अपसूंण – चंद्रप्रकास देवल
सईकां लांबी
उण धा काळी रात रै सूटापै
सैचन्नण चांनणै
नाचण रै कोड सूं पग मांडिया ई हा
मादळ रओ आटौ थेपड़ियौ हौ आलौ कर
थाळी सारू डाकौ सोध्यौ हौ
के चांणचक म्हे-
आजादी रै मंगळ परभात
अमंगळ व्हैग्यौ ।
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सईकां लांबी
उण धा काळी रात रै सूटापै
सैचन्नण चांनणै
नाचण रै कोड सूं पग मांडिया ई हा
मादळ रओ आटौ थेपड़ियौ हौ आलौ कर
थाळी सारू डाकौ सोध्यौ हौ
के चांणचक म्हे-
आजादी रै मंगळ परभात
अमंगळ व्हैग्यौ ।
इणरौ इतिहास अनूठो है, इण मांय मुलक री आसा है ।
चहूंकूंटां चावी नै ठावी, आ राजस्थानी भासा है ।
जद ही भारत में सताजोग, आफ़त री आंधी आई ही ।
बगतर री कड़ियां बड़की ही, जद सिन्धू राग सुणाई ही ।
गड़गड़िया तोपां रा गोळा, भालां री अणियां भळकी ही ।
जोधारां धारां जुड़तां ही, खाळां रातम्बर खळकी ही ।
रड़वड़ता माथा रणखेतां, अड़वड़ता घोड़ा ऊलळता । […]
स्व. श्री कानदान “कल्पित” आधुनिक राजस्थानी कवियों में मंचीय कविता के एक बेजोड़ कवि हुए हें। राजस्थानी में लिखी अपनी कालजयी रचनाओं के कारण वे कवि सम्मेलनों की पहचान बन गए थे। राजस्थान में नागौर जिले में झोरड़ा नामक गाँव में आपका जन्म हुआ। आपकी कविताओं तथा गीतों में राजस्थानी लोक संस्कृति स्वयं साक्षात हो उठती है। खेत खलिहान, किसान, गांव, बालू मिटटी और रेत के धोरों में बीते बचपन में उन्होंने जीवन के विविध रंग देखे थे और ठेठ ग्रामीण परिवेश में जिए अपने बचपन के अनुभवों को इतनी सहजता से कविता में प्रस्तुत किया कि आम आदमी ने […]
» Read moreसुरेन्द्र सिंह रत्नू पुत्र श्री हिंगलाज सिंह जी रत्नू प्रपोत्र श्री गंगा सिंह जी रत्नू गाँव जिलिया चारणवास (ज़िला नागोर) का जन्म २२ अक्टूबर १९५१ को गाँव सेवापुरा में हुआ। स्टैट बैंक ओफ़ बीकानेर एण्ड जयपुर में मैनेजर के पद से रिटायर सुरेन्द्र सिंह जी ने श्री बांगड कॉलेज डीडवाना से साइंस मेथ्स में स्नातक किया तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ओफ़ बेंकर्स, मुंबई से C.A.I.I.B. करने के अतिरिक्त कम्प्यूटर की शिक्षा भी प्राप्त की। संगीत का शोक आपको शुरू से ही था। आपने गायकी में भातखंडे संगीत विद्यापीठ, लखनऊ से तीन वर्ष का डिप्लोमा भी किया। चिरजा गायन में आप एक […]
» Read moreजीवन परिचय जिन लोगों ने समाज और राष्ट्र की सेवा में अपना सर्वस्व ही समर्पित कर डाला हो, ऐसे ही बिरले पुरुषों का नाम इतिहास या लोगों के मन में अमर रहता है। सूरमाओं, सतियों, और संतों की भूमि राजस्थान में एक ऐसे ही क्रांतिकारी, त्यागी और विलक्षण पुरुष हुए थे – कवि केसरी सिंह बारहठ, जिनका जन्म २१ नवम्बर १८७२ में श्री कृष्ण सिंह बारहठ के घर उनकी जागीर के गांव देवखेड़ा रियासत शाहपुरा में हुआ। केसरी सिंह की एक माह की आयु में ही उनकी माता का निधन हो गया, अतः उनका लालन-पालन उनकी दादी-माँ ने किया। उनकी […]
