गीत वांमणावतार रौ – महाकवि नांदण जी बारहठ

महानुभावो आज लगभग 500 वर्ष पुराना मेरे पुरखे महाकवि नांदण जी बारहठ की भगवान वामन अवतार पर रची रचना पोस्ट कर रहा हूं।-

गीत वांमणावतार रौ (नांदण कहै)

आखै दरबार ब्रिहामण उभा,अंग दिसै लुघ वेदअगांह।
रीझ सु इती दीधयै मो राजा,मांडू मंढी जिती भुंम मांह।।1

विप्र विनंतिपयंपै वांमण,मैहर करै लेइस माप।
इळ थी आठ पांवडा अमकै,एकण कुटी जिती तूं आप।।2

जग ताहरा तणौ सांभल जस,हूं आयो मन करै हट।
दुज उंचरै दीये मो दाता,धर्मसाला जेतली धर।।3

गुर जजमान वरजियौ गाढो,विध विध वातां कही बणाय।
सुज ता मांड घालियौ स॔कलप,भौम समपी सुसत भाप।।4

वांमण सीस विलागौ ब्रहमंड,विप्र मावै न प्रथी विचाल।
पौहव न पूगी मंढो प्रमाणै,पग दै बल चांपियै पयाल।।5

एकां साझ निवाजे एकां,सक बांण छोडण ससमाथ।
नमौ अगत गत किणी हीं न लाधी,नांदा सुमर तिकौ रूघनाथ।।6
~~महाकवि नांदण जी बारहठ
(सौभाग्य सिंह जी शेखावत रे संग्रह से वरदा में छपा था 40 वर्ष पहले)

~~प्रेषित: ओंकार सिंह जी लखावत

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