खोडियार माताजी रो सपाखरु गीत – पुष्पेन्द्र जुगतावत

खोडियार माताजी रो सपाखरु गीत
(रचयिता: पुष्पेन्द्र जुगतावत, गाँव पारलाउ)

हंसावाहणी नमावौ शीश मां तणी आशिश हेर,
बेर अणी कुळांदेवी नमूं बार बार।
चारणां उबार मार पापियां तणा समूह
खळ दळ खपावणी खंग खोडियार॥1॥ […]

» Read more

चिरजा – मोहन सिंह रतनू

।। चिरजा ।।

मनवा मात सुमर जग मोंही थारो अवसर जाय अकाजा….टेर

दिल सुध सू आवे दुखियारी,देसनोक दरवाजा ।
रोग दोस हर मात रूखाले,तन कर देवे ताजा ।। मनवा….१

ढोल नगारा झालर ढोलक,बाजे नोबत बाजा ।
चिरजा छंद सुणावे चारण,भक्तन के हिय भाजा ।। मनवा….२ […]

» Read more

मांझल रात अमोल-वैतालिक

सौ कोसां साजन बसे, पूगावै उण पोळ।

सुपना वाळ सुहामणी, मांझल रात अमोल॥1

बालम तौ जालम घणौ, करतौ टाळम टौळ।

(पण) सुपने सजण मिलावती, मांझल रात अमोल॥2

इक चंदौ आकाश में, दूजौ रंग रे म्हौल।

झिल मिल झिल मिल जोसना, मांझल रात अमोल॥3 […]

» Read more

काल़िया के सोरठे-शंभू दान बारठ कजोई

पाल़ै सदा हि प्रीत,अबखी वेल़ा आयने।
मानो साचो मीत,कल़जुग मांही काल़िया।।१।।
गफलत मांय गंवार,लङे अपणोंं सु लोक में।
सम्पती मे ही सार,कल़जुग मांही काल़िया।।२।।
लगनी नित लगाय,हरि ने सिमरे हेत सूं।
निरफल जासी नांय,करणी वांरी काल़िया।।३।। […]

» Read more

काळिया रा सोरठा

गळ विच गूंजामाळ,मोर पंख रो मौड सिर।
रहजै थूं रखवाळ,करूणा सागर काळिया॥1
कविता बाग-कळीह,सौरम देवै सांतरी।
भावां शबद भरीह,केवूं साची काळिया॥2
अनहद नद बध बध बहै,अंतस होय अणंद।
दूहा सोरठा छंद,कल कल धारा काळिया॥3 […]

» Read more

ख्यात आईनाथ री अनोपो वखाणे-अनोप जी वीठू

श्री सुरसती गणपति वृहसपति शारदा,उकति सम्मपो अन्नदाता।
सापतातम्म री वारता सुणावां,मोतीवाळी हुई जगत माता॥1

हेमाळा पहाड सुं निसरे हालतो,गळियोडा बरफ रो नीर गोटो।
हिंद अर सिन्ध रै बीच मंह होयनै,मोतियां भरोडो पेट मोटो॥2

तिब्बत कम्बोज सुं उतरे ताकडो,हाकडो नांम दरियाव हाले।
घिरोळा देवतो बण्यो घण घमंडी,रतन रतनाकरो मांय राळै॥3 […]

» Read more

दुव सेन उदग्गन – वंश भास्कर

।।छंद दुर्मिला।।
दुव सेन उदग्गन खग्ग समग्गन अग्ग तुरग्गन बग्ग लई।
मचि रंग उतंगन दंग मतंगन सज्जि रनंगन जंग जई।।१।।
लगि कंप लजाकन भीरु भजाकन बाक कजाकन हाक बढी।
जिम मेह ससंबर यों लगि अंबर चंड अडंबर खेहू चढी।।२।।

» Read more

रे फूलों रा राजवी

रे फूलों रा राजवी, गाढा रंग गुलाब।
दरस परस दोनूं कियां, दुख दे मन रा दाब॥1

गहरा फूल गुलाब जी, आयौ थारे पास।
आणँद मन नें आपजै, मन मत करे निराश॥2

गहरा फूल गुलाब रा, कंटक मँह आवास?
सबरो घर सुरभित करे, पण खुद ने दे त्रास।3 […]

» Read more

गुलाब लाजवाब है

छंद नाराच

हरी हरी ज पांनडी लगे घणी सुहावणी।
कळी फबै है फूटरी मनां तनां लुभावणी।
पणां सँभाळ कंटकां इ’रा घणा खराब है।
लख्यौ ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥1

कळी कळी महेकती गळी गळी सुबास है।
सुगंध चारू कूंट में हरेक रो औ खास है।
जणां जणां मनां तणो रिझावणौ जनाब है।
लख्यौ ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥2 […]

» Read more

गीत गिरधर दान जी सा दासोड़ी री काव्य प्रतिभा रो-जगमाल सिंह ज्वाला रचित

गिरधर दान जी सा दासोड़ी, आपरी काव्य प्रतिभा ने नमन करता थका आपरे श्री चरणों में आ गीत राखु। म्हे जेड़ो देख्यो अर सुण्यो वा ओपमा देवण री कोशिस करी।

शेल पर दिखे ज्यो चमकतो चाँद लो।
एम ही गिरधर आखरां ओपे।
गद्य री पद्य री जाण अति गूढ़ता।
रस में झाड़ रा झाड़ तू रोपे।1।

» Read more
1 21 22 23 24 25 30