अठै तो नानोसा री पगरखियां रुखाल़ूं !!

मारवाड़ में चारणां आऊवा री धरा माथै गोपाल़दासजी चांपावत रै संरक्षण में ‘लाखा जमर’ कियो-

आवधां बांध खटतीस अंग, भुजां लाज सबल़ां भल़ी!
रेणवां कनै गोपाल़ रा, बैठा आयर महाबल़ी!!
–खीमजी आसिया

इण जमर पछै, जिका चारण बचिया उणांनै अर गोपालदासजी नै महाराजा रायसिंहजी(बीकानेर) बीकानेर बुला लिया-

रायसिंघ बीकाण, पटो दीनो भुज पूजै।
सब्बां पायो सुक्ख, धरा वंकां सत्र धूजै।।
–खीमजी आसिया

उण बगत मारवाड़ सूं जितरा ई चारण आया उवै सगल़ा बीकानेर सूं सींथल़ आयग्या[…]

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वह समय-वे भक्त-वह बातें

ई. सन 1895-1900 के बीच बीकानेर से मेड़ता के बीच रेलवे लाईन को व्यापार तथा आवागमन के लिए खोल दिया गया था, जनता को सुविधा हो गई थी, उस समय रियासतों के खर्चे पर ही रेलवे बनती थी, महाराजा का कहा ही आदेश बनता था। राजे-महाराजे जनता का दुख-दर्द भी यथा संभव दूर करने की कोशिष करते थे, उक्त रेलकी लाईन बिछाने में गंगासिंह जी की महत्ती भूमिका थी।
रेल का जब सुचारू संचालन होने लग गया तो माँ करनी जी के भक्तगण यात्रियों को सूदूर प्रान्तों से आवागमन की सुविधा मिल गई तथा आना-जाना आसान हो गया, परन्तु रेलवे की स्टेशन देशनोक से पूर्व दिशा में तीन कोस दूरी पर गीगासर नामक गांव में बनाई गई थी। जहां से यात्रियों को पैदल या ऊँट पर सवार होकर माँ के मढ में जाना पड़ता था, सर्दी गर्मी वर्षा के दिनों में सुनसान स्टेशन पर रात्रि को रूकना भी परेशानी वाला काम था।[…]

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मरांला!!पण बेटी कीकर देवांला?

राजस्थान री आंटीली धरा माथै एक सूं एक बधर सूरमा अर साहसी मिनख जनमिया है। जदै तो कवियां कैयो है – पुरस पटाधर नीपजै, अइयो मुरधर देश! इण सिंह उत्पन्न करण वाल़ी धरा रै नर-नाहरां री अंजसजोग कथावां आज ई अमिट है अर पढियां कै सुणियां आपां नै गौरव री अनुभूति करावै। ऐड़ो ई एक किस्सो है रूण रै शासक सीहड़देव सांखला रो।
विक्रम रै चवदमे सईकै रै पूर्वार्द्ध में रूण माथै सांखलां रो राज। अठै रो शासक सीहड़देव महावीर अर स्वाभिमान रो साक्षात पूतलो। सीहड़देव रै मेहाजल़ दधवाड़िया पोल़पात। मेहाजल़ घणजोड़ो कवि, सामधर्मी अर चारणाचार रै गुणां सूं अभिमंडित मिनख।
सीहड़देव रै महारूपवंत कन्या। उणरै शील अर रूप गुणां री चरचा चौताल़ै चावी।[…]

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श्री जगदंबा मानसर तट रास विलास – कवि देवीदानजी (बाबिया कच्छ)

सेंग माताजीयां रा भेळा हुय रास रमण रा छंद।

।।दूहो।।
एक समै जगमात जय, उर अति धरे उमंग।
निरत करत तट मानसर, राजत पट नवरंग।।1।।
।।छंद – रेणंकी।।
राजत पट सधर नीलंबर अंबर, धर नवसत शिणगार धरे।
फरर पर थंभ धजा वर फरकत, झरर झरर प्रतिबिंब झरे।
लळ लळ उर हार गुलाब ज लळकत, सिर पर गजरा कुसुम सजै।
परघट धर सधर मानसर उपर, सकत सकळ मिळ रास सजैं।।1।।[…]

