एक दोहे ने कर दिया राव खेंगार का हृदय परिवर्तन

एक ऐतिहासिक घटना हेमचंद्राचार्य ने अपने ग्रंथ में अहिंसा के संदर्भ में लिखी है कि जूनागढ़ के चुडासमा शासक राव खेंगार प्रथम शिकार के बहुत शौकीन थे। इसलिए वे जीव हत्या भी बहुत किया करता थे। एक समय वे शिकार करने निकले। अपने लवाजमे सहित जूनागढ़ से बहुत आगे निकल गए एवं उनका लवाजमा काफी पीछे छूट गया और स्वयं काफी आगे निकल गए। अकस्मात एक हरिण पर उनकी नजर पड़ी तब भाला लेकर उसके पीछे घोड़ा दौड़ाया लेकिन हरिण के नजदीक पहुंच नहीं सके। हरिण तेज गति से दौड़ कर आगे निकल गया। तब राव खेंगार दोपहर तक पीछा करते हुए एक ऐसी जगह पहुंचे जहां आगे दो मार्ग आए, राव जूनागढ वाले मार्ग से आए। आगे दो मार्ग और निकले। उन तीन मार्गों के संगम पर बबूल का पेड़ था जिस पर ढुमण चारण बैठे थे। वहां राजा ने उन्हें देखा तब उनसे कि कहा अरे भाई! मेरा शिकार हरिण इन दो मार्गों में से कौनसे मार्ग पर गया है?[…]
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