रघुवरजसप्रकास [4] – किसनाजी आढ़ा

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अथ मात्रा व्रत्ति वरणण

दूहा
मत्त व्रत्त में सुकव मुण, मात्र प्रमांण मुकांम।
आवै समता आखिरां, वरण व्रत्त जिण ठांम।।१
मत्त व्रत हिक अह मुणी, पढ़ि सौ च्यार प्रकार।
मत्त छंद उप छंद पद, असम सुदंडक धार।।२

छंद चंद्रायणौ*
लग मत्ता चौवीस छंद मत्त लेखजै।
सुज यां अधिका मत उपछंद विसेखजै।।
वरण मत सम नहीं असम पद जांणजै।
बे छंदां मिळ दंडक मत्त बखांणजै।।३

अथ मात्रा छंद तंत्र गमक छंद
पंच मत, गमक सत।
सीत बर, रांम रर।।४

छंद बांम छ मात्रा
छ मत ‘बांम’ समरि स्यांम।
झूठ धंध, मन म बंध।।५


१. मुकांम-स्थान। आखिरां-अक्षरों में। ठांम-स्थान।
२. हिक-एक। अह-शेषनाग। मुणी-कही।
३. लेखजै-समझिये।
४. सत-सत्य। रर-राम शब्द की ध्वनि।
-६, है। मत-मात्रा, मति। बांम-एक छंद का नाम, स्त्री। स्यांम-स्वामी, ईश्वर। धंध-सांसारिक प्रपञ्च। -मत।
रे मूर्ख ! तेरी बुद्धि स्त्री में है। तू सांसारिक झूठे प्रपञ्चों में अपने मन को मत फँसा और ईश्वर का स्मरण कर।
*एक मात्रा से २४ मात्रा तक के पद्य को छंद कहते हैं। २४-मात्रा से अधिक को उपछंद तथा छंद और उपछंद के मेल को दंडक छंद कहते हैं। मतान्तर से ३२ मात्रा के छन्द को भी दंडक कहते हैं।

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छंद कंता सात मात्रा
कळ सत ‘कंत’, जिण जगणंत।
रट रघुराय, थिर सुख थाय।।६

दूहौ
सात मत्त पद प्रत पड़ै, सुगति छंद सौ थाय।
आठ मत्त अंतह तगण, पगण छंद कहवाय।।७

छंद सुगति
भूप रघुबर, सझत धनु सर।
जूझ मंडे, दैंत दंडे।।८

छंद पगण अस्ट मात्रा
रांम महराज, करण जन काज।
कोट रिव क्रंत, देह दुति वंत।।९

छंद मधु-भार
चव कळ जगांण, मधु भार जांण।
भजि औध भूप, रवि कोट रूप।।
श्रीरामचंद्र, बिबुधेस बंद।
तन दीध तास, जपि क्रीत जास।।१०


६. कळ-मात्रा, संसार। सत-सात सत्य। जिण जगणंत-जिसके अन्त में जगरण होता हो। जिसमें सारा जग विलीन होता हो। थिर-स्थिर। थाय-होता है।
संसार में सत्य केवल ईश्वर है जिसमें ही जगत विलीन होता है। अतः हे मन ! तू रामचन्द्रजी को रट जिससे तेरे सब सुख स्थिर हो जायें।
७. पद प्रत पड़ै-प्रत्येक चरण में हो।
८. जूझ-युद्ध। मंडे-रचा। दैंत-दैत्य। दंडे-दण्ड दिया।
९. क्रंत-कांति। दुतिवंत-दीप्तिमान्।
१०. चव-चार कह। कळ-मात्रा, दुःख। जगांण-जिसके अंत में जगण हो, संसार। मधुभार-एक छंद का नाम (मधु-नशा। भार-बोझ)।

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अथ नव मात्रा छंद
छंद रसकल़
नौ मात जैरै, गुरु अंत पै रै।
रसकळ सूछंद, भज्जि कवसलैंद।।११

अथ दस मात्रा छंद
छंद दीपक
मुण पाय दह मात, दीपक्क सुखदात।
जीहा अठूंजाम, संभार स्त्री रांम।।१२

इग्यारे मात्रा छंद
छंद रसिक
चव लघु सिव मत चरण।
वळ खट पय तिण वरण।
रसिक जिकण जग रटत।
मुण रघुबर अघ मटत।।
धनख धरण धुर धमळ।
‘किसन’ समर मुख कमळ।।१३


बिबुधेस-इंद्र। दीध-दिया। तास-उसने। क्रीत-कीर्ति। जास-जिसकी।
हे मन ! तू इस संसार को दुःख का घर और सांसारिक नशे को बोझ समझ। देवताओं के स्वामी इन्द्र के वन्दनीय और करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी अयोध्या के स्वामी श्रीरामचंद्रजी, जिन्होंने तुझे यह शरीर दिया है उनका स्मरण एवं सदैव कीर्ति-गान कर।
११. नौ-नव, न। मात-मात्रा। जैरै-जिसके। अंतपै-अंत में। कवसलैंद-कौशलेन्द्र, श्री रामचंद्र।
१२. पाय-चरण। दह-दस। जीहा-जिह्वा। अठूंजांम-अष्टयाम। संभार-स्मरण कर।
१३. चव-कह। सिव-ग्यारह। मत-मात्रा। वळ-फिर। तिण-उस। जिकण-जिसको। मटत-मिटते हैं। धनख धरण-धनुर्धारी। धुर-बोझ। धमळ-वहन करने वाला।

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छंद आभीर
जै पय सिव मत जांण।
अंत पयोधर आंण।।
छंद आभीर अछेह।
रट रघुनाथ अरेह।।
हर जस गावण हार।
धन मांनुख तन धार।।१४

बारै मात्रा छंद
उद्धौर
कळ भांण पाय कहंत।
उद्धोर जिण जगणंत।।
रे किसन भजि सियरांम।
धांनंख धर सुख धांम।।१५

त्रयोदस मात्रा छंद
छंद अनांम
तेरै मत्त गुर लघु अंत।
किव छंद अनांम कहंत।।
रट सीता नायक रांम।
करौ चित तणा सिध कांम।।१६


१४. जै-जिस। पय-चरण। सिव-ग्यारह। पयोधर-मध्यगुरु की चार मात्रा का नाम ।S। । अछेह-अखंड। अरेह-निष्कलंक।
१५. भांण-(भानु) बारह। पाय-चरण। जगणंत-जिसके अंत में जगण हो।
१६. किव-कवि।

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चतुरदस मात्रा छंद
छंद हाकल़
त्रै दुज गुर कळ चवद तठै।
जांणौ हाकळ छंद जठै।।
भव सागर तर रांम भजौ।
तै विण आंन उपाय तजौ।।१७

छंद झंपताल़
गुर अंत मत चवदह गिणै।
भल झंपताळी कवि भणै।।
रघुनाथ जेण रिझावियौ।
पद उरध तै कवि पाइयौ।।१८

पंचदस मात्रा छंद
छंद जैकरी
कळ दह पंच जांण जैकरी
दुज मुर प्रिय अंतै गुरु धरी।।
भज भज सीता राघव भई।
दस सिर जेता अघ हर दई।।१९

छंद चौपई
पद दस पंचह मत्त प्रमांण, जगण अंत चौपई सजांण।
पायौ जै धन मांनव पिंड, आखै राघव क्रीत अखंड।।२०


१७. त्रै-तीन। दुज-४ मात्रा। तै विण-उसके बिना। आंन-अन्य।
१८. भल-ठीक। रिझावियौ-प्रसन्न किया। उरध-ऊर्ध्व। पाइयौ-प्राप्त किया।
१९. दह-दस। दुज-४ मात्रा। मुर-तीन। प्रिय-दो मात्रा। जेता-विजयी।
२०. पायौ-प्राप्त किया। जै-जो। पिंड-शरीर। आखै-कह। क्रीत-कीर्ति।

