सखी! अमीणो साहिबो

मित्रों जब भी कविता की बात होती है तो एक बात जरूर कहना चाहता हूं कि कालजयी कविता वह होती है जो आज भी हमैं नित्य नवीन लगे।
बरसों पहले जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंह के दरबारी कविराजा बांकीदास जी आसिया ने “सूर छत्तीसी” लिखी थी। वीर रस से लबरेज इन दोहों में कवि ने एक अमर पंक्ति का प्रयोग कर सात आठ दोहै रचे थे। पंक्ति थी “सखी! अमीणो साहिबो”
यह पंक्ति इतनी शानदार है कि यह आज के कवियों को भी प्रेरणा देती है। इसी पंक्ति से प्रेरणा लेकर आज के चारण कवियों ने कुछ दोहों के सृजन का प्रयास किया है। तो प्रस्तुत है बांकीदासजी आसिया के दोहों के साथ साथ कवि नरपत आसिया “वैतालिक” और गिरधरदान जी रतनू “दासोडी” द्वारा लिखे दोहै।

सखी अमीणो सायबो, बांकम सू भरियोह।
रण बिगसै रितुराज मे, जिम तरवर हरियोह।।१
सखी अमीणो सायबो, निरभै कालो नाग।
सिर राखे मिण साम धरम, रीझे सिन्धु राग।।२
सखी अमीण़ो साहिबो, गिणै पराई देह।
सर वरसै पर चक्र सिर, ज्यूं भादवड़ै मेह।।३
सखी अमीणो साहिबो, सूर धीर समरत्थ।
जुध वामण डंड जिम, हेली बाधै हत्थ।।४
सखी अमीणो साहिबो, जम सूं मांडै जंग।
ओल़ै अंग न राखही, रणरसिया दे रंग।।५
सखी अमीणो साहिबो, सुणै नगारां ध्रीह।
जावै परदल़ सामुहै, ज्यूं सादूल़ो सीह।।६
~~बांकीदास आसिया(सूर छत्तीसी से)
गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”
सखी अमीणो साहिबो, जुथ सथ पीवै जाम।
पड़ इण फंदै पांतर्यो, नारायण रो नाम।।1
सखी अमीणो साहिबो, धुर चित आसव धार।
जमियो रह नित जाजमां, विठल़ प्रेम वीसार।।2
सखी अमीणो साहिबो, प्रेमी बोतल पेख।
रैवै हर सूं रूठियो, छाती घर री छेक।।3
सखी अमीणो साहिबो, जीमै आपू जाण।
ढोवै जिंदगी ढोरपण, पिंड रो खोवै पाण।।4
सखी अमीणो साहिबो, ओ तो लेय अमल्ल।
झेरां मांय झूलायदी, गोविंद वाल़ी गल्ल।।5
सखी अमीणो साहिबो, विजया घोटै वीर।
बेसुध रैवै बावल़ो, रटै नहीं रघुवीर।।6
सखी अमीणो साहिबो, गैलो गांजेड़ीह।
व्यापी सुन आ वदन में, बांधी पग बेड़ीह।।7
सखी अमीणो साहिबो, आल़सियो ई ऊठ।
होको भर नित हाथ सूं, जग री खांचै झूठ।।8
सखी अमीणो साहिबो, रिदै न रघुवर रट्ट।
दिन पूरै ओ दाल़दी, चिलमां भरै चठट्ठ।।9
सखी अमीणो साहिबो, हर सूं हेत न हेर।
कोरी मारै कीड़ियां, फूंक बीड़ियां फेर।।10
सखी अमीणो साहिबो, गुण ना गोविंद गाय।
काठा भर -भर कोपड़ा, चोसै नितरी चाय।।11
सखी अमीणो साहिबो, जरदो खावै जाण।
राम भूलो ने रोग ले, अहर निसा अणजाण।।12
सखी अमीणो साहिबो, ठाली आल़स ठाम।
पता रमै नित खोय पत, रत नी होवै राम।।13
सखी अमीणो साहिबो, निस-दिन रैय निकाम।
गप्पां मारै गांम में, सिमरै नाही साम।।14
सखी अमीणो साहिबो, हांडै नितरो हेर।
करै नहीं मुख कालियो, टीकम वाल़ी टेर।।15
सखी अमीणो साहिबो, राखै घट में रीस।
जल़ै मूढ नित जोयलो, जपै नहीं जगदीश।।16
सखी अमीणो साहिबो, जोबन फूल्यो जोय।
सही भूलियो सार री, दिन आखर तो दोय।।17