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ग़ज़ल – जब जब मौसम – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

जब जब मौसम में तब्दीली होती है।
सुबह सुरीली शाम नशीली होती है।।
मंजिल से बाबस्ता होती जो राहें।
वो राहें अक्सर पथरीली होती हैं।।
जब जब मेरी दांयीं आंख फड़कती है।
मां की आंखें तब तब गीली होती है।।[…]

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આઈ સુંદર આઈ નો પ્રસંગ – પીંગળશીભાઇ.મેધાણંદભાઇ.ગઢવી

🌹🌹 આઇ સુંદરબાઇ માતાજી🌹🌹
🌹 દીકરી આઇ સતબાઇ માતાજી 🌹

અફીણના વાઢ જેવી સોરઠ ધરામાં ભાદર નદીના દખણાદા કાંઠા ઉપર ધૂળિયા ટીંબા માથે છત્રાવા નામનું ગામડું.આ ગામની સીમમાં ઉપરવાસના પ્રદેશમાંથી જમીનનો બધો રસક્સ ચોમાસાનો છેલપાણીના પ્રવાહ સાથે ઢસડાઇને અહીં ઠલવાય છે અને અહીંનો કાપ દરિયા ભેળો થાય છે.[…]

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दासोड़ी मीठो दरियाव!!

लारलै सईकै रै सिरै डिंगल़ कवियां में बगतावरजी मोतीसर रो नाम चावो है। बगतावरजी रो जनम गांम सींथल़ में होयो। मोतीसर चारणां रै सारु पूजनीक अर श्रद्धेय जात। लच्छीरामजी बारठ (गोधियाणा)रै आखरां में-

ज्यांसूं भेद कदै नह जांणूं,
हर कर आंणूं चीत हुलास।
मावल भला बणाया मांगण,
आयां आंगण हुवै उजास।।

बगतावरजी आपरी बगत रा नामी डिंगल़ कवि। जिणां री करणी सुजस प्रकास, पाबू गुण प्रकास, गंगेस रो गौरव, सेति मोकल़ी रचनावां चावी।
बगतावरजी रो गांम दासोड़ी में घणो आघमान। एकर बगतावरजी मेवाड़ गया। ढोकलिया ढूका उठै दो चार दिन रैया। पाछा आपरै गांम संभिया जणै दधवाड़ियां कैयो कै अबै आप डोढ दो महीणा अठै ई विराजो क्यूंकै इतरै दिनां पछै कविराज री बाईसा री शादी है अर जान जोधपुर कविराजजी रै अठै सूं आवैली।[…]

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छप्पय

।।छप्पय।।
सब सेणां रै साथ, प्रात उठ दरसण पाऊं।
मात चरण में माथ, नेम सूं नित्त नमाऊं।
सुरसत देवै सुमत, कुमत मेटै किनियाणी।
जुगती सबदां जोड़, उरां उकती उपजाणी।
जगदम्ब कृपा रै जबर बल, पंगु पहाड़ां पूगियो।
कर जोड़ नमन गजराज कर, आज भाण भल ऊगियो।[…]

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ग़ज़ल – मैं किसी की हाजिरी – राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

मैं किसी की हाजिरी हर्गिज़ बजा लाता नहीं।
इसलिये कटु सत्य कहने से भी घबराता नहीं।।
ज़ात से हूँ आदमी इन्सानियत मेरा धरम।
मज़हबी उन्माद से तो दूर का नाता नहीँ।।
ना किसी मठ का मुगन्नी ना किसी दर का मुरीद।
कोई मस्जिद या कि मंदिर मेरा अन्दाता नहीं।।[…]

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सुकवी गजदान सुणावै रे

सब सज्जनां मन होय सौराई, दुष्ट दौराई दूरै।
भेळप-संप रखै सब भाई, प्रेम भलाई पूरै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 01।।

हर घर माँहीं हेत-हथायाँ, कुटिल मितायाँ कड़खै।
अणहद माण मिलै घर आयाँ, रंच न जायां रड़कै।
(तो) सुकवी गजदान सुणावै रे, चित चारण वो दिन चावै।। 02।।[…]

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