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सौड़स मात्रा छंद
दूहौ
च्यार चतुकळ सोळमत, सगण अंत पय साज।
सिंह बिलोकण छंद सौ, रट कीरत रघुराज।।२१

छंद सिंह विलोकण
धन धन हरि चाप निखंग धरी।
घर सील सधर क्रत ऊंच करी।।
करतार करां जग झौक जपै।
जय क्रती जिकै खळ पाप खपै।।२२

छंद चरना कुल़क
सौ पदकूळ पय मत्त सोळै।
अंतक सूं निरभै हर ओळै।।
जै कज हे किव रांम जपीजै।
जांण करंजुळ आयुख छीजै।।२३

छंद अरिल
दौ लघु अंत पयं मत्त खोड़स।
छंद अरिल्ल विना हर खोड़स।।
केसव नांम विना अणभै कर।
कौसळनंद जनं नरभै कर।।२४


२१. सौ-(सः) वह।
२२. धन-धन्य। निखंग-(निषंग) तर्कश। सधर-द्रढ़, अटल। क्रत-कार्य। ऊंच-श्रेष्ठ। झौक-धन्य धन्य। जयक्रति-विजयी। जिकै-जिसके। खळ-दुष्ट। खपै-नाश होते हैं।
२३. सौ-उसके। पदकूळ-चरनाकुल। अंतक-यमराज। हर-(हरि) ईश्वर। ओळै-ओट। जै-जिस। कज-लिये। करंजुळ-हाथ का जल। आयुख-आयु। छीजै-नष्ट होनी है।
२४. अणभै-निर्भय। जनं-भक्त। नरभै-निर्भय।

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छंद पाद्धरी
अख मत्त सोळ यक जगण अंत।
पाद्धरी छंद कवि जे पढ़ंत।।
राजाधिराज माराज रांम।
ते ताज सीस आलम तमांम।।
‘अरिहंत’ भरत अग्रज अहेस।
जांनुकीकंत मतिवंत जेस।।
तन स्यांम घणा घण रूप ताय।
पट पीत बरण तड़िता प्रभाय।।
आजांणबाहु अद्वितीय अंग।
निज पांण बांण धनु कटि निखंग।।
सीय बांम अंग मुख अग्र सेख।
बजरंग पाय सेवत बिसेख।।
इण रूप ध्यांन निज अवध ईस।
कर भजन ‘किसन’ निस दिन कवीस।।२५

छंद बै अख्यरी
गुरु लघु अनियंम सोळ मता गण।
छंद बै आखरी सोय बिचच्छण।।
दाटक रांम आलाटक दंडण।
हाटक कोट अधीस विहंडण।।
आस्रय आय भभीखण आतुर।
बेख ब्रवी जिण लंक सियाबर।।
एक घड़ी मझ दास उधारै।
धांनुंखधार बडा व्रद धारै।।
सौ नित गाव ‘किसन’ सुभायक।
नाथ अनाथ धणी रघुनायक।।२६


२५. आलम-संसार। अरिहंत-शत्रुघ्न। अहेस-लक्ष्मण। मतिवंत-बुद्धिमान्। घणाघण-(घनाघन) बादल। तड़िता-बिजली। प्रभाय-चमक। आजांणबाहु-आजानुबाहु। पांण-(पांणि) हाथ। सेख-लक्ष्मण। बजरंग-हनुमान। पाय-चरण।
२६. अनियंम-नियम नहीं। बिचच्छण-विचक्षण। दाटक-समर्थ। आलाटक-दुष्ट। दंडण-दंड देने वाला। हाटक-स्वर्ण। कोट-गढ़। अधीस-स्वामी। विहंडण-नष्ट करने वाला। आतुर-दुखी। बेख-देख। ब्रवी-इनायत की। मझ-मध्य। दास-भक्त। धांनुखधार-धनुषधारी। व्रद-विरुद। सुभायक-सुरुचिकर। धणी-स्वामी।

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छंद रडु
सप्तदस मात्रा
दूहौ
कीजै दूहौ प्रथम यक, सत्तरह मत्ता पाय।
तिथ रिव तिथ सिव तिथ, सुपय रडु छंद कहाय।।२७

छंद ग्रंथां तरे चूडामण नांम
धारत कर सायक धनुख, त्रेभोयण सिरताज।
भजियां जन कारक अभै, जै राघव माहराज।।
राज भभीखण लाज राखण, सरणागत साधारण।
धनंख सायक भुजां धारण, मह असुर खळ मारण।।
जांनुकीवर मरम जांणंग, तेग अरेसां तायक।।
‘किसन’ भज जन मांन रख के, दान अभै वरदायक।।२८


२७. तिथ-१५। रिव-१२। सिव-११।
२८. त्रैभोयण-त्रिभुवन। साधारण-रक्षा करने वाला। मह-(महि) पृथ्वी। मरम-मर्म। जांणंग-जानने वाला। अरेसां-(अरि + ईस) शत्रु। तायक-नाश करने वाला।
नोट–सप्तदस मात्रा के रडु छंद का लक्षण जैसा ग्रंथकार ने दिया है उसके अनुसार उदाहरण नहीं है, क्योंकि सत्रह मात्रा किसी भी चरण में नहीं हैं।

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अथ वीस मात्रा पवंगम छंद

ग्रंथांतरे चंद्रायणौ छंद
दूहौ
त्रे खट कळ लघु गुरु चरण, अंत मत्त इक वीस।
चुरस छंद चंद्रायणौ, आख सुजस अवधीस।।२९

छंद चंद्रायणौ
स्यांम घटा तन रूप विराजत सांमळा।
बेखौ दुपटा पीत छटा जिम बीजळा।।
कट तट ओप निखंग कोट छिब कांमकी।
रूप अनूप सचूप यसी दुति रांम की।।३०

तेवीस मात्रा

छंद महादीप
महदीप छंद तेर है दस मत पय जांणौ।
यण जोड़ सुजस रांम न्रपत उर मझ्झ आंणौ।।
जनपाळ स्री दयाळ सुलख जियगतजांमी।
सरण सधार बिरदधार हणूंमांन सांमी।।३१

छंद हीर
त्रय खटकळ अंत रगण नांम छंद हीर है।
सौ पसु कव धन्य पढ़त कीरत रघुबीर है।।


२९. त्रे-३। खट-६। चुरस-श्रेष्ठ।
३०. बेखौ-देखिए। छटा-दीप्ति। बीजळा-बिजली। कटतट-कटितल। ओप-शोभित। निखंग-तर्कश। सचूप-सुन्दर। यसी-ऐसी। दुति-द्युति।
३१. मझ्झ-मध्य। जनपाळ-भक्तों की रक्षा करने वाले। जीयगतजांमी-अन्तर्यामी। सरणसधार-शरण में आये हुएकी रक्षा करने वाला। हणूंमांन-हनुमान। सांमी-स्वामी।
३२. पसु-पशु, मूर्ख। कव-कवि, विद्वान।

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धरण धनुस बांम पांण बांण दच्छ हाथ है।
भंजण गढ़ लंक भूप गजण दस माथ है।।३२

छंद रोला
औयण मत चौवीस होय, जिण रोळा आखत।
भल कवि जोड़ग छंद मांझ, राघौ जस भाखत।।
गैल औण रज परसत रीजै नारी गौतम।
प्रतिपल ‘किसना’ रामचंद्र सौ भज पुरसोतम।।३३

छंद बथुवा
भव तेरह मत औण, कोय उप दोहा भाखै।
अख रोळा बथु ऊभै, त्रिविध आंनंद बथु आखै।।
दस तेरह मत्त रुद्र रुद्र रुद्रह नव आवै।।
राय बिथु तिण नांम रुद्र दस अंन मत गावै।।३४

