म्है भाई नीं, बड जानी हूं

किणी कवि सही कैयो है कै देणो मरणै सूं ई दोरो। इणी कारण ओ दूहो चावो है कै जिकै समझदार होवे उणां सूं तीन काम संज नीं आवै दैणो, मरणो अर मारणो। ऐ काम तो काला होवै बै ई कर सकै –
नर सैणां सूं व्है नहीं, निपट अनैखा नाम।
दैणा मरणा मारणा, कालां हंदा काम।।
ऐड़ो ई एक प्रसंग है बीकानेर महाराजा गजसिंहजी रै खास मर्जीदान कवि गोपीनाथजी गाडण रो। गोपीनाथजी गाडण आपरी बगत रा मोटा कवि जिणां महाराजा गजसिंहजी री वीरता अर उदारता नै वर्णनीय विषय बणाय “ग्रंथराज ” नामक ग्रंथ बणायो। इणां नैं महाराजा लाख पसाव अर गेरसर गांव देय सम्मानित किया। गोपीनाथजी रा फुटकर गीत छंद ई मिलै।
गोपीनाथजी गाडण रो एक दूहो हास्य व्यंग्य रो घणो चावो जिणरै प्रसंग रो तो पत्तो नीं पण दूहो इणगत है –
गाडण गोपीनाथ री, टोपी टमकैदार।
सीड़िजी इक बार ही, मैंपीजी सौ बार।।
गोपीनाथजी रै एक बेटै रो ब्याव करनीदानजी मुंदियाड़ री बेटी साथै होवणो तय होयो। महाराजा गजसिंहजी, आपरा पोल़पात अर सम्माननीय कवि वीठू करनीदानजी मूल़ा सींथल नै फरमायो कै आप ई जान पधारजो पण करनीदानजी नटग्या। उणां दरबार नैं अरज करी कै गोपीनाथजी सूम आदमी सो खर्चो नीं करै अर खर्चे टाल़ ब्याव नीं सुधरै – “विमाह बिगड़ै गरथ बिनां।” म्हारो कोजो लागै। म्है रावल़ो पोल पात !” दरबार कैयो “आप जान पधारो। खरचण रा पईसा खजानै सूं मिलसी।” जान चढी बारठजी ब्याव जोर रो कियो। नैड़ै -आगै रा घणा जाचक आया। गोपीनाथजी त्याग बांटियां बिनां ई रात रा चढ बहीर होया।दिनूंगै डेरै में फगत वीठू करनीदानजी। मूंदियाड़ बारठजी कैयो “करनी दानजी ! गिनायत कठै ? इतरा जाचक भेल़ा होयोड़ा है। गोपीनाथजी रै बेटै रो ब्याव अर त्याग कुण बांटेला?” करनीदानजी वीठू कैयो “हुकम म्है हूं नी ! आप तो त्याग री त्यारी करावो।” बारठजी कैयो “आप तो म्हांरा भाई हो! आप कीकर त्याग बांटोला ?” करनीदानजी कैयो “हुकम म्है अबार भाई नीं, बड जानी हूं। गोपीनाथजी भलांई गया पण खरचण- बरचण म्हारै हाथ।”
मेड़तै रै सेठां सूं करनीदानजी हूंडी मेल रुपिया मंगाया अर आयै जाचकां नैं रीत मुजब त्याग बांटियो। बाद में सारो खरचो महाराजा गजसिंहजी खजानै सूं दियो। वीठू करनीदानजी री उण बगत री उदारता अर चारणाचार सूं मंडित किणी मोतीसर कवि रो एक दूहो इण प्रसंग री साख भरै –
अणबहिया बहसी नहीं, बहिया बहसी बाव।
गाडण नाठा गांम नै, ठंबिया वीठू राव।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी