मायड़भासा में शिक्षा अर व्यक्तित्व विकास

शिक्षा संस्कारां रो समंदर है। गुणीजनां रो मानणो है कै शिक्षा मिनख रै व्यक्तित्व रो सर्वांगीण विकास करै। मिनख नैं मिनख बणावण रो काम करै शिक्षा। आज रै समै री सबसूं बड़ी विडम्बना आ है कै मिनख तो बढ़ता जा रैया है पण मिनखपणै री मंदी आयगी। राजस्थानी लोकसाहित्य रो अेक दूहो है कै-

मिनख घणां ईं मुलक में, मिनखां तणो सुगाळ।
(पण) ज्यां मिनखां में मिनखपण, वां मिनखां रो काळ।।

मतलब ओ है कै मोकळी कोकळ बधरी है पण मिनखाचारो घटतो जा रैयो है।[…]

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गीत जोरावरपुरा माताजी रो

डीडवाना के पास एक गाँव है जोरावरपुरा। अमरावत बारठों का गाँव है। वहां के चमत्कारी करनी मंदिर के दर्शन करके मां के चरणों में एक गीत निवेदन –

।।गीत साणौर।।
करै खास अरदास सब दास सुण करनला
आस कर आपरै द्वार आया।
मन्न में जास विश्वास अत मावड़ी
देविका रखाजे परम दाया।।
बळू तू कळू में रहीजे बीसहथ
चळूनद सोखणी मात चंडी।[…]

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घी ढूळ्यो तो ई मूंगां मांहीं

आपणै राजस्थानी लोकजीवण मांय अेक कैबत चालै कै “घी ढूळ्यो तो ई मूंगां मांहीं”। इणरो प्रयोग साधारण रूप सूं उण ठौड़ करीजै जठै आपणै कोई नुकसाण हुवै पण उण नुकसाण सूं आपांनैं घणो धोखो कोनी हुवै क्यूंकै आपणै नुकसाण सूं कोई आपणै ई खास आदमी नैं फायदो हुवै जणां उण नुकसाण री मनोमन भरपाई करल्यां। जियां कोई लावणो बांटण आवै अर बडै भाई री ठौड़ छोटकियै भाई रै घरै लावणो देज्यावै। पछै जद ठा पड़ै तो कईजै कै कोई बात नीं घी ढूळ्यो तो मूंगां मांहीं।[…]

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बंदूकों से बात करो

मन की बातें बहुत हो गई, बंदूकों से बात करो।
टैंकों को बढ़ने दो आगे, आगे बढ़ आघात करो।
फोजों को मन की करने दो, होना है सो होने दो।
चीन भले करता हो चीं चीं, रोता है तो रोने दो।
राजनीति की रँगे खिलाड़ी, अब तो रँग दिखाओ तुम।
पल पल धोखा दिया उसे कुछ, अब तो सबक सिखाओ तुम।
कूटनीति के कौशल सारे, दिखलाने की बारी है।
विश्व पटल पे भारत की, कहदो कैसी तैयारी है।[…]

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21 वीं सदी की चुनौतियां और साहित्य-सृजन

21 वीं सदी में साहित्य का पाठकवर्ग ऊहापोह की स्थिति में है। आज के मध्यम या निम्न परिवार के पिता के लिए यह बड़ा संकट है कि वह अपने बेटे-बेटी के साथ घर-परिवार और पढ़ाई के अलावा कोई और बात करे तो क्या करे, जिससे वह अपनी औलाद को सामाजिक सरोकारों से जोड़ सके। साहित्य की विविध विधाएं हैं और फिल्म भी साहित्य का एक हिस्सा है, सब क्षेत्रों में सजग होना होगा। सामाजिक सरोकारों तथा मानवीय मूल्यों को बचाकर रखने का कार्य साहित्य का है अतः साहित्य को पूरे समाज का समग्र प्रतिबिंब बनना होगा।[…]