अथ छंद काव्य
आद मत्त अगीयार, दुतीय पद तेर मात दख।
काव्य छंद तिण कहत, अवध ईस्वर कीरत अख।।
जिग कोसिक रख जेण, असुर मारीच उडायौ।
मार सुबाह मदंध, प्रगट रघुबर जय पायौ।।३५

दूहौ
मत्त छंद ‘किसनै’ मुणै, निज कीरत रघुनंद।
सुणौ सुकव अखुं सकौ, अब मत्ता उप छंद।।३६

इति मात्रा छंद संपूरण


३२. बांम-बायां। पांण-(पाणि) हाथ। दच्छ-दाहिना। भंजण-तोड़ने वाला। लंक-लंका। गंजण-पराजित करने वाला। दसमाथ-रावण।
३३. औयण-चरण। मत-मात्रा। आखत-कहते हैं। भल-उत्तम, श्रेष्ठ। जोड़ग-रचना करने वाला। मांझ-मध्य। राघौ-श्री रामचंद्र भगवान। गैल-रास्ता। औण-चरण।
३४. भव-ग्यारह। भाखै-कहते हैं। रुद्र-ग्यारह।
३५. आद-आदि। अगीयार-ग्यारह। मात-मात्रा। दख-कह। अख-कह, वर्णन कर। जिग-यज्ञ। कोसिक-विश्वामित्र। रख-रक्षा कर। जेण-जिस।

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अथ मात्रा उप छंद वरणण

दूहौ
जिण पय मंदाकिण जनम, अघ नासिणी अपार।
जिण भजतां अघ जाणरौ, विसमय किसुं विचार।।३७

तत्रादि हरि गीत छंद
चव आद खटकळ दुकळ गुरु यक पाय मत अठ वीसयं।
हरि गीत सौ जिण अंत लघु सौ रांम गीत मती सयं।।
बपु स्यामसुंदर मेघ रुचि फबि तड़ित पीत पटंबरं।
सुज बांम चाप निखंग कटि तट दच्छ कर भ्रांमत्त सरं।।३८

छंद रांम गीत
दसमाथ भंज समाथ भुज रघुनाथ दीन दयाळ।
गुह ग्राह ग्रीधक बंध तै गत व्रवण भाल विसाळ।।
सुग्रीव निरबळ राखि सरणै सबळ बाळ संघार।
पह जोय ‘किसना’ नांम परचौ तोय गिरवर तार।।३९


३७. पय-चरण। मंदाकिण-(मंदाकिनी) गंगा। अध-पाप। नासिणी-नाश करने वाली, मिटाने वाली। विसमय-(विस्मय) आश्चर्य। किसूं-कैसा।
३८. चव-कह। आद-(आदि) प्रथम। वपु-शरीर। रुचि-कांति। तड़ति-बिजली। बांम-बायां। चाप-धनुष। निखंग-तर्कश। दच्छ-दक्षिण।
३९. दसमाथ-रावण। समाथ-समर्थ। गत-(गति) मोक्ष। व्रवण-देने वाला। बाळ-बालि नामक बंदर। परचौ-चमत्कार। तोय-पानी। गिरवर-पर्वत।
नोटहरि गीत और राम गीत में यही अंतर है कि राम गीत में अंतिम वर्ण ह्रस्व रहता है। परन्तु उपर्युक्त राम गीत में छब्बीस मात्रा ही हैं।

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छंद सवैइया
अंत भगण ईकतीस मत्त पद छैस सवैयौ छाजत।
लख कारज तज समर रांम पद बीजां भजतौ मुढ़ न लाजत।।
संत अनेक उधार सियाबर पै सरणा अनाथां पाळण।
गढ़वा जै पढ़ बीज सची गथ जनमां तणा दुख सौ जाळण।।४०

दूहौ
पद प्रत मत गुणतीस पढ़ि, अंत गुरु लघु होय।
राघव जस जिण मझ रटां, कहै मरहट्टा सोय।।४१

छंद मरहट्टा
सीता सी रांणी वेद वखांणी, सारंगपांणी सांम।
मीढ़ न मघवांणी बळ ब्रहमांणी, नहिं रुद्रांणी नांम।।४२
जे अंतर जांमी वार नमांमी, स्वांमी जग साधार।
जोड़ी चिरजीवं पतनी पीयं, सुज सस दीवं सार।।४३

दूहौ
सात चतुकळ चरण मैं, एक होय गुरु अंत।
चतुर पदी कोइक चवै, रुचिरा कोय रटंत।।४४

छंद चतुरपदी तथा रुचिरा
दस माथ विहंडण आसुर खंडण, राघव भूप अरोड़ा।
पाथर रच पाजं समुद्र सकाजं, तै गड हाटक तोड़ा।।
सीताचौं स्वांमी अंतरजांमी रिव कुळ मंडण राजा।
जिण सुजस जपीजै लभ तन लीजै कीजै सुक्रत काजा।।४५


४०. छाजत-शोभा देता है। लख-लाखों। बीजां-दूसरों को।
४१. पद-चरण। प्रत-प्रति। सोय-वह।
४२. सारंगपांणी-(सारंगपाणि) विष्णु, श्रीरामचंद्र। सांम-(स्वामी) पति। मीढ़-समता। मघवांणी-इन्द्राणी। ब्रह्मांणी-ब्रह्माणी। रुद्रांणी-पार्वती, सती।
४३. साधार-रक्षक। पतनी-पत्नी। पीयं-पति। सस-शशि, चंद्रमा। दीवं-सूर्य।
४४. कोइक-कोई। चवै-कहते हैं। रटंत-कहते हैं।
४५ विहंडण-नाश करने वाला। अरोड़ा-जबरदस्त। पाथर-पत्थर। पाजं-सेतु, पुल। हाटक-स्वर्ण। रिव-(रवि) सूर्य।

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छंद धत्ता
सत दुजबर ठांणौ त्रय कळ आंणौ कहि धत्ता यक तीस कळ।
रटजै मझ राघौ दुख अघ दाघौ फिर तन धारण पाय फळ।।
द्रुम सात बिभेदण क्रमगत छेदण तै जस कह भव सिंधु तर।
सुत स्री कौसल्या तार अहल्या, करुणानिध सौ याद कर।।४६

ग्रंथांतरे धतानंद अन्य विध
दस सात मात्रा पर विस्रांम अंत लघु सतरै मात्रा सौ धतानंद छंद।

छंद त्रिभंगी
दस अठ अठ छामं चव विस्रांमं छंद सुनांमं तिरभंगी।
रघुनाथ समथ्थं हणि दसमथ्थं रखि यळ गथ्थं रिण संगी।
ससिबदनी सीता कंत पुनीता दास अभीता कुळदीता।
‘किसना’ जिण कीता गुण मुख गीता प्रगट पुणीता जग जीता।।४७

खट सद्रस्य छंद लछण

दूहौ
तिरभंगी १ पदमावती २ दंडकळ ३ लीलावती ४।
दुमिळा ५ जनहर ६ छंद दख अै सम छहूं अखंत।।४८


४५. मंडण-आभूषण। लभ-लाभ। काजा-कार्य।
४६. सत-सात। दुजबर-चार मात्रा का नाम। ठांणौ-रखो। त्रय-तीन। मझ-मध्य। दाघौ-जलायो। बिभेदण-भेदन करने वाला। क्रमगत-कर्मगति। छेदण-नाश करने वाला। भव-संसार।
४७. छामं-छ मात्रा। चव-कह। समथ्थं-समर्थ। हणि-मार कर। दसमथ्थं-रावण। रखि-रख कर। यळ-पृथ्वी। गथ्थं-गाथा, वृत्तान्त। ससिबदनी-चन्द्रमुखी। कंत-पति। पुनीता-पवित्र। दास-भक्त। अभीता-निर्भय। कुळदीता-(कुल + आदित्य) सूर्यवंशी। कीता-कीर्ति। गीता-गाया।

