श्रