सांईदीन दरवेश – एक ओल़खाण

मध्यकालीन राजस्थानी काव्य में एक नाम आवै सांईदीन दरवेश रो। सांईदीनजी रै जनम विषय में फतेहसिंह जी मानव लिखै कै- “पालनपुर रियासत रै गांम वारणवाड़ा में लोहार कुल़ में सांईदीनजी रो जनम हुयो। सांईदीनजी बालगिरि रा चेला हा। ”

सूफी संप्रदाय अर वेदांत सूं पूरा प्रभावित हा। भलांई ऐ महात्मा हा पण पूरै ठाटबाट सूं रैवता। अमूमन आबू माथै आपरो मन लागतो। तत्कालीन घणै चारण कवियां माथै आपरी पूरी किरपा ही। आपरी सिद्धाई अर चमत्कारां री घणी बातां चावी है। जिणां मांय सूं एक आ बात ई चावी है कै ओपाजी आढा नै कवित्व शक्ति आपरी कृपादृष्टि सूं मिली। सांईदीनजी रै अर ओपाजी रै बिचाल़ै आदर अर स्नेह रो कोई पारावार नीं हो।[…]

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भइयो भाटी भैर!

दिन ऊगां दातार, आखै जस सारी इल़ा।
सूमां रो संसार, नाम न जाणै नाथिया।।

कवि कितरी सतोल अर सखरी बात कैयी है कै दातार भलांई कदै ई हुयो हुसी पण उणरो नाम सारी धरती जाणै अर सूमां रो नाम कोई लैणो ई नीं चावै। इणी खातर तो ईसरदासजी नै ई कैणो पड़्यो कै ‘दियां रा देवल़ चढै’ देवै सो अमर अर नीं देवै तो कवियां निशंक कह्यो है-

सर्वगुन ज्ञाता होय यद्यपि विधाता हो पे,
दाता जो न होय तो हमारे कौन काम को?[…]

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नवल हुतो जद नैरवै

थलवट भांयखै रो गांम जुढियो समृद्ध साहित्यिक परंपरा रै पाण आथूणै राजस्थान में आपरी ठावी ठौड़ राखै। एक सूं बध’र एक सिरै कवि इण गांम में हुया जिणां राजस्थानी डिंगल़ काव्य नै पल्लवित अर पुष्पित कियो। उणरो हाल तांई चिन्योक ई लेखो-जोखो नीं हुयो है।

इणी गांम में सिरै कवि नवलदानजी लाल़स रो जनम हुयो। जद ऐ फखत आठ वरस रा ईज हा तद इणां रै मा-बाप रो सुरगवास हुय चूको हो। चूंकि इणांरा पिताजी रेऊदानजी लाल़स पाटोदी ठाकरां रा खास मर्जीदान हा सो इणांरो आगै रो पाल़ण-पोषण उठै ईज हुयो। उठै ईज दरवेश सांईदीनजी इणांनै आखर ज्ञान दियो।[…]

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संस्कारां रै संकट सूं जूझता रिश्ता

राजस्थान री संस्कृति, प्रकृति, जीवनमूल्य, परंपरा अर स्वाभिमानी संस्कारां री अंवेर करण वाळो अंजसजोग छापो ‘रूड़ौ राजस्थान’ तर-तर आपरौ रूप निखारतो, सरूप सँवारतो, समै री माँग मुजब सामग्री परोटतो पाठकां री चाहत रो केंद्र बणतो जा रैयो है। इण ओपतै अर उल्लेखणजोग छापै रा सुधी-संपादक भाई श्री सुखदेव राव मायड़भाषा राजस्थानी अर मायड़भोम राजस्थान रै गौरवमय अतीत रा व्हाला विरोळकार है। इण रूड़ौ राजस्थान छापै रै दिसंबर, 2019 अंक में आपरै इण नाचीज़ मित्र रो एक आलेख छपियो है, इण सारू भाई सुखदेव जी राव रौ आभार अर आप सब मित्रां सूं अपेक्षा कै आज रै समै परवाण ‘संस्कारां रै संकट सूं जूझता रिश्ता’ री साच सोधण सारू ओ आलेख ध्यान सूं पढ़ण री मेहरवानी करावजो।[…]

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राष्ट्रवादी चिंतन के कवि बांकीदास जी आशिया – राजेन्द्रसिंह कविया

जोधपुर महाराजा श्री मानसिंह जी के कविराजा व भाषागुरू श्री बांकीदास जी आशिया बहुत ही प्रखर चिंतक व राष्ट्रवादी कवि थे। उस समय आज से लगभग दो शताब्दी पूर्व जब संचार के साधनों का अभाव था, उस समय में ही कवि भारतवर्ष मे घटित घटनाओं पर अति सूक्ष्मदृष्टि रखता था, साथ ही अपनी कलम व कविता से राष्ट्र के साथ विश्वासघात करने वाले व्यक्तियों की पूरजोर भर्त्सना भी करता था।
भरतपुर महाराजा व अंग्रेजों के बीच हुये युध्द में जब भरतपुर के साथ रह रहे नागा साधू अंग्रेजों के साथ मिलकर भरतपुर राज्य से दगाबाजी कर धोखे से किले के दरवाजे खुलवा कर भरतपुर की प्रत्यक्ष हार के कारक बन गये, तब जोधपुर मे बैठै कवि का ह्रदय अति क्षुब्ध व कुंठित हुआ और कवि ने उनकी काली करतूत का कविता के माध्यम से विसर काव्य लिखा।[…]