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छंद पदमावती
दस वसु खट आठं इक पद पाठं सौ पदमावती छंद सही।
सौ सुकव सुभागी हरि अनुरागी मत लागी जस रांम मही।।
सीता वर सुंदर मह गुण मंदर पाय पुरंदर दास पड़ै।
चव जै जस चारण ‘किसन’ सकारण धारण सौ यक एक धड़े।।४९

छंद दंडकल़
दस अठ चवदेसं दंडकळेसं मत्त बतेसं जेण पयं।
कह जे मझ कीरत पावत स्रीपत लाभ सधारण देह लयं।।
अवधेस अभंगं, जीपण जंगं कोटि अनंगं धारी कळं।
खर दूखर खंडण बाळ विहंडण दाप निवारण पाप दळं।।५०

छंद दुमिल़ा
दस वसुखट ठांणौ फिर वसु आंणौ दुमिळा ठांणौ करणंता।
दसरथ सुत न्रपवर कळख खयंकर, सौ भव दध तिर निज संता।।
रवि कौट प्रकासं जपि मुख जासं, देण अभेपद निज दासं।
निस दिन पत्रासं, हरखि हुलासं, जस प्रतिसासं जपि जासं।।५१


४९. वसु-आठ। खट आठं-चौदह। सौ-वह। सुकव-सुकवि। सुभागी-भाग्यशाली। मत-मति। मह-महि, महान्। पाय-पैर। पुरंदर-इंद्र। दास-भक्त। धड़ै-तराजू के पलड़े में।
५०. चवदेसं-चवदह। मत्त-मात्रा। बतेसं-बत्तीस। पय-चरण। मझ-(मध्य में)। अभंगं-वीर। जीपण–जीतने वाला। जंग-युद्ध। कळं-कांति। खर दूखर-खर दूषण। खंडण-मारने वाला। बाळ-बालि। विहंडण-नष्ट करने वाला। दाप-दर्प, अभिमान। दळ-समूह।
५१. वसुखट-चौदह। ठांणौ-स्थापित करो। आंणौ-लाओ। करणंता-जिसके अंत में कर्ण (SS) हो। कळख-कलुष। खयंकर-नष्ट करने वाला। भव-संसार। दध-(उदधि) समुद्र। अभेपद-निर्भयता। पत्रासं-पत्ते खाकर। जस-यश। प्रतिसासं-(श्वास प्रतिश्वास) प्रत्येक श्वास।

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छंद लीलावती
गुरु लघु विण नियमं तीस बि मत्ता।
लीलावती गुरु अंत कहै।
जौ रघुबर गावै सब सुख पावै,
निभय जिकां जम ताप नहै।
सर गिरवर तारे पदम अठारै,
सेन उतारे जगत सखै।
भिड़ रांवण भंजे गढ़हिम गंजे,
अमरां रंजे ब्रहम अखै।।५२

छंद जनहरण
सब लघु पय पय धरि पछ यक गुरु करि,
जळहर कळ सम लछण धरै।
सुज उर दुति सरवर तिम कळ तरवर,
सिध रघुवर सुजस बरै।
हर अकरण करण सरण असरण हरी,
तरण अतर भव जळधि तिकौ।
कट कट अघ दुघट विकट्ट थट अण घट,
झट झट रट रट ‘किसन’ जिकौ।।५३

छंद वरवीर
चव कळ उरोज थळ च्यार वोज,
वरवीर छंद कह यम कव्यंद।
जस वांण जास मधि चित हुलास,
अख पाप नास रघुवंस यंद।
दसरथ कुमार, धनुबांण धार
जुध असुर जार सरणा सधार।
जांनकीनाथ गिरतार पाथ,
सौ है समाथ भव सिंधु सार।।५४


५२. विण-विना। मत्ता-मात्रा। नहै-नष्ट होते हैं। सर-समुद्र। सखे-साक्षी देता है। भिड़-योद्धा। भंजे-नाश किया। गढ़हिम-लंका। गंजे-जीत लिया। रंजे-प्रसन्न किया। ब्रहम-ब्रह्मा। अखै-कहता है।
५३. पय-चरण। पछ-पश्चात्। जळहर-छंद का नाम। विकट्ट-भयंकर। थट-समूह। अणघट-जो घटित न हो।
५४. कव्यंद-कवींद्र, महाकवि। मधि-मध्य। यंद-इन्द्र। असुर-राक्षस। जार-नष्ट कर। पाथ-जल। समाथ-समर्थ। भव-संसार। सिंधु-समुद्र।

— 56 —

सोरठौ
वीस मत्त विसरांम, दुवै सतर गुरु अंत दस।
तीस सात मत तांम, जिण पद छंद सझूलणा।।५५

दूहौ
आठ पंच कळ पाय यक, आख फेर गुरु अंत।
नांम जेण पिंगळ निपुण, उप झूलणा अखंत।।५६

छंद झूलणा
वेद चव भेद खट तरक नव व्याकरण वळै खट भाख जीहा वखांणै।
भांत पौरांण दस आठ पिंगळ भरथ, उगत जुगतां तणा भेद आंणै।।
राग खट तीस धुनि व्यंग भूखण सुरस पात पद।
जिकै विण समझ चंडूल पंखी जिंही जे न रघुनाथचौ नांम जांणै।।५७


५६. पाय-चरण। यक-एक। आख-कह। अखंत-कहते हैं।
५७. वळै-फिर। भाख-भाषा। जीहा-जिह्वा। पौरांण-पुराण। उगत-उक्ति। जुगतां-युक्तियों। धुनि-(सं०ध्वनि) वह निबंध या काव्य जिसमें शब्द और उसके साक्षात् अर्थ से व्यंग में विशेषता या चमत्कार हो। ब्यंग-(सं०व्यंग्य) व्यंजना वृत्ति से प्रकट शब्द का गूढार्थ। भूखण-अलंकार। विण-समझ-मूर्ख, अज्ञानी। चंडूळ-एक प्रका रकी खाकी रंग की छोटी चिड़िया जो वृक्षों पर बहुत सुंदर घोंसला बनाती है और बहुत ही मधुर बोलती है। पंखी-पक्षी। जिंही-जैसे। जे-जो।

— 57 —

छंद उप झूलणा
सीस दीधौ जिको नांम रघूनाथ सूं,
नैण दीधा जिकौ निरख माधव नरा।
जीभ दीधी जिकै क्रीत स्रीवर जपौ,
होठ मुसुकाय रिझवाय पातक हरा।
हाथ दीधा जिकौ जोड़ आगळ हरी,
उदर परसाद चरणा-अम्रत आचरा।
पाय दीधा जिकै ‘किसन’ पर-दछ,
फिर नाच राघव आगै सफळ कर तन नरा।।५८

छंद मदन हरा लछण
दूहौ
अठ दुजबर खटकळ सुयक, एक हार गण अंत।
मदन हरा सौ छंद मुणि, राघव सुजस रटंत।।५९

छंद मदन हरा
रज पाय परस जिण नार रिखी,
तज देह सिला छिन मांह तरी, रट सौ हरी।
दिन मांन कदन न्रप जनक सदन धनुभंजी,
वदै जग सीय बरी, क्रत उद्धकरी।
आजांनसुकर सर चाप सुधर,
जिण अतुळ पराक्रम वेद अखै, सिस सूर सखै।
‘किसनेस’ सुकव दख सौ निस दिव,
रदि सिं. . . . भाखै, भव कंज भखै।।६०


