बड़े मियाँ – राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)

सबकी सुनकर भी अपनी पर अड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
लोग शहर के कैसे चिकने घड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
पहले यूं ख़ुदगर्ज़ नहीं था कुछ अपनापा बाक़ी था।
आख़िर हम भी इसी शहर में बड़े हुये हैं बड़े मियाँ।
ये मत सोचो इस मरभुख्खे गाँव में क्या तो रक्खा है।
जाने कितने बड़े ख़जाने गड़े हुये हैं बड़े मियाँ।[…]

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बदलते हैं – ग़ज़ल – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

बदलने को बहुत कुछ आज भी अक्सर बदलते हैं।
न शीशे हम बदलते हैं न वो पत्थर बदलते हैं।।

ज़मीं फिरती है बरसों और फ़लक बरसों बरसता है।
कसम से तब कहीं जाकर ये पसमंजर बदलते हैं।।

हमें ख़ौफ़े ख़ुदा है और तुम्हें ज़ालिम जहाँ का डर।
चलो कुछ देर की ख़ातिर हम अपने डर बदलते हैं।।

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नैणां उडगी नींद

लूट लूट घण लालची, भरिया भ्रष्ट भँडार।
लेखै धन लाली गयो, हिरदै हाहाकार!!1
काल़ी कर करतूतियां, धुर घर सँचियो धन्न।
सो तो हुयग्यो धूड़ सम, हुई सो जाणै मन्न!!2
वीसलदे ज्यूं बावल़ां, ऊंडो धरियो आथ।
खायो नकोज खरचियो, विटल़ां रखी न बात!!3
कण घण सँचिया कीड़ियां, खट चुग तीतर खाय।
पापी वाल़ो पेखलो, जर तो परल़ै जाय!!4[…]

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ज्यूं-ज्यूं लाय लपरका मारे!!

500-1000 के पुराने नोटों के नहीं चलन की घोषणा के बाद मजदूरों, व अध्यापकों के सिवाय सभी जगह मायूसी छाई नजर आ रही है। आजसे पहले जब धन या धनवानों पर अध्यापकों की दृष्टि जाती तो वे भी झिझक महसूस करते थे कि काश हम भी इनके रिस्तेदार या रिस्तेदारी में होते तो कितना अच्छा रहता ! लेकिन जैसे ही मोदीजी ने कहा कि कोयलों की दलाली करने वालों के हाथ ही नहीं, मुंह भी काला होगा !! तो इस वर्ग ने बड़ी राहत महसूस की और मन ही मन में कहा कि भई हम तो ‘घणो खावां न को कुवेल़ा जावां।’ घाटा भी सुखदायक और आनंदित करने वाला होता है इसका अहसास माननीय मोदीजी ने करवाकर मजदूरों व अध्यापकों में जोश का संचार कर दिया। […]

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बदळण रो हेलो कर बेली

तन भूखो अर मन उदियासू,
जीवण धारा डंक डसेली।
समय शंख में मंत्र फूंक अब,
बदळण रो हेलो कर बेली।।

जनशोषक सत्ता गळियारा,
जनगण मंगळ यूं गावै है।
शेषनाग री बांबी जाणै,
इमरत रो घट ढुळकावै है।
जनपथ सूळ, धूळ जन आंख्यां,
सपनां में जहरल गुळ भेली।
समय शंख में मंत्र फूंक अब,
बदळण रो हेलो कर बेली।।01।।

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बच्चे – ग़ज़ल – राजेश विद्रोही

हमारे मुल्क में मासूमियत खोते हुये बच्चे .
लङकपन में बुजुर्गों की तरह होते हुये बच्चे ..

कहीं से भी किसी उम्मीद के वारिस नहीं लगते .
घरौंदो की बगल में बेबसी बोते हुये बच्चे ..

उदय होते हुये भारत की शाईनिंग पे धब्बा हैं.
अभावों की सङक पर गिट्टियाँ ढोते हुये बच्चे .[…]

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गीत सोहणो

कंत सूं लुका राखिया कामण
नोट पांचसौ पांच नवा।
मोदी करी मसकरी मांटी।
हिवविध भूंडा हाल हुवा।।1
अहर बितायो आमण-दूमण
नैणां रातां नींद नहीं।
देवा डंड किसोड़ो दीधो?
कल़पी बातां ऐह कही।।2[…]

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आज उडाए बाज

व्यर्थ न अब बैठे रहो,बनकर यारों बुद्ध।
सुख शांति सौहार्द को, यवन करे अवरूद्ध।।१
अमन चैन की बात कर, चलते चाल विरूद्ध।
उनको देने दंड अब, करें न क्यों हम युद्ध।।२
हाथों में गांडीव धर,अर्जुन है तैयार।
आज कृष्ण पर मौन क्यों,महा समर को यार।।३

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शहीदां नैं चढा दिया थूक रा फगत दो आंसू

ओ कांई!! सदैव री गत
गादड़िया कद बड़ग्या
सिंघां री थाहर में?
मोत रै रूप!
आपां नैं ठाह ई नीं लागो!
सागैड़ी बात है भाईड़ां!
आपां तो अबकै ई
पीठ में छुरो खाय
भारत रै लालां रो

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21 वीं सदी की चुनौतियां और साहित्य-सृजन

21 वीं सदी में साहित्य का पाठकवर्ग ऊहापोह की स्थिति में है। आज के मध्यम या निम्न परिवार के पिता के लिए यह बड़ा संकट है कि वह अपने बेटे-बेटी के साथ घर-परिवार और पढ़ाई के अलावा कोई और बात करे तो क्या करे, जिससे वह अपनी औलाद को सामाजिक सरोकारों से जोड़ सके। साहित्य की विविध विधाएं हैं और फिल्म भी साहित्य का एक हिस्सा है, सब क्षेत्रों में सजग होना होगा। सामाजिक सरोकारों तथा मानवीय मूल्यों को बचाकर रखने का कार्य साहित्य का है अतः साहित्य को पूरे समाज का समग्र प्रतिबिंब बनना होगा।[…]

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