मन मान्यै री बात

मन री सत्ता घणी मजबूत है। मन री गति अपार। बिना सवारी मन तीनूं लोकां री जात्रा करतो आनंद री ल्हरां लेवै। मन री सत्ता सूं संत अर फकीर ई घबरावै। ओ ई कारण है कै कबीर जियांकलै फक्कड आदमी नैं ई मन नैं नियंत्रण में राखण सारू कलम चलावणी पड़ी। कबीर री रचनावां मांय ‘मन को अंग’ नाम सूं मोकळी साखी लिखीजी है।
मन लोभी मन लालची, मन चंचल मन चोर।
मन के मते न चालिए, पलक पलक मन और।।
कबीर आद मोकळा संतां री सीख सुण्यां पछै ई मानखो तो मन री सत्ता नैं ई मानै अर मनगत मोजां माणै।[…]
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