५८. दीधौ-दिया। दीधा-दिये। नरा-नर, मनुष्य। दीधी-दी। स्रीवर-(श्रीवर) विष्णु। पातक-पाप। हरा-मिटाने वाला। आगळ-अगाड़ी। पर-दछ-प्रदक्षिणा। आगै-अगाड़ी।
नोट-छंद शास्त्र के अनुसार झूलणा (ना) छंद के लक्षण में १०, १०, १० और ७ पर विश्राम से कुल ३७ मात्राएं प्रत्येक चरण के अंत में यगण सहित होती हैं। यहां पर ग्रंथकर्ता के दिए झूलणा छंद के लक्षण स्पष्ट नहीं होते हैं। इसी प्रकार उपझूलणा के भी लक्षण स्पष्ट नहीं हैं।
५९. अठ-आठ। दुजबर-चार मात्रा का नाम। मतांतर से आदि गुरु की चार मात्रा का नाम (SII)। हार-एक दीर्घ का नाम (S)।
६०. रज-धूलि। पाय-चरण। कदन-नाश। सदन-भवन। क्रत-(क्रतु) यज्ञ। उद्धकरी-उद्धार किया। आजांनसुकर-प्रजानबाहु। सर-बाण, तीर। चाप-धनुष। सिस-(शशि) चन्द्रमा। सूर-सूर्य। सखै-साक्षी देते हैं। दख-कह। निस दिव-रात दिन। रवि-हृदय।

— 58 —

दूहौ
कर दुजवर नव रगण हिक, चव पै मत चाळीस।
सुकवी खंजा छंद सौ, मुण कीरत लिछमीस।।६१

छंद खंज
रखण जन सरण रघुराज कौसळ कंवर,
धनुख सर धरण कर सकळ सुख धांम है।
भरत्थ अरिहा लछण भ्रात अग्रज सुभग महा,
मन हरण घण रूप तन स्यांम है।
सरल तन सहज दन मुकत दायक सुमत,
गजगमणी जांनकी भांम गुण ग्रांम है।
रात दिन हुलस मन सुजस ‘किसनेस’ रट,
रखण जन मांम तरुकांम रघु रांम है।।६२

दूहौ
बार प्रथम तेरह दुतीय, रगण अंत विस्रांम।
मांझ चरण पचीस मत्त, निज गगनागा नांम।।६३

छंद गगनागा
खळ दळ समर खपावत किव जण गावत कीरती।
सीता वाहर सझतां वसुधा जाहर वीरती।।
‘किसना’ निस दिन जस कर गुणियण जैनूं गावजै।
राघव राजा सौ रट प्रगट उंच पद पावजै।।६४


६१. लिछमीस-(लक्ष्मी + ईश) विष्णु, श्रीरामचन्द्र।
६२. भरत्थ-भरत। अरिहा-शत्रुघ्न। लछण-लक्ष्मण। घण-(घन) बादल। मुकत-मुक्ति, मोक्ष। गजगमणी-गजगामिनी। भांम-भामिनी। गुण ग्रांम-गुणों का समूह। जन-भक्त। मांम-प्रतिष्ठा, मर्यादा। तरुकांम-कल्प वृक्ष।
६३. बार-बारह। मांझ-मध्य में।
६४. खपावत-नाश करते हैं। कीरती-कीर्ति, यश। वाहर-रक्षा। वसुधा-पृथ्वी। जाहर-जाहिर, प्रसिद्ध। वीरती-वीरत्व, शौर्य। गुणियण-कवि। जैनूं-जिसको।

— 59 —

दूहौ
एक छकळ फिर च्यार कळ, पांच होय गुरु अंत।
अठावीस कळ औण प्रत, द्रुपदी छंद दखंत।।६५

छंद द्रुपदी
जनक सुता मन रंजण गंजण, असुर अगंजण आहवं।
मैं सरणागत कदम सदा मद, मौ लजा रख माहवं।।
दीनानाथ अभै वरदाता, त्राता सेवग तारणं।
तौ निज पायनि मौ दसरथ तण, घण पापां सिंघारणं।।६६

दूहौ
दस दस पर विसरांम चव, मत चाळीस हुवंत।
गुरु लघु अखिर नियम नहिं, उद्धत छंद अखंत।।६७


६५. अठावीस-अट्ठाईस। औण-चरण। प्रत-प्रति। दखंत-कहते हैं।
६६. रंजण-प्रसन्न करने वाला। गंजण-नाश करने वाला। अगंजण-वह जो जीता न जा सके, अजयी। आहवं-युद्ध। घण-बहुत। सिंघारणं-संहार करने वाला।
६७. चव-कह। हुवंत-होते हैं, होती हैं। अखंत-कहते हैं।

— 60 —

छंद उद्धत
दळ सझत खळ दाह यभ बाज अणथाह,
गह रचण गजगाह नरनाह रघुनाथ।
सट पटत भर सेस अति चक्रित अरेस,
दिन धूंधळ दिनेस थरराहइ अर साथ।
निहसंत नीसांण ह्वै बाज हींसांण,
सझ काज घमसांण अपांण भड़ ओघ।
नृप दासरथनंद सौ कारुणासिंध,
जस राच राजिंद मुख वाच आमोघ।।६८

दूहौ
दुजबर नव ता पछ रगण, करण ता पछै होय।
अरध फेर गाथा अधर, माळा कहजै सोय।।६९

छंद माल़ा
अवधपति अनम सुज, तेज रवि कौट सम,
सियपति सरम रख लख जनां आधार है आखां।
नृप राघव जगनायक लायक,
भूपाळ लेण जस लाखां।।७०

दूहौ
सात टगण फिर त्रिकळ यक, अंत रंगण इक आंण।
मत सैंताळी पायमें, पंच वदन सौ जांण।।७१


६८. यभ-इभ, हाथी। बाज-घोड़ा। अणथाह-अपार। गह-गंभीर, महान। गजगाह-युद्ध। अरेस-(अरीश) शत्रु। धूंधळ-धूलि आच्छादित, धूमिल, धुंधला। दिनेस-सूर्य। थरराहइ-कंपायमान होते हैं। अर (रि)-शत्रु। साथ-सेना, दल, समूह। निहसंत-बजते हैं। नीसांण-नगाड़ा। व्है-होता है, होती है। हींसांण-हिनहिनाहट। घमसाण-युद्ध। अपांण-शक्तिशाली। ओध-समूह। सौ-वह। कारुणासिंध-(करुणा- सिंधु) दयासागर। आमोघ (अमोघ)-अव्यर्थ, अचूक।
६९. करण-दो दीर्घ का नाम SS। सोय-वह।
७०. रवि-सूर्य। कौट-करोड़। लख-लाखों। आखां-कहता हूँ।
७१. पाय-चरण।

— 61 —

छंद पंच वदन
रघुवर महाराज गाव नहचै यक पळ न लाव,
रंक करै सोई राव सुद्ध भाव सांम रे।
दीनबंधु देवदेव भाखत स्रुति भ्रहम भेव,
जेता जग सौ अजेव गहर गरुड़ गांम रे।
जळद नील देह जेह तड़िता पट पीत तेह,
गोब्यंद सत क्रत गेह सीत नेह संजणं।
राखण मिथळेसराज लाखवात अघट लाज,
करि अमाप सबळ करग भरग चाप भंजणं।।७२

दूहौ
अै मात्रा उपछंद, कहिया मत माफक ‘किसन’।
नहचै सुण रघुनंद, निज सेवगां निवाजसी।।७३
इति मात्रा उपछंद संपूरण।

अथ मात्रा असम चरण छंद वरणण

दूहौ
मरण जनमचौ सळ मिटण, सौ सलभ व्है संभार।
जंम मौ सळ भंजै जिसौ, कौसळ राजकंवार।।७४
नर तन पावै जे नरा, गुण गावै गोब्यंद।
जनम सफळ थावै जिकै, फिर नावै जम फंद।।७५


