1857 का स्वातंत्र्य संग्रामऔर चारण साहित्य-डॉ. अंबादान रोहड़िया

भारत पर विदेशियों के आक्रमण की परंपरा सुदीर्घ नज़र आती है। अनेक विदेशी प्रजा यहाँ भारतीय प्रजा को परेशान करती रही है। इनमें ब्रितानियों ने समग्र भारतीय प्रजा और शासकों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था। भारतीय प्रजा को जब अपनी ग़ुलामी का अहसास हुआ तो उन्होंने यथाशक्ति, यथामति विदेशी हुकूमत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। इस आंदोलन की शुरुआत थी 1857 का प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम। 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम के प्रभावी संघर्षों तथा उनकी विफलता के कारणों के बारे में विपुल मात्रा मे ऐतिहासिक ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। किंतु फिर भी, बहुत सी जानकारी, घटनाएँ, प्रसंग या व्यक्तियों के संदर्भ में ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। 1857 के संग्राम विषयक इतिहास की अप्रस्तुत कड़ियों को श्रृंखलाबद्ध करने हेतु इतिहास, साहित्य और परंपरा का ज्ञान तथा संशोधन की आवश्यकता है। इसके द्वारा ही सत्य के क़रीब पहुँचा जा सकता है। यहाँ 1857 के स्वातंत्र्य संग्राम में सहभागी चारण कवि कानदास महेडु की रचनाओं को प्रस्तुत करने का एक विनम्र प्रयास है।[…]

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हुकम!ओ ई चंदू रो भतीजो है!!

कोई पण जिण रेत में रमै अर जिण कुए सूं काढ पाणी पिवै उणरो असर कदै ई जावै नीं। इणगत रा पुराणा दाखला आपांरी मौखिक बातां अर ख्यातां में पढण अर सुणण नै मिल़ै। ऐड़ी ई एक रेत अर पाणी रै असर री मौखिक कहाणी सुणणनै मिल़ै जिकी आप तक पूगती कर रैयो हूं। ठिरड़ै (पोकरण) रो गाम माड़वो आपरी वीरत अर कीरत रै पाण चारण समाज में ई नीं अपितु दूजै समाजां में चावो रैयो है। इणी धरा माथै हिंगल़ाज सरूपा देवल रो जनम होयो तो देवल सरूपा चंदू माऊ जनमी, जिणरै कोप सूं पोकरण ठाकुर सालमसिंह मरियो-

जमर चंदू थूं जल़ी, तैंसूं कूण त्रिसींग।
पोढी हंदो पाटवी, सोख्यो सालमसींग।
चंदूबाई परचो चावो रे, आयल म्हारै हेलै आव।।
~~जगमालजी मोतीसर

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आप गिनायत हो! नीतर मांगता सो हाजर

कवि अर कविता री कूंत रो अद्भुत प्रसंग

किणी कवि कविता नै संबोधित करतां कविता नै चारणां रैअठै हालण रो सटीक कारण बतायो है, कै चारण प्राकृतिक रूप सूं काव्य रा प्रेमी होवै सो कविता अधूरी है तो पूरी करावैला अर जे पूरी है तो मुक्तकंठ सूं प्रशंसा करेला-

हाल दूहा उण देसड़ै, जठै चारण बसै सुजाण।
करै अधूरा पूरती, पूरां करै बखाण।।

ऐड़ो ई एक काव्य प्रेम रो अजंसजोग प्रसंग है ऊजल़ां रै गुलजी ऊजल़ (गुलाबजी) रो। ठिरड़ै रो गाम ऊजल़ां आपरी साहित्यिक अर सांस्कृतिक विरासत रै पाण चावो रैयो है। मोगड़ा रा संढायच गोपालजी रै तीन बेटा 1रानायजी 2सोढजी 3ऊदलजी (शायद ऊदलजी रो ई नाम ऊजल़जी होवैला) इणी ऊदलजी री वंश परंपरा में लालैजी नोखावत नै गोविंद नारावत ऊजलां गाम सांसण इनायत कियो। इणी गौरवशाली वंश परंपरा में[…]

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महापुरूष देवाजी महियारिया

बुन्दी राज्य के देवा महियारिया एक कुशल राजनीतिज्ञ, वीर, धीर, व विद्यानुरागी पण्डित होने के कारण बुन्दी के राव शत्रुशाल हाडा के परम मित्र व सलाहकार सहयोगी थे। शत्रुसाल उनसे अत्यन्त प्रभावित थे तथा उनकी योग्यता को पुरस्कृत करना चाहते थे। परन्तु देवा महियारिया धन के नहीं सनातन धर्म के मित्र थे। फिर भी शत्रुसाल हाडा के विशेष निवेदन पर लाख पसाव लेना स्वीकार किया व तत्काल अपनी कीर्ति के रखवाले मोतीसर व रावळों को लाख पसाव बांट दिया।[…]

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सांस्कृतिक-झरोखा – डा. आई दान सिंह भाटी

