
मंड ज्यां मंडी चामण्ड माता।।
आठ सिध थापणी थाल़ आसाएवां,
आपणी माल नवनिध अनूंधा।
रिधव रूक दे मूंघा न व्है रायहर,
सकत सूंधा तणी राय सूंधा।।[…]

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ગરબો-ખોડિયાર રમવા ને આવે-કવિ આપા ભાઈ કાળા ભાઈ બાળદા

કોઇ તાતણીયા ધરાથી તેડાવો મારી બેનુરે….
ખોડીયાર રમવા આવે…
કોઈ માટેલ જઇને મનાવો મારી બેનુ રે..
ખોડીયાર રમવા આવે…ટેક

હા…આસોના ઉજળા આવ્યા છે નોરતા મનડે કોડ નથી માતો..
માં ના તેહવારનો મહિમા છે મોટો સૃષ્ટીમાં નથી સમાતો..
હવે સૃષ્ટીની શોભા વધારો મારી બેનુ રે..
ખોડીયાર રમાવા આવે…[…]

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इश-महिमा-सवैया – कवियत्रि भक्तिमति समान बाई

।।सवैया।।
शत्रुन के घर सेन करो समसान के बीच लगाय ले डेरो।
मत्त गयंदन छेह करो भल पन्नग के घर में कर गेरो।
सिंह हकारि के धीर धरो नृप सम्मुख बादि के न्याय नमेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब कौन बिगार करे नर तेरो।।१

खग्ग उनग्गन बीच कढौ गिरी झांप गिरौ किन कूप अँधेरो।
ज्वाल करालन मध्य परो चढती सरिता पग ठेलि के गेरो।
राम सिया उर में धरि के प्रहलाद की साखि ते चित्त सकेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब, कौन बिगार सके नर तेरो।।२[…]

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घनश्याम मिले तो बताओ हमें -कवियत्रि भक्तिमति समान बाई

ऐसे घनस्याम सुजान पीया, कछु तो हम चिन्ह बतावें तुम्हें।
सखि पूछ रही बन बेलन ते घनश्याम मिलै तो बताओ हमें।।टेर।।

मनि मानिक मोर के पंखन में, जुरे नील जराव मुकट्टन में।
जुग कुण्डल भानु की ज्योति हरै, उरझाय रही अलके उनमें।
उन भाल पे केसर खौरि लसे रवि रेख दीपै मनु प्रात समै।
सखि पूछ रही बन बेलन ते घनश्याम मिलै तो बताओ हमें।।१[…]

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सिंधु-सौरभ – डॉ. शक्तिदान कविया

।।दूहा।।

दीवै सूं थांनक दिपै, पुसप सुगंध प्रमाण।
मोती ज्यूं दरियाव मझ, सिंध में त्यूं सोढाण।।1।।

पाळ धरम रण पौढियौ, खळ दळ जूंझे ख़ास।
सिंध में दाहिरसेन रौ, अमर हुवौ इतिहास।।2।।

धरा सिंध अवतार धिन, लीनौ झूलेलाल ।
चावौ ‘चेटी चंड’ रौ, सुभ उच्छब हर साल।।3।।

सिंधी भगतां में सिरै, राजै टेऊराम।
प्रेम प्रकासी सत्पुरुष, निकस्यौ चहुं दिस नाम।।4।।

साहू जांमां जमर सज, दोखी कर दहवाट।
हड़वेची बेहूं हमें, धर पूजीजै धाट।।5।।[…]

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मालण माताजी रा त्रिभंगी छंद – कवि डा. शक्तिदान कविया

।।दोहा।।
देवी दूलाईह, सुरराई शगत्यां शिरै।
मालण मंहमाईह, वसै विराई विसहथ।।

।।छंद – त्रिभंगी।।
देवी दूलाई, अंबे आई, परचां छाई प्रभुताई।
पावक प्रजाळाई, उठर आई, पग अरुणाई, प्रगटाई।
बाळापण बाई अम्ब उपाई पुनि पलटाई नींब प्रथी।
मालण महामाई, सदा सहाई, है सुरराई विशहथी।
जिय है वरदाई विशहथी॥1॥
टीकम टणकाई सुजस सवाई पह परणाई तिण पुलही।
गायां घेराई सिंध सराई वाहर धाई बिलकुल ही।
कव जीत कराई हुतब हलाई जमदढ खाई गळै जथी।
मालण महमाई सदा सहाई है सुरराई वीसहथी।
जिय है वरदाई वीसहथी॥2॥[…]

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