७२. राव-राजा। सांम-स्वामी। भ्रहम-ब्रह्मा। भेव-भेद। जेता-जीतने वाला। अजेव (अजय)-जो किसी से जीता न जा सके। गहर-गंभीर। जळद-बादल। जेह-जिस। तड़िता-बिजली। तेह-उस। गोब्यंद-गोविन्द। सीत-सीता, जानकी। नेह-स्नेह, प्रेम। संजणं-साधन करने वाला। करग-हाथ। भरग-भृगु मुनि, परशुराम। चाप-धनुष। भंजणं-भजन करने वाला।
७३. अै-ये। मत-मति, बुद्धि। माफक-माफिक। निवाजसी-प्रसन्न होंगे।
७४. चौ-का। सळ-कष्ट। सलभ-सुलभ। संभार-स्मरण कर। मौ-मेरा। जिसौ-जैसा।
७५. गुण-यश, कीर्ति। गोब्यंद-गोविंद। फंद-जाल, बंधन।

— 62 —

अथ मात्रा असम चरण छंद वरणण।
तत्रादि दोहा छंद

दूहौ
तेर मत्त पद प्रथम त्रय, दुव चव ग्यारह देख।
अख सम पूरब उत्तर अध, लछण दूहा लेख।।७६

अन्य लछण दूहा
दूहौ
सुज उलटायां सोरठौ, सांकलियौ आदंत।
मध्य मेळ दूहौ मिळै, तव तूंबेरौ तंत।।७७

दूहौ
अजामेळ पर आविया, साठ सहंस जम साज।
नांम लियां हिक नारियण, भड़ सोह छूटा भाज।।७८

सोरठौ
प्रगट ऊब्हांणै पाय, आयौ सोह जांणै यळा।
सिंधुरतणी सिहाय, कीधी धरणीधर ‘किसन’।।७९

सांकळियौ दूहौ
मत जकड़ी भव माग, मकड़ी जाळा जेम मन।
हर द्रढ़ कर पकड़ी हिया, लकड़ी हरी पळ लाग।।८०


७६. तेर-तेरह। मत्त-मात्रा। त्रय-तृतीय। दुव-दूसरा द्वितीय। चव-चतुर्थ। लछण-लक्षण।
७७. मध्य मेळ दूहौ-वह दोहा छंद जिसकी तुकबंदी द्वितीय और तृतीय चरण से की जाती है। इस दोहा छंद का दूसरा नाम तूंबेरा (तूंबेरौ) भी है। तव-कह। तंत-उसे।
७८. सहंस-सहस्र। जम-यम, यमदूत। साज-सुसज्जित होकर। हिक-एक। नारियण-नारायण। भड़-योद्धा। सोह-सब। भाज-भग कर।
७९. ऊब्हांणे-नंगे पैर। यळा-इला, पृथ्वी, संसार। सिंधुर-गज, हाथी। तणी-की। सिहाय-सहाय, सहायता। कीधी-की। धरणीधर-ईश्वर।
८०. सांकळियौ-वह दोहा छंद जिसकी तुकबन्दी प्रथम चरण और चतुर्थ चरण से की जाती है। इस दूहा (दोहा) छंद का दूसरा नाम अन्तमेळ भी है। कहीं-कहीं इसे बडा दूहा भी कहा गया है। मत-मति, बुद्धि। जकड़ी-बंधन में की गई। भव-संसार। मकड़ी-(सं० मर्कटक) आठ आंखों और आठ पैरों वाला एक कीड़ा जो दीवारों आदि पर अपना जाल बनाने में प्रसिद्ध है।

— 63 —

दूहौ तूंबेरौ
मेवा तजिया महमहण, दुरजोधन रा देख।
केळा छोत विसेख, जाय बिदुर घर जीम्हिया।।८१

दूहौ
सौ दूहा तेईस सुज, नांम सहत निरधार।
जोड़ देखाऊं जूजुवा, सुणौ रांम जस सार।।८२

कवित छप्पै
भ्रमर १ भ्रमरौ २ सरभ ३ सैन ४,
मंडुक ५ मरकट ६ सख।
करभ ७ नरह ८ सुमराळ ९,
अवर मदकळ १० पयधर ११ अख।।
चळ १२ वांनर १३ कह त्रकळ १४,
मच्छर १५ कच्छप १६ सादूळह।
अहिवर १८ बाघ १६ बिडाळ २०,
सुन कर २१ ऊंदर २२ स्रप २३ थूळहा।।
तेईस नांम दूहां तणै,
वरणे ‘किसन’ बखांणियौ।
यळ ब्रथ जनम खोयौ अवस,
ज्यां हरि नांम न जांणियौ।।८३

उदाहरण

दूहौ
भमर अखिर छाईस भण, चव लघु गुरु बाईस।
यक गुर घट बे लघु बधै, सौ सौ नांम कवीस।।८४


८१. महमहण-विष्णु, ईश्वर। छोत-छिलका। विसेख-विशेष। जीम्हिया-भोजन किया।
८२. सौ-वे। जोड़-रच कर। जूजुवा-पृथक-पृथक।
८३. व्रथ-व्यर्थ। अवस-अवश्य।
८४. अखिर-अक्षर। छाईस-छब्बीस। भण-कह। चव-चार। यक-एक। बे-द्वे, दो।

— 64 —

अथ भ्रमर नांम
अख्यर २६ गुरु २२ लघु ४

दूहौ
ना कीज्यौ सैणा नरां, काचौ बीजौ कांम।
राखै लाजा संतरी, राजा साचौ रांम।।८५

अथ भ्रांमर नांम
अख्यर २७ गुरु २१ लघु ६

दूहौ
कोड़ां पापां कीजतां, कोपै धू की नास।
जीहा राघौ जौ जपै, तौ नांही तिल त्रास।।८६

अथ नांम सरभ
अक्षर २८ गुरु २० लघु ८

दूहौ
मांनौ वारंवार मैं, देखे नां नर देह।
गायां स्त्री राघौ गुणां, अै पायां फळ एह।।८७

अथ नांम सैन
अख्यर २९ गुरु १९ लघु १०

दूहौ
भौळा प्रांणी रांम भज, तूं तज झौड़ तमांम।
दीहा छेल्है देख रे, कैसे हूंता कांम।।८८

अथ मंडूक नांम
अख्यर ३० गुरु १८ लघु १२

दूहौ
जाई बेटी जांनकी, रांम जमाई रंज।
भाग बडाई जनकरी, गाई बेद अगंज।।८९


८५. अख्यर-अक्षर। सैणा-सज्जन। काचौ-कच्चा। बीजौ-दूसरा। लाजा-लज्जा। साचौ-सत्य।
८६. तिल-किंचित। त्रास-भय। राघौ-श्री रामचन्द्रजी।
८८. झौड़-कलह, प्रपंच। दीहा-दिन। छेल्है-अन्तिम।
८९. जमाई-दामाद। रंज-प्रसन्न, खुश। अगंज-न मिटने वाला।

— 65 —

अथ मरकट नांम
अख्यर ३१ गुरु १७ लघु १४

दूहौ
हर मत छाडै रै हिया, लिया चहै जौ लाह।
दिल साचै तेड़ौ दियां, नेड़ौ लिछमी नाह।।६०

अथ करभ नांम
अख्यर ३२ गुरु १६ लघु १६

दूहौ
मांनवियां छाडौ मती, कर गाढ़ौ भज टेक।
जाडौ दळ फिरियां जमां, आडौ राघव अेक।।९१

अथ नर नांम
अख्यर ३३ गुरु १५ लघु १८

दूहौ
रोम रोम मैं रम रि’यौ, देख अखंड दईव।
चोरी जिणसूं नह चलै, जाबक भोळा जीव।।९२

अथ मराळ नांम
अख्यर ३४ गुरु १४ लघु २०

दूहौ
मूरख जाचक जाच मत, जाच जाच जगदीस।
के रंकां राजा करै, एक पलक मझ ईस।।९३

अथ मदकळ नांम
अख्यर ३५ गुरु १३ लघु २२

दूहौ
भख पुंहचावै भूधरौ, अजगर रै अनय्यास।
किम भूलै संतां ‘किसन’, संभरतां सुख रास।।९४


