नैण

नैणा री मद धार वै, तौ प्याला बेकार।
नशौ प्रेम रो सब सिरै, सजण परूसण-हार।।1

नैणा री मनुहार नें, सैण करौ स्वीकार।
जैण नसो होसी जबर, रैण तणै अंधार।।2

नैणा घी री धार कर, पिया! लापसी-प्यार।
राज परोसूं आप कज, जिमौ  बारंबार।।3[…]

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वाणी वरदानी वदां

वाणी वरदानी वदां, आखर दानी आइ।
भाव उपानी भव्यतम, गिरा भवानी माइ॥1

वीण वजंती सरसती, आगै जेण मराल।
धवला सन धवलांबरा, गळ में स्फाटिक माळ॥2

फटिक मालिका फूटरी, फबती जिणरै तन्न।
वीण पांणि हंसासनी,म्हारी बसौ रसन्न॥3 […]

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कागा पग लागा थनें

कागा पग लागां थनै, मागां इतरो मीत।
घर री जागा बैठ मत, उड कर विरहण हीत॥1

कागा पुरसूं आप कज, खांड मलाई खीर।
खाय’र उडजा आवसी, तदै नणद रो बीर॥2

कागा थुं करकस घणौ, कडवा थारा बेण।
विरहण तौ पण राखती, नत्त नजीकां नेण ,॥3 […]

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प्रताप पच्चीसी – अजयदान जी लखाजी रोहडिया

प्रण पर बगसण प्राण, तृण सम नित ततपर रियो।
आजीवन आराण, परचंड किया प्रताप सी॥1

धरम सनातन धार, असह निपट संकट सह्या।
अकबर रो अधिकार, पर न मन्यो प्रतापसी॥2

हलदी घाट हरोळ, मेद पाट भिडीयो मरद।
तुरकों पर खग तौल, पग रोपै परतापसी॥3 […]

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आखर रो उमराव – सोरठिया गज़ल

आखर रो उमराव,अवस कवि सुण आशिया।
समपै लाख पसाव, अवस कवि सुण आशिया।

दाखत दोहा छंद, गज़ल गीत कहतौ गज़ब।
भरने उरमें भाव, अवस कवि सुण आशिया॥

गीत दोहरा छंद, ह्रदय भाव बेकार है ,
गैला रो औ गांव,अवस कवि सुण आसिया॥ […]

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मातृ-वंदना – अजयदान जी लखाजी रोहडिया

आती उतालीह, ताळी सुण तीजी श्रवण ।
करणी करुणाळीह, बिरुदाळी सोचो बिरद॥1

बेगी चढ बबरीह, जबरी आई न जोगणी।
जबरी जेज करीह, कफरी वेळा करनला॥2

गरब अधम गरणीह,हरणी अनहद अर अर्यां।
हे उजळ बरणीह,कर करुणा अब करनला॥3 […]

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कविते! मैं सजदा करूँ

कविते! मैं सजदा करूँ

कविते ! तुझको क्या कहूँ, छुई मुई या और ।
मन में गहरी पैठ कर, फिर फैलाती छोर ॥1॥

कविते ! तुझको दूँ सजा, आ मन की दहलीज़।
आज चाँद है ईद का, कल आषाढी बीज ॥2॥

कविते ! तुम कमनीय हो, कोमल है तव गात ।
आ फूलों से दूँ सजा, हँसकर कर ले बात ॥3॥

कविते ! तुम ही प्यार हो, तूँ ही जीवन सार ।
अलंकार रस से सजे, पहने नवलख हार ॥4॥

कविते ! तनिक दुलार दे, कर ले मुझसे प्यार ।
तेरे बिन तो फूल भी, लगते हैं अंगार ॥5॥[…]

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कविता की खोज

इब्ने-बतुता की तरह, यह कविता की प्यास।
भाव विश्व से हो शुरू,चली मनोआकास॥1

मन मोरक्को में मिला, उस को एक फकीर।
बोला खोजा शब्द मैं, पाले कविता हीर॥2

छंदोलय के ऊंट पर, लाद दिया सामान।
इब्ने बतुता उड चला, राह बडी अन्जान॥3 […]

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केशरी कीर्ति कळश

गणणाई केहर गिरा, आभ धरा आवाज।
सह कंप्या पापी सिटळ, गोरा सांभळ गाज।।1
तन रो कियो न सोच तिल, मन सूं रह मजबूत।
जन हित में जुपियो जबर, सो धिन किसन सपूत।।2
शासक सह शोसक हुवा, जन रै लगै झफीड़।
तैं समझी उर में तुरत, पराधीन री पीड़।।3
सांप्रत सीख्यो सधरपण, आंक आजादी ऐक।
दोरी लागी देसी री, पराधीनता पेख।।4[…]

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दोहा-वंदना

दोहा थानें साधवा, करतो जतन करोड।
रीझ छंद रा-राजवी, कहूं हाथ द्वयजोड॥1
मंतर लय रा मारतो, जागूं निश अर भोर।
दोहा अम पर रीझझै, रे छंदों सिरमोर॥2
दोहा जो थूं हा कहै, तौ लिख दूं कुछ ओर।
पुत्र वरद पिंगळ प्रखर, कविता-काळज-कोर॥3 […]

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