सखी अमीणो साहिबो, कर र्यो कुलल़ा काम।
भोदू ओ तो भूलियो, रटण रिदै इम राम।।18
सखी अमीणो साहिबो, हर भूलो हकनाक।
डांडी बैठो देखलै, नर नारायण नाक।।19
सखी अमीणो साहिबो, सँकतो लेवै सास।
व्याव कियो रुजगार बिन, नितरा भरै निसास।।20
सखी अमीणो साहिबो, मही नै भारां मार।
लुकियो रह नित लूगड़ी, पचै न लैण पगार।।
नरपत आसिया “वैतालिक”
सखी ! अमीणो साहिबो, काजळ जिसो कुरूप।
आँजूं जद जद आँख में, तद निखरै म्हौ रूप।।1
सखी अमीणो साजणा, फबतौ चंपक फूल।
धारूं जद हूं केश में, महि वाधै म्हो मूल।।2
बैरी म्हारो बालमो, खारो है जिम खीर।
देय बिरह री वेदना, साजो रखै सरीर।।3
आलीजो म्हारौ अली, गहरो लाल गुलाब।
वा जद सुपने आवतो, महकै सारा ख्वाब।।4
कहियो म्हारो कंथडो, सखी हेम सौटंच।
गहणो कर राखूं गळै, रखूं दूर ना रंच।।5
सखी अमीणो साह्यबो, रहै गेरुआ रंग।
धरूं मांग सिंदूर कर, उर मँह हुवै उमंग।।6
सखी अमीणो साह्यबो, आछौ लगे अनूप।
ऊनाळै में छायडो, सीयाळै मैं धूप।।7
सखी अमीणो साहिबो, गाढो लाल गुलाल।
फागण जिम घण फूटरो, करतो लालमलाल।।8
पिव अंतर रो पूंभडो, रखूं कान बिच धार।
रात दिवस महकी रहूं, बहकै सूंघ बजार।।9
सांवरियो म्हारो सखी, नकी नवलखी हार।
हर पळ धारूं हूं गळे, कुण है चोरण-हार?।।10
सखी अमीणो साहिबो, लड बाजूबँध लूंब।
हर दम बँधियो हाथ रे, देखै भलै कुटूंब।।11
सांवरियो म्हारो सखी, निहचै काळौ नाग।
कर चोटी राखूं कनें, वपु चंदन रे बाग।।12
सखी अमीणो साहिबो, कंकण वलयाकार।
कर धारूं में कोड सूं, भाळै भलै बजार।।13
सखी अमीणो साहिबो, घूंघट मोरे गात।
लाखीणौ म्हौ दे लुका, सैण-भले हो साथ।।14
सखी अमीणो साहिबो, पोमचियो पचरंग।
प्हैर बजारां हालतां, ओपै म्हारां अंग।।15
सखी अमीणो साहिबो, पग पायल रमझोळ।
रुण झुण चालूं राज सँग, करती रहूं किलोळ।।16
सखी अमीणो साहिबो, सिर कुमकुम सिणगार।
छोटो देखण में छतां, भारी जिण रो भार।।17
सखी! अमीणौ साह्यबा, रे हिव प्रेम हिलोल़।
नीठै खोबां सूं नहीं, धोबा भरौ बहोल़।।18
सखी अमीणो साहिबो, रेशम तणो रुमाल।
परसे म्हाने प्रेम सूं, गाल हुवै तद लाल।।19
सखी ! अमीणो साहिबो, कथूं कांचळी डोर।
रसियो औ छेटो रहै, कसियो घण बरजोर।।20
सखी अमीणो साहिबो, बसै दूर सौ कोस।
सुपने में अपणो सदा, परतख जांण पडोस।।21
सखी अमीणो साहिबो, ठालौ भूलौ ठोठ।
पुस्तक पढे न प्रेम री, गेलौ मांणै गोठ।।22
सखी अमीणो साहिबो, केड तणो कंदोर।
बांधू कर बहुविध जतन, नाचूं फिर अठ पोर।।23
बालम म्हरो बोरियो, सदा रखूं सिर धार।
ओपै जिणसूं अंग मम, निरखै लोग हजार।।24
सखी अमीणौ साहिबौ,लिपटै कर कर लाड।
रीझै ;पण खीझै नहीं, रोज करूं भल राड़।।25
सखी!अमीणो साहिबो, हिव,नस, बसियो हाड।
रोम रोम में घर कियौ, खोलूं नहीं कमाड।।26
मादळियो पिव माहरो, मांय नेह रो मंत्र।
पहरे नै निरभय फरूं, डरूं न टूमण तंत्र।।27
सखी अमीणा साहिबा, री उपमा अणपार।
कांई वरणन हूं करूं, उण रा विरद हजार।।28
सखी अमीणा साहिबा, सूं ओपै शिणगार।
किंया वृथा हूं कूकती, गहली मूढ गँवार।।29