मैं चानण खिड़िया बोर ग्राम मारवाड़ निवासी आपके सामने कुछ बातें रखना चाहता हूँ। यों तो इतिहास राजपूतों और चारणों के सम्बन्धों से भरा पड़ा है पर मैंने जो देखा और किया वैसा विरलों ने ही देखा होगा, किया होगा। मैं जिस बोर ग्राम में जन्मा, उसे छोड़कर मेरे पिता लुम्बटजी पाघड़ी ग्राम में आ बसे। यह ग्राम सूराचंद ठिकाने का था और सूराचन्द के ठाकुर मेरी कविताओं पर रीझ गये थे। मैं पिताजी के साथ यहीं रहने लगा। पर यह तो मेरी यात्रा का प्रारम्भ था।[…]

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कविता की ताकत

मोरबी जहाँ से मैने इंजनीयरिंग करी थी उस पर बनाई हुई रचना । इस रचना के पीछे एक कहानी जुडी हुई है मेरा चार साल का इंजनीयरिंग छह साल तक लंबा हो गया और उस पर सेवन्थ सेमेस्टर में मेरे ए टी के.टी एक सबजेक्ट में आई। जिसकी वजह से एट्थ सेमेस्टर के बाद भी मुझे एक महिना और रुकना पडा। जब फेयरवेल के फंक्शन में मुझे किसी ने पूछा कि मोरबी के बारे में आपका क्या खयाल है तो यह रचना उसके जवाब में मैंने सुनाई यह कहकर कि हालात बदल जाते है तो खयालात अपने आप बदल जाते है। […]

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चारणों के गाँव – हरणा, मोलकी तथा हाड़ोती के अन्य मीसण गाँवों का इतिहास

बूंदी राज्य में बारहट पद सामोर शाखा के चारणों के पास था परन्तु भावी के कर्मफल से उनकी कोई संतान नहीं हुई तथा कालांतर में उनका वंश समाप्त हो गया।
इस समय मेवाड़ में दरबारी कवि ईसरदास मीसण थे जिनके पूर्वज सुकवि भानु मीसण से उनके सत्यवक्ता बने रहकर मिथ्या भाषण करने के अनुरोध को नहीं मानने की जिद से कुपित होकर चित्तौड़ के तत्कालीन राणा विक्रमादित्य ने सांसण की जागीर के मुख्य गाँव ऊंटोलाव समेत साथ के सभी उत्तम गावों की जागीर छीन कर केवल रीठ गाँव उनके लिए छोड़ दिया था। […]

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वाह भड सांदू वाह!

आज रे भौतिकता वादी जुग में ई राजस्थान री इण पावन धरा रे मांय दान री परंपरा री अनवरत गंगा चालू है। जो आदू समै री गंगोत्री सूं कल कल करै है। इण रो परिचय सोशियल मीडिया रे मांय अबार ई थोडा दिन प्हैली वियोडी एक घटना है जिकण औ सिद्ध कर दियौ के आदू पुराणी दान अर दातारी री बातां कोइ दंतकथा या महज किस्सा कहाणी नी हा पण बे चीजां आखर आखर साच ही।
आज मैं बात मांडणी चावूं हूं एक निजानंदी कवि अर घोडां रा सौदागर नीतिराज सिंह सांदू सिहु री जिकण घोडी रो दान एक गुणी कवि मीठे खांजी मीर नें देयर पुराणी दान री परिपाटी नें पुनर्जिवीत करण री कोशिश करी।

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सेवामें श्रीमानजी, एक शिकायत ऐह

कवि गिरधर दान रतनू “दासोडी” द्वारा “काव्य-कलरव” अर “डिंगळ री डणकार” ग्रुप रा कवियों ने निश्क्रिय रेवण सूं दियौडौ एक ओळभो देती कलरव अर डिंगल़ री डणकार रा मुख्य संरक्षक / संरक्षक आदरणीय भूदेवसा आढा अर चंदनसा नैं एक अरजी-
सेवामें श्रीमानजी, एक शिकायत ऐह।
जोगां किमकर झालियो, अपणो अपणो गेह?
सही सँरक्षक सांभल़ो, वडपण मनां विचार।
भागल मन कवियां भयो, डिंगल़ री डणकार।।1
वय में आढो वृद्ध है, इणकज करै अराम।
चंदन थारी चतुरता, किणदिन आसी काम।।2
पूछै कारण प्रेम सूं, नेही काढ निदान।
जमी राखजै जाजमां, चोगी चंदनदान।।3

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रतनू भारमल री वात – ठा. नाहर सिंह जसोल संकलित पुस्तक “चारणौं री बातां” सूं

मारवाड़ में अेक परगनो, मालांणी। पैहलां मालांणी नांम सूं जगचावो ओ परगनो आज बाड़मेर परगना रै नांम सूं ओळखीजै। मालांणी री इण धरती ऊपर केतांन सूरमा, संत अनैं सतियां अवतरित होया। मलीनाथ, धारूजी, रूपां-दे अर ईसरदासजी जैहड़ा म्होटा संत, जैतमालजी अर वीरमदेजी जैहड़ा लांठा जोधार, अर दांनी, रांणी भटियांणीजी जेहड़ी चमत्कारिक सती पण इणीज धरती ऊपर होया।
राव सीहोज संवत 1212 में कनोज सूं मारवाड़ कांनी आय सबसूं पैहलां पाली ढ़ाबी। आस्थांन खेड़ रयो अर आठमी पीढ़ी में राव सळखोजी रा म्होबी दीकरा मलीनाथजी पाट बैठा। […]

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