९०. हर-इच्छा। छाडै-त्यागे। लाह-लाभ। तेड़ौ-बुलावा। नेड़ौ-निकट। लिछमी-लक्ष्मी। नाह-नाथ, पति।
९१. मानवियां-मनुष्यों। छाडौ-त्यागो, छोडो। गाढ़ौ-दृढ़, मजबूत। जाडौ-घना, अधिक। आडौ-रक्षक।
९२. दईव-देव, ईश्वर। जाबक-जंबुक, मूर्ख। भोळा-प्रज्ञानी।
९३. जाचक-याचक। रंकां-गरीबों। मझ-मध्य में। ईस-ईश्वर।
९४. भख-भोजन। भूधरौ-भूधर, ईश्वर। अनय्यास-अनायास, बिना श्रम।

— 66 —

अथ पयोधर नांम
अख्यर ३६ गुरु १२ लघु २४

दूहौ
मन दुख दाधा डौल मत, साधा जग तज साव।
मांनव भव भीता मिटण, गुण सीतावर गाव।।९५

अथ चळ नांम
अख्यर ३७ गुरु ११ लघु २६

दूहौ
सह रांचै जन सादियां, मत बहरौ कर मांन।
कीड़ी पग नेवर झणक, भणक सुणै भगवांन।।९६

अथ वांनर नांम
अख्यर ३८ गुरु १० लघु २८

दूहौ
रै चित व्रत द्रढ़ अेम रख, मूरत स्यांम मझार।
मेल्ह सुरत नट वांस मैं, प्रगट वरत व्है पार।।९७

अथ त्रिकळ नांम
अख्यर ३९ गुरु ९ लघु ३०

दूहौ
केसव भजतौ हरख कर, मत कर आळस मूढ़।
जिण दीधौ मनखा जनम, गरभ कौल कर गूढ़।।९८

अथ मच्छ नांम
अख्यर ४० गुरु ८ लघु ३२

दूहौ
चित जे मत व्है चळ विचळ, भज भज नहचळ भाय।
कूक करै जिण दिन कुटंब, स्रीवर करै सिहाय।।९९


९५. दाधा-दग्ध, जला हुआ। साव-स्वाद। भव-संसार। भीता-भीति, डर, भय।
९६. सादियां-पुकार करने पर। बहरौ-बहरा। नेवर-पैरों का आभूषण विशेष। झणक-ध्वनि। भणक-आवाज, शब्द।
९७. मूरत-मूर्ति। स्यांम-श्याम, श्रीकृष्ण। मझार-मध्य, में। सुरत-ध्यान। वरत-वस्त्र, चमड़े का बना मोटा रस्सा।
९८. मूढ़-मूर्ख। दीधौ-दिया। मनखा जनम-मनुष्य जन्म। कौल-वादा, प्रण। गूढ़-गुप्त।
९९. चळ विचळ-डांवाडोल। कूक-पुकार। स्रीवर-श्रीवर, विष्णु। सिहाय-सहाय।

— 67 —

अथ कछप नांम
अख्यर ४१ गुरु ७ लघु ३४

दूहौ
मिळ न पुळ पुळ तन मनख, धनख धरण चित धार।
पात झड़ै तरवर पहव, चढ़े न फेर विचार।।१००

अथ सादूळ नांम
अख्यर ४२ गुरु ६ लघु ३६

दूहौ
धन धन कुळ पित मात धन, नर अथवा धन नार।
रघुबर जस अह-निस रटै, जे धन अवन मझार।।१०१

अथ अहिबर नांम
अख्यर ४३ गुरु ५ लघु ३८

दूहौ
हर हर जप अनम कर हर, परहर अहमत पोच।
व्यापक नर हर जगत विच, अंतर गत आलोच।।१०२

अथ बाघ नांम
अख्यर ४४ गुरु ४ लघु ४०

दूहौ
अमरत दध नह तिय अधर, विधु यिमरत न वखांण।
के जन अजरांमर करण, जस हर यिमरत जांण।।१०३


१००. पुळ पुळ-बार बार। तन-शरीर। मनख-मनुष्य। धनख-धरण-धनुषधारी, श्री रामचंद्र। पात-पत्ता, पान। पहव-प्रथम।
१०१. धन धन-धन्य धन्य। पित-पिता। मात-माता। नार-नारी, स्त्री। अह-निस-रात दिन। अवन-अवनी, भूमि। मझार-मध्य में।
१०३. दध-उदधि, समुद्र। तिय-स्त्री। अधर-ओष्ठ। विधु-चंद्र, चंद्रमा। यिमरत-अमृत। अजरांमर-वह जो न वृद्ध हो और न मृत्यु को प्राप्त हो। हर-हरि, विष्णु, ईश्वर। जांण-समझ।

— 68 —

अथ विडाळ नांम
अक्षर ४५ गुरु ३ लघु ४२

दूहौ
जिण हर सरजत नर जनम, सुजदी रसण समाथ।
कर झटपट कवियण ‘किसन’, नितप्रत रट रघुनाथ।।१०४

अथ सुनक नांम
अख्यर ४६ गुरु २ लघु ४४

दूहौ
परगट कट तट तड़त पट, सरस सघण तन स्यांम।
गह भर समपण कनक गढ़, रहचण दस-सिर रांम।।१०५

अथ ऊंदर नांम
अख्यर ४७ गुरु १ लघु ४६

दूहौ
राघव रट रट हरख कर, मट मट अघ दळ महत।
जनम मरण भय हरण जन, कज भव हर रिख कहत।।१०६

अथ सरप नांम
अख्यर ४८ गुरु ० लघु ४८

दूहौ
हर रिण दस सिर विजय हित, घर निज कर सर धनक।
पढ़त ‘किसन’ किव सरण पय, जय रघुबर जग जनक।।१०७


१०४. सरजत-रचता है। रसण-जिह्वा, जीभ। समाथ-समर्थ। झटपट-शीघ्र। कवियण-कविजन, कवि। नित प्रत-नित्य प्रति, सदैव।
१०५. परगट-प्रकट। कट-कटि, कमर। तड़त-तड़िता, बिजली। पट-वस्त्र। कनक गढ़-लंका। रहचण-नाश करने वाला। दस सिर-दशानन।
१०६. मट-मिटते हैं। अघ-पाप। दळ-समूह। महत-महान। कज-ब्रह्मा। भव-महादेव। हर-हरि, विष्णु। रिख-ऋषि। कहत-कहते हैं।
१०७. कर-हाथ। सर-बाण। धनक-धनुष। जग-संसार। जनक-पिता

— 69 —

अथ चरणा दूहा विचार
पहल त्रतीय पद सोळ मत, दुव चव ग्यारह दाख।
चरणा दूहा चुरस कर, भल किव तिणनूं भाख।।१०८

उदाहरण
चरणा दूहौ
दट अणघट अघ विकट दळांरौ, राजा सांचौ रांम।
बळ सौ है दिन जन निबळांरौ, नित जापौ तै नांम।।१०९

पंचा दूहौ लछण
पहलै तीजै बार पढ़, उभये वेद इग्यार।
पंचा दूहा सौ पुणै, सुकव जिके मतसार।।११०

उदाहरण
रांम भजन सूं राता, महत भाग जे मांन।
ज्यां सारीखौ जग में, उत्तम न जांणै आंन।।१११