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साख रा सबद

‘दलित-सतसई’ श्री लक्ष्मणदान कविया री सद्य प्रकाशित काव्यकृति है। इणसूं पैली सतसई सिरैनाम सूं आपरी रूंख-सतसई, रुत-सतसई, मजदूर-सतसई अर दुरगा-सतसई (अनूदित) आद पोथियां छपी थकी है। दूहा छंद में सिरजी आ पोथी ‘दलित-सतसई’ आपरै सिरैनाम री साख भरती दलितां री दरदभरी दास्तान रो बारीकी सूं बखाण करै। कवि रो मानणो है कै मिनख मिनख सब अेक है पण मामूली स्वारथां रै मकड़जाळ में फंसियोड़ा मिनखां मिनखाचारै पर करारी मार मारी अर मिनखां में फांटा घाल दिया।[…]

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घड़ा लीवी पण जड़सी कुण

अेकर अेक गाम में कुत्तां री भरमार होगी। गळी-गळी में गंडकां रा टोळा फिरै। चावै जिकै घर में मौको लागतां ई गंडकां री डार आ बड़ै अर लाधै ज्यांनैं ई चट कर ज्यावै। लोगां आप आपरै घरां रै किंवाड़ लगा लिया। अेक दो आळसी हा बां ई दौरा-सौरा किंवाड़िया लगा’र गंडकां सूं गैल छुडावण रो जतन कर्यो। सगळै घरां रै किंवाड़ देखतां ई कुत्तां मिटिंग करी अर फैसलो लियो कै भाई अबै इण गाम में आपणी पार कोनी पड़ै। कठैई दूजी जाग्यां देखां।[…]

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बाळपणो बर-बर बतळावै – हेत-हथायां हमैं कठै

“छाती दुखै, गोडा दुखै; छाती दुखै, गोडा दुखै” इण ओळी नैं होळै-होळै बोलतां-बोलतां बां इयांकली गड़कै चाढ़ी कै आखती-पाखती बैठा लोगड़ां री बाक फाटगी। मूंढ़ै सूं आवाज निकाळणै रै साथै-साथै बै आपरै डील अर हाथ-पगां नैं ई इयां संचालित करै हा जाणै कोई सावचेती सूं कीं काम नैं सिग चाढ़तो हुवै। सगळा सोचण लाग्या डोकरां रै हुयो कांई ? अेको सांस “छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै” री रुणकार अेक-डोढ मिनट ताणी इकसार लागती री। सुर होळै सूं तेज, और तेज, और तेज हुयो। छेवट अेकदम सूं रुणकार रुकगी, जाणै कोई “इमरजेंसी-ब्रैक” लाग्या हुवै।[…]

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🌷घनाक्षरी कवित्त 🌷

कुंभा से कला प्रवीण, सांगा से समर वीर,
प्रणधारी पातळ की मात महतारी है।
प्रण हेतु परणी को चंवरी में छोड़ चले,
काळवीं की पीठ चढ़े पाबू रणधारी है।।
मातृभूमि की पुकार सुनिके सुहाग रात,
कंत हाथ निज सीस सौंपे जहां नारी है।
कर के प्रणाम निज भाग को सराहों नित,
रणबंकी राजस्थान मातृभू हमारी है।।01।।[…]

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आफत नीं आभूषण है बुजुर्ग

अबै आयो बुढापो। मुंशी प्रेमचंदजी ‘बुढापै नै बाळपणै रो पुनरागमन’ बतायो है। आ बात साव साची है। आदमी रो मन बेगो सो’क बूढो कोनी हुवै। बाळपणै में टाबर रो मन करै कै तेज दौड़ूं पण सरीर सांभणो कोनी आवै जणा दौड़ीजै कोनी। मन में आवै कै चांद नै पकड़ूं पण हाथ आवै नीं। घर में पड़ी चीजां रै ढोळण-पंचोळण री घणी जी में आवै पण घर वाळा पार नीं पड़ण द्यै। लबोलवाब ओ कै बाळापै में मन तो बणै पण तन रो साथ कोनी मिलै। आ री आ गत बुढापै में हुवै। मन तो मालजादो मोट्यार रो मोट्यार रैवै, बेगो सो क्यांरो मानै। ताल मिलतां ई तालर घालण ढूकै पण गोडा साथ द्यै जणा। […]

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