» Read moreमारवाड़ राज्य के धुंधल गांव के एक सीरवी किसान के खेत में एक बालश्रमिक फसल में सिंचाई कर रहा था पर उस बालक से सिंचाई में प्रयुक्त हो रही रेत की कच्ची नाली टूटने से नाली के दोनों और फैला पानी रुक नहीं पाया तब किसान ने उस बाल श्रमिक पर क्रोधित होकर क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए उसे टूटी नाली में लिटा दिया और उस पर मिट्टी डालकर पानी का फैलाव रोक अपनी फसल की सिंचाई करने लगा। उसी वक्त उस क्षेत्र के बगड़ी नामक ठिकाने के सामंत ठाकुर प्रतापसिंह आखेट खेलते हुए अपने घोड़ों को पानी […]
» Read moreठाकुर केसरी सिंह महियारिया के इकलौते पुत्र कविवर नाथूसिंह महियारिया किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आप उदयपुर (मेवाड़) दरबार में राजकवि थे। बचपन में ये हमेशा अपने साथ एक पेंसिल तथा कागज रखते थे ताकि किसी भी समय अपने मन में उमड़ी बात को दोहों अथवा कविता के रूप में लिख सकें। नाथूसिंह जी का विवाह आसियानी जी से हुआ था। कविराज अपनी वाक् पटुता तथा साहस के लिए विख्यात थे। देश की आज़ादी के पश्चात चुनाव के समय की एक घटना है, कविराज नाथूसिंह जी अपना वोट देने के लिए वोटिंग बूथ में जा रहे थे और उसी समय […]
» Read moreपाकिस्तान में स्थित कई प्राचीन हिंदू मंदिरों में से सबसे ज़्यादा महत्व जिन मंदिरों का माना जाता है उन्हीं में से एक है हिंगलाज माता का मंदिर. ये वही स्थान है जहाँ भारत का विभाजन होने के बाद पहली बार कोई आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल गया है. इस अस्सी सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई की पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने और इस यात्रा को सफल बनाने में एहम भूमिका निभाई पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने. हिंगलाज के इस मंदिर तक पहुँचना आसान नहीं है. मंदिर कराची से 250 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है. हिंदू और मुसलमान दोनों […]
» Read moreदिल्ली पर बादशाह ओरंगजेब का राज था। औरंगजेब बहुत ही कट्टर शासक हुआ। जिसके राज्य में हज़ारों मंदिरों को तोड़ कर मस्जिदों में बदल दिया गया। इससे भी संतुष्टि नहीं हुई तो औरंगजेब ने विक्रम संवत 1736 की वैशाख सुदी द्वितीया (2 अप्रैल 1679) को एक फरमान जारी कर के हिन्दुओ पर जजिया नामक कर लगा दिया। वह कर बड़ी ही कठोरता से वसूल किया जाने लगा, जिसके फलस्वरूप अन्दर ही अन्दर हिन्दू प्रजा में इसके विरोध में आग सुलगने लगी, पर खुले रूप में इसका विरोध करने का साहस किसी ने नही किया। इस विकट परिस्थिति में महाराणा राजसिंह प्रथम ने पहल करते हुए जजिया के विरोध में एक पत्र […]
» Read moreसंवत १७४० के आसपास मेवाड़ के सूळवाड़ा नामक गांव में चारण जाति के कविया गोत्र में कवि करणीदान जी का जन्म हुआ वे राजस्थान की डिंगल भाषा के महाकवि तो थे ही साथ ही पिंगल, संस्कृत व ब्रज भाषा के भी विद्वान थे इन भाषाओँ में उन्होंने कई ग्रन्थ लिखे। उनके लिखे “सुजस प्रकास” व “बिडद सिणगार” ग्रन्थ बहुत ख्यात हुए। उस जमाने में लोगों के जातिय ढोंग व आचरण देख उन्होंने “जतोरासो” नामक ग्रन्थ लिखा जिसमे समाज के ऊपर तीखे कटाक्ष थे, पर एक साधू के कहने पर वो ग्रन्थ उन्होंने खुद ही जला डाला। उस वक्त की राजनीती […]
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