नज़्म – नजर नें छू लिया जिस दम

नजर नें छू लिया जिस दम तो मेरे दिल ने ये सोचा,
यहाँ पर हर किसी का चाँद सा चेहरा नहीं होता।
मगर फिर भी मुझे वो चाँद का ही अक्स लगता है,
नहीं तो इस कदर मह दीद को ठहरा नहीं होता।१

जेहन में जिक्र आता है जब उस रूखसार का मुझको,
तो दिल मेरा पुकारे है वो गहरी झील सा होगा,
पतंगा बन मेरा मन जलने को बेताब सा होगा,
और वह भी इश्क में मेरे जला कंदील सा होगा।।२[…]

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वठे झबूकै बीजल़ी

।।दोहा।।

आज मँड़ी सावण झड़ी, बड़ी पडी बरसात,
नड़ी नड़ी नाची सखी, खड़ी खड़ी हरखात।।१

बरसे नभ में वादल़ी, घूंघट बरसे नैण।
तरुणी पिव बिन तरसती, सावण घर नीं सैण।।२

वठै झबूकै बीजल़ी, अठै झबूकै नेण।
बरसो घन ह्वै बालमा!, सावण में सुखदेण।।३

बीज पल़क्कै बिरह री, नैण छलक्कै नीर।
रैण ढल़क्कै राज! बिन, धारूं किण विध धीर।।४[…]

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दई न करियो भोर

।।दोहे।।
कजरी, घूमर, लावणी, कत्थक, गरबा, रास।
थिरकूं हर इक ताल पे, जब आये पिय पास।।१
बीण, सितार, रबाब, ड़फ, मुरली ढोल मृदंग।
जब वो आए ख्वाब में, सब बाजै इक संग।।२
खड़ी याद की खेज़ड़ी, मन मरुथल के बीच।
शीतल जिसकी छाँव है, सजन! स्नेह जल सींच।।३
अँसुवन काजल कीच में, खिले नैन जलजात।
खुशबू से तर याद की, मन भँवरा सुख पात।।४[…]
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जावण नीं द्यूं नंदकुमार

जावण नी द्यूं नंद कुमार!
रोकण करसूं जतन हजार!

नैण कोटड़ी राज छुपायर, बंद पलक कर द्वार।
दिवस रैण प्हेरो हूं देवूं, काढे़ काजल़ कार!।।१

जावण नी द्यूं नंद कुमार!
रोकण करसूं जतन हजार!

रोज रीझावूं रसिक मनोहर, निज रो रूप निखार।
प्हेर पोमचो नाचूं छम छम, सज सोल़े सिणगार।।२[…]

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गंगा स्तवन

🌺दोहा🌺
जय गंगे! जय जाह्नवी, तरल तरंगे आप।
शंकरमौलि विहारिणी, सुरसरि हर संताप।।१
अच्युत-चरण-तरंगिणी, हिमगिरि करण विहार।
जय पातक हर जाह्नवी, हे! जग पाल़णहार।।२

🌷छंद त्रिभंगी🌷
अंबा-अरधंगे!, हणण अनंगे!, मस्त मलंगे!, मातंगे!
भूतावल़ स़गे!, कंठ भुजंगे!, भव! भसमंगे!, तन नंगे!
पीवत नित भंगे!, उण उतबंगे!, रमणी रंगे, मनहारी!
जय भगवति गंगे!, तरल तरंगे, सरल सुचंगे, अघहारी!!१[…]

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देवी स्तुति

जय जग जननी! आसुर हननी! विश्व विनोदिनी! अंबा!
जगत पालिनी देवि! दयालिनी!, ललिता! मां! भुजलंबा!!१

विपद विदारिणी! त्रिभुवन तारिणी! नेह निहारिणी! करणी!
पातक हरणी! अशरण शरणी! तारण भव जल तरणी!!२

सिंहारूढ! अगम अतिगूढा! सकल सुमंगल दानी!
वंदन बीसभुजी! वरदायिनि!, भैरवी! भवा! भवानी!!३[…]

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मेहाई सतसई – नरपत आसिया “वैतालिक”

मेहाई सतसई

कवि नरपत आसिया “वैतालिक” कृत

अमर शबद रा बोकडा, रमता मेल्या राज।
आई थारे आंगणैं, मेहाई महराज॥
(शब्द रूपी अमर बकरा हे माँ आई मेहाई महराज आपरा मढ रे आंगण में रमता मेल रियो हूँ।)

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साँवरा!बाजी खेलो! चोपड़ ढाल़ी!

साँवरा! बाजी खेलो! चोपड़ ढाल़ी!
हारूं तो हरि दासी थोंरी, जीत्यां थें मारा वनमाल़ी!

नटनागर जाजम है ढाल़ी, बैठो आप बिचाल़े।
म्हूँ बैठूं चरणाँ रे नेड़ी, पीव पलांठी वाल़े।।
धवली कबड़ी रख धरणिधर, म्हनै दिरावो म्हारी काल़ी।।१

साँवरा! बाजी खेलो चोपड़ ढाल़ी!
हारूं तो हूं दासी थोंरी, जीत्यां थें मारा वनमाल़ी![…]

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चाय – ग़ज़ल

मीठी मिसरी वाली चाय!
या हो बिलकुल काली चाय!

दूध मिलाकर पीते जब भी,
लगती तभी निराली चाय!

लेमन वाली, अदरक वाली,
मन को दे खुशहाली चाय!

हरा पुदीना इसमें डाला,
नहीं फकत यह खाली चाय![…]

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श्री करनी सुख रूप

लाठी लोवड़ियाल़ री, काठी जिणरी मार।
लागै पण लाधै नहीं, वीसहथी रो वार।।
पग पग पातक पेखियौ, जगै जगै पर झूठ।
इण सूं धर जांगल़धणी, अंब अराधूं ऊठ।।
करनी! जरणी धरणि री, तरणी करणी पार।
दुखहरणी बरणी इहग, सुख करणी संसार।।
खेंचरनी भुचरनी मां, दलणी दुष्ट हजार।
करनी बरनी मुकुटमणि, सरणी-अशरण-सार।।[…]

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