जोगमाया रो जस

।।छद – भुजंगी।।
नमो हींगल़ा मात प्रख्यात नामी।
पुणा मातरी ख्यात नै कूण पामी।।
रसा देवियां देव सिर्ताज राजै।
भणै जाप प्राणी तणा पाप भाजै।।१।।

मही थान बीलोचिसथान मंडै।
खमा कोपियां केवियां सीस खंडै।।
वसू वीदगां जात चित्तार आई।
अगै धार ओतार हजार आई।।२।।[…]

» Read more

मही मदती मावड़ी

।।छंद-सारसी।।
धिन पिछम राजै भीर धरणी,
हिंगल़ा बड हाथ तूं।
दुख-रोग काटै आय दाता,
बणी राखै बात तूं.
दिल डरपियो सब देश देवी,
छती कर अब छांहड़ी।
सत सुणै हेलो आज सगती, मही मदती मावड़ी।।१[…]

» Read more

बीसहथ रा सौरठा – रामनाथ जी कविया

उभी कूंत उलाळ, भूखी तूं भैसा भखण।
पग सातवै पताळ, ब्रहमंड माथौ बीसहथ।।१
सौ भैसा हुड़ लाख, हेकण छाक अरोगियां।
पेट तणा तोई पाख, वाखां लागा बीसहथ।।२
थरहर अंबर थाय, धरहरती धूजै धरा,
पहरंता तव पाय, वागा नेवर बीसहथ।।३
पग डूलै दिगपाळ, हाल फाळ भूलै हसत।
पीड़ै नाग पताळ, बाघ चढै जद बीसहथ।।४
करनादे केई वार, मन मांही कीधो मतो।
हुकुम बिनां हिकवार, देसाणों दीठौ नहीं।।५[…]

» Read more

माताजी का छंद भुजंगी – कवि दुला भाया “काग”

।।छंद – भुजंगी।।
नमो ब्रह्मशक्ति महाविश्र्वमाया,
नमो धारनी कोटि ब्रह्मांड काया।
नमो वेद वेदांत मे शेष बरनी,
नमो राज का रंक पे छत्र धरनी।।1

नमो पौनरूपी महा प्राणदाता,
नमो जगतभक्षी प्रले जीव घाता।
नमो दामनी तार तोरा रूपाळा,
नमो गाजती कालिका मेघमाळा।।2[…]

» Read more

गीत सैणलाराय रो – पन्नारांमजी मोतीसर जुडिया कृत

।।गीत – संपखरो।।
भुजां साहियां त्रसूल़ झूल़,सगत्यां स तेज भाण,
केवियां कैवांण पांण हटावै कंकाल़।
आराधियां आवै ताल़,तीसरी ईसरी आप,
कीजै माहेश्वरी रिच्छा आरोहा लंकाल़।।[…]

» Read more

मा देवनगा

।।छंद – गयामालती।।
मही मेदपाटं विदग मंडण,
धर पसूंदं तूं धणी।
तप त्याग दिनकर ध्यान तारां,
जपै माल़ा जोगणी।
वन बाहर विचरण बाघ वाटां,
गुढै नदियां गाजणी।
अई देवनगा नमो आढी, भगतजन दुख भंजणी।।1[…]

» Read more

सुंधा मढ ब्राजै सगत

छपन क्रोड़ चामुंड अर, चौसठ जोगण साथ।
नवलख रमती नेसड़ै, भाखर सूंधा माथ।।१

झंडी लाल फरूकती, जोत अखंडी थाय।
मंडित मंदिर मात गिरि, राजे सुंधा राय।।२

रणचंडी दंडी असुर, सेवक करण सहाय।
बैठी मावड़ बीसहथ, सगती सुंधाराय।।३

डाढाल़ी दुख भंजणी, गंजण अरियां गात।
भाखर सुंधा पर भवा!, चामंड जग विख्यात।।४[…]

» Read more

सूंधाराय सताईसी

जुगती नह कछु जाणबो, निजपण उगती नाय।
भगती उर भर भावना, गिर सूंधा सुरराय।।1

विसन भूतपत ब्रहम जिथ, कर नीं सकिया काय।
जनहित प्रगटी जोगणी, सो सूंधै सुरराय।।2

वडा देव हुय बापड़ा, पड़िया आय’र पाय।
रोल़विया असुराण रण, सो सूंधै सुरराय।।3

सगत पास श्रीमाल़ रै, बसै सदा वरदाय।
अखै जगत अघटेसरी, निमख लखै कहु नाय।।4[…]

» Read more

सैणी-सुजस

।।छंद – रेंणकी।।
लाळस कव लूण एक ही लिवना,
रात दीह हिंगळाज रटी।
वीदग रै घरै बेकरै बाई,
पह निज देवी तूं प्रगटी।
सकळापण जांण आंण ले सरणो,
नत हुय सुर नाग नमै।
जुढिये इळ विमळ सैणला जोगण, रंग सोनथळ मात रमै।।
जिय रंग सोनथळ मात रमै।।१[…]

» Read more
1 2 3 4 11