सीस उबेल़ण आव शकत्ती।-अज्ञात
मढ हूँत बेग पलाण मखत्ती, बावन झूल सहेत बखत्ती
हेकण ताल़ी बाघ हकत्ती, सीस उबेल़ण आव शकत्ती।
साख बीससत काज सरन्नी, बेद किसो जिण जाय बरन्नी
धाबल़ लोवड़ ताय धरन्नी, कवि उबारण आव करन्नी।
शीश चाड जणा साद सुणीजे भारी हुवै कामल़ी भीजे
देबी आय बेग सुख दीजे, किनियाणी अब जेज न कीजे […]