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राष्ट्राराधना का गौरवमय काव्य: क्रांतिकारी केहर केसरी

“इदम् राष्ट्राय, इदम् न ममः” की अमर सूक्ति को यत्र-तत्र-सर्वत्र सुनने-सुनाने का सुअवसर पाकर भी हम अपने आपको धन्य मानते हैं लेकिन असल में उन हूतात्माओं का जीवन धन्य है, जिन्होंने इस महनीय आदर्श को अपने जीवन एवं आचरण से चरितार्थ किया है। राष्ट्रहितार्थ अपना सर्वस्व न्योच्छावर करके भावी पीढ़ी के लिए मिसाल कायम करने वाले असंख्य प्रातःस्मरणीय भारतीय चरित्रों में से एक अति विशिष्ट चरित्र है- क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ। वीर वसुंधरा के विरुद से विभूषित भरतभूमि का इतिहास ऐसे असंख्य वीरों के शौर्य की गाथाओं से परिपूर्ण है, जिनको स्मरण करके हर भारतीय को गौरव की अनुभूति होती है।[…]

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रहसी रै सुरताणिया!

वीरता अर वीर आज ई अमर है तो फखत कवियां या कविता रै पाण। क्यूंकै कवि री जबान माथै अमृत बसै अर उण जबान माथै जिको ई चढ्यो सो अमर हुयो। भलांई उण नर-नाहरां रो उजल़ियो इतियास आज जोयां ई नीं लाधै पण लोकमुख माथै उण सूरां रो सुजस प्रभात री किरणां साथै बांचीजै।

ऐड़ो ई एक वीर हुयो सुरताणजी गौड़। हालांकि कदै ई गौड़ एक विस्तृत भूभाग माथै राज करता पण समय री मार सूं तीण-बितूण हुय थाकैलै में आयग्या।

इणी गौड़ां मांय सूं ई ऐ सुरताणजी गौड़ हा।[…]

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करनी जी – सुरेश सोनी (सींथल)

सन् 1386 की बात है।

जोधपुर जिले के सुवाप गांव में मेहाजी किनिया के घर उत्सव का माहौल था, क्योंकि उनकी पत्नी देवल देवी आढ़ा के छठी सन्तान होने वाली थी तथा पहले से पांच पुत्रियों के होने के कारण इस बार सभी को पूरा विश्वास था कि पुत्र ही होगा और इस सम्बन्ध में उत्सव की समस्त तैयारियों के साथ दो दाइयों मोदी मोलाणी व आक्खां इन्द्राणी को भी बुलवा लिया गया था।

परन्तु न केवल वह दिन बीत गया, बल्कि सप्ताह व माह भी बीत गया।

इस प्रकार नौ माह बीत जाने के बाद भी प्रसव नहीं हो रहा था, जिससे सभी बेहद चिन्तातुर हो उठे थे। धीरे-धीरे एक-दो नहीं वरन दस माह और बीत गए, मगर फिर भी प्रसव नहीं हुआ।[…]

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प्रीत पुराणी नह पड़ै

हिंदी-राजस्थानी के युवा प्रखर कवि व लेखक डॉ.रेवंतदान ‘रेवंता’ की आदरणीय डॉ.आईदानसिंहजी भाटी पर सद्य संस्मरणात्मक प्रकाशित होने वाली पुस्तक के लिए ‘फूल सारू पांखड़ी’—-

मैं यह बात बिना किसी पूर्वाग्रह के कह रहा हूं कि राजस्थानी लिखने वाले तो ‘झाल’ भरलें उतने हैं परंतु नवपौध को सिखाने वालों की गणना करें तो विदित होगा कि ये संख्या अंगुलियों के पोरों पर भी कम पड़ जाए। या यों कहें तो भी कोई अनर्गल बात नहीं होगी कि राजस्थानी में उन लेखकों की संख्या पांच-दस में ही सिमट जाती हैं जिनसे नई पीढ़ी प्रेरित होकर उनका अनुसरण करें।[…]

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संवेदनाओं के पर्याय महाकवि पृथ्वीराज राठौड़

आज राजस्थान और राजस्थानी जिन महान साहित्यकारों पर गौरव और गर्व करती है उनमें से अग्रपंक्ति का एक नाम हैं पृथ्वीराजजी राठौड़

बीकानेर की साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर के धोरी और धुरी थे पृथ्वीराजजी राठौड़। इसलिए तो महाकवि उदयराजजी उज्ज्वल लिखतें हैं-

नारायण नै नित्त, वाल्ही पीथल री धरा।
सुरसत लिछमी सत्थ, ऐथ सदा वासो उदय।।[…]

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