सुंधा मढ ब्राजै सगत
छपन क्रोड़ चामुंड अर, चौसठ जोगण साथ।
नवलख रमती नेसड़ै, भाखर सूंधा माथ।।१
झंडी लाल फरूकती, जोत अखंडी थाय।
मंडित मंदिर मात गिरि, राजे सुंधा राय।।२
रणचंडी दंडी असुर, सेवक करण सहाय।
बैठी मावड़ बीसहथ, सगती सुंधाराय।।३
डाढाल़ी दुख भंजणी, गंजण अरियां गात।
भाखर सुंधा पर भवा!, चामंड जग विख्यात।।४[…]