अथ नंदा दूहा तथा बरवै छंद
मोहणी लछण

दुहौ
धुर तीजै मत बार धर, सुज़ बे चौथे सात।
नंदा दोहा मोहणी, बरवै छंद कहात।।११२


१०८. सोळ-सोलह। मत-मात्रा। दुव-दूसरा। चव-चतुर्थ। दाख-कह। चुरस-रीति, अनुसार, नियमानुसार। भल-श्रेष्ठ। किव-कवि। तिण-उस। भाख-कह।
१०९. दट-दुष्ट। अणघट-अपार। अघ-पाप। सांचौ-सच्चा। सौ-वह। जापौ-जपो। तै-उसका।
११०. पहलै-प्रथम। बार-बारह। ईग्यार-ग्यारह। पुणै-कहते हैं। मत-बुद्धि, मति।
१११. राता-अनुरक्त, लीन। महत-महान। भाग-भाग्य। सारीखौ-सदृश, समान। आंन-अन्य।
११२ धुर-प्रथम। मत-मात्रा। बार-बारह। बे-दूसरा।
नोट-ग्रंथकर्ता ने नन्दा मोहणी और बरवैको एक-दूसरे के पर्याय मान कर रचना नियम के एक ही लक्षण प्रथम तथा तृतीय चरण में बारह मात्रा और द्वितीय और चतुर्थ चरण में सात-सात मात्रा मानी हैं पर नंदा मोहणी और बरवै में पूर्वाचार्य्यों के मत से कुछ-कुछ भिन्न लक्षण होते हैं। बरवै में प्रथम तृतीय चरण में बारह-बारह मात्रा तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में सात-सात मात्रा सहित अंत में जगण होना आवश्यक माना गया है। इसी प्रकार मोहणी छंद के अन्त में सगण होना आवश्यक होता है।

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उदाहरण बरवै नंदा
दूहौ
पह ज्यांरा चित लागा, रघुबर पाय।
पुळ पुळ में त्यां पुरखां, थिर सुख थाय।।११३

ग्रंथ चौटिया दूहा लछण
चौटियौ दूहौ
दूहा पूरब अरध पर, अधक बार मत होय।
उत्तरारध दस मत अधक, दुहौ चौटियौ सोय।।११४

उदाहरण
चौटियौ दूहौ
महाराजा रघुवंसमण, सुज रावण समथरा धनु सर पांणां धारै।
वायक सत सीतावरण, नृप नायक रघुनाथ तूं संतां तारै।।११५

अथ दूहा कौ नांम काढण विध
दूहौ
दूहा लघु गिण आध कर, ज्यां मझ घट कर एक।
रहेस बाकी नांम रट, वीदग अघट विसेक।।११६

इति भ्रमरादिक तेवीस दूहा नांम करण विध संपूरण।


११३. पह-प्रथम। ज्यांरा-जिनके। पाय-चरण। थिर-स्थिर, अटल।
११४. अधक-अधिक। सोय-वह।
११५. रघुवंसमण-रघुवंशमणि। धनु-धनुष। सर-बाण। पांणां-हाथों।
११६. वीदग-विदग्ध, कवि, पंडित।

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छंद चूळियाळा
दूहा अध पर पंच मत, चूळियाळा सौ जांणसु।
कविवर देह लियां फळ एह, दख बद जीहा बाखांण स रघुबर।।११७

छंद निस्रेणका
सझ तेरह धुर फेर दस, जांणौ निस्रेणी।
रिख नारी तरगी हरी, परसत पग रेणी।।
जेण रांम जस दिवस निस, किव ‘किसन’ जपीजै।
लाभ देह रसना समुख, पायांरौ लीजै।।११८

छंद चौबोला
धुर मत्त सोळ अवर चवदह धर, अंत गुरू चौबेल अखै।
सौ भज ‘किसन’ रांम सीतावर, संत तार ब्रद निगम सखै।।
रांवण कूंभ मेघ खर रहचे, कथ सौ बेद पुरांण कही।
बगसी भूपां भूप बभीखण, सरणागत हित लंक सही।।११९

छंद ककुभा
कळ धुर सोळ बार सौ ककुभा, उप चौबोलक कहावै।
सुणजै सौ सुभ छंद, जेण में गुण सीतावर गावै।।
जांमण मरण मरण फिर जांमण, जग नट गौटौ जांणौ।
सौ दुख मेट अखै पद समपण, केसव नांम कहांणौ।।१२०

दूहौ
खट दुजवर कर प्रथम पद, अंत जगण गण आंण।
दूजी तुक दुज सात धर, जगण सिखा सौ जांण।।१२१


११७. एह-यह। दख-कह। बद-वर्णन कर। जीहा-जिव्हा। बाखांण-वर्णन, यश।
११८. धुर-प्रथम। रिख-ऋषि। रेणी-धूलि। रसना-जिह्वा।
११९. सोळ-सोलह। अवर-अपर, अन्य। निगम-वेद। सखै-साक्षी देता है। कुंभ-कुंभकर्ण, रावण का छोटा भाई। मेघ-मेघनाद, रावणका पुत्र। खर-एक राक्षस का नाम। रहचे-मार डाला, संहार किया। बगसी-बख्शिश कर दी। सरणागत-शरण में आया हुआ। लंक-लंका।
१२०. कळ-मात्रा। सोळ-सोलह। बार-बारह। सीतावर-श्रीरामचन्द्र भगवान। गावें-वर्णन करें। जांमण-जन्म। मरण-मृत्यु, मौत। नट गौटौ-नट क्रीड़ा, ऐंद्रजालिक खेल। अखै-अक्षय। समपण-देने वाला। कहांणौ-कहा गया।

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छंद सिख
सर धनुख सझत जन सरण,
रख करण सुख रट सु झट रांम।
‘किसन’ किव समर पल यक न कर,
गहर सुण धर विरद भज सुख धांम।।१२२

छंद रस उल्लाला
पनरै तेरैह मत्त पय, छंद उल्लाल पिछांणजै।
रघुनाथ सुजस सौ छंद रच, बीदग मुख वाखांणजै।।१२३

रस उल्लारा भेद

दूहा
रस उल्लाल तिथ तेर मत, छवीस सम पद स्यांम।
स्यांमक रस दूहा सहित, मुण तै छप्पय नांम।।१२८
उलटौ रस उलाल उण, आख वरंग उलाल।
दाख त्रिदस फिर पंच दस, तुक बिहुंवै पड़ताळ।।१२५
पनर पनर मत दोय पय, कांम उलाल कहंत।
यण विध छंद उलालरा, भेद पांच भाखंत।।१२६

अथ माहा छंद लछण
प्रथम त्रीये मत बार पढ़, अख पद बियै अठार।
चौथै पनरह मात रच, यम गाथा उच्चार।।१२७
सात चतुर कळ अंत गुरु, जगण छठे थळ जोय।
उत्तर दळ छठ्टे सुथळ, दुज कै यक लघु होय।।१२८
तीस समत पूरब अरध, उत्तर सत्ताईस।
सत्तावन मता सरब, आखव नांम छवीस।।१२९


१२३. बीदग-(सं० विदग्ध) पंडित, कवि।
१२४. तिथ-पन्द्रह।
१२५. त्रिदस-तेरह।
१२९. आखव-कह। छवीस-छब्बीस।नोट-ग्रंथकर्ता ने निम्नलिखित रस उल्लाला के पांच भेदों के नाम दोहों में बतलाये हैं, उनके उदाहरण नहीं दिये। १. रस उल्लाला, २. स्यांम उल्लाला, ३. छप्पय उल्लाला, ४. बरंग उल्लाला ५. कांम उल्लाला।
* ग्रंथकर्ता ने महाछंद शीर्षक देकर नीचे गाथा अर्थात् आर्या छन्दों का विवरण दिया है।

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