गाँव बदळग्यो देख कोटड़ी

गाँव बदळग्यो देख कोटड़ी
छिण में छळग्यो देख कोटड़ी
जिणरै तप सूं जगत कांपतो
(वो) सूरज ढळग्यो देख कोटड़ी।
अम्बर अड़तो रोब अनूठो
पग उठग्यो सो पड़्यो न पूठो
मरजादा राखण मर मिटती
खुद्दारी रो तूं ही खूंटो। […]
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गाँव बदळग्यो देख कोटड़ी
छिण में छळग्यो देख कोटड़ी
जिणरै तप सूं जगत कांपतो
(वो) सूरज ढळग्यो देख कोटड़ी।
अम्बर अड़तो रोब अनूठो
पग उठग्यो सो पड़्यो न पूठो
मरजादा राखण मर मिटती
खुद्दारी रो तूं ही खूंटो। […]
राखजौ जतना सूं आछी
जगत धरणी जोत नै
इण जीव शरणी भोम नै
गंगा सा निरमल नीर नै
फूलां सशोभित बाग नै
बागां महकती पवन नै
पत्ती ने जिस दिन पौधे की जड़ को जड़ कह कर धमकाया।
फूलों ने खुद को पौधे का भाग्य विधाता बतलाया।
इठलाकर निज रूपरंग पर फुनगी ने डाली को टोका।
लहरों ने सागर से मिलने को आतुर नदिया को रोका।
सागर से यूं नदिया जब-जब, सहमी-सहमी दूर हुई है।
तब-तब मेरी कलम लहू से लिखने को मजबूर हुई है।। 01।।
।।गीत जांगड़ो।।
सैणां इम काम सबां सूं सोरो, झांसां भासण झाड़ो।
भोल़ां नुं भटकाय भावां में, कमतर सहल कबाड़ो।।1
दो उपदेस दूजां नैं दाटक, सरसज बात सुहाणी।
मनमाफक बेवो खुद मारग, केवो काग कहाणी।।2 […]
फेसबुक्क अर वाट्सअेप रा फंडा अजब निराळा है।
वाह, चाह रै दो मिणियां री, आ वैजन्ती माळा है।
इण माळा रो इक-इक मिणियों, अणबींध्यो सो मोती हैं।
हर मोती री दिप-दिप करती, अेक जगामग ज्योती है।
ज्योती आ जगमगती जग में, अंधारै सूं आज अड़ी।
इणसूं अड़तां अंधारै री, जड़ ऊंडोड़ी उखड़ पड़ी। […]
खावण नै फगत उबास्यां है,
पीवण नै आंख्यां रो पाणी।
दुख जा दुख नै दुख सुणावै,
इसड़ी म्हारी राम-कहाणी।।
कूंपळ कूंपळ मगसी मगसी,
पत्तो पत्तो सूखो सूखो।
तितली तितली तिसी तिसी सी,
भंवरो भंवरो भूखो भूखो।।
कोयल री पांखां सा पाटा
आळां मंडराता सण्णाटा।
स्यात म्हारड़ै खातै लिख दी,
विधना जग री सकळ विराणी।। 01।।[…]
कांई फरक पड़ै कै राज कीं रो है ?
राजा कुण है अर ताज कीं रो है ?
फरक चाह्वो तो राज
नीं काज बदळो !
अर भळै काज रो आगाज
नै अंदाज बदळो !
फकत आगाज ‘र अंदाज ई नीं
उणरो परवाज बदळो !
आप – आप रा साज बदळो […]
।।गीत – प्रहास साणोर।।
अवन पर कोपियो धणी असमान रो अजब
अहर निस मुखां सूं अगन उगल़ै।
तड़फड़ै जीवड़ा छांह बिन तरवरां
परम ही हड़बड़ै बर्फ पिगल़ै।।1
रचना जग री जबर रची है, बेमाता बेखबर पची है
इन्दर री आंख्या चकराई, सुंदर पोपां बणी सची है।
बाकी सगळा जाणबावळा, बाळ-बाळ बेमात बची है।
सामै ऊभो साच न सूझै, झांकै उण दिस कूड़ जची है।
इणरी उणनैं उणरी इणनैं, कैड़ी राफारोळ मची है।
राजस्थानी डिंगल़ काव्य धारा रो इतियास पढां तो आपांरै सामी मध्यकाल़ रै एक कवि रो नाम प्रमुख रूप सूं ऊभर र आवै बो है रंगरेला वीठू रो। रंगरेला वीठू री कोई खास ओल़खाण इतियास ग्रंथां में देखण नैं नीं मिल़ै। रंगरेला रो जनम सतरवैं सईकै में जैसल़मेर रै सांगड़ गांम में होयो। कवि रो मूल़ नाम वीरदास वीठू हो। काव्य रा कणूका कवि में परंपरी सूं ई हा। कवि री रचनावां घणकरीक कुजोग सूं काल़ कल़वित होयगी पण जिकी रचनावां लोक रसना माथै अवस्थित रैयी, उणनैं पढियां वीरदास रो जनवादी कवि सरूप आपांरै सामी आवै। जिण बगत सत्ता सूं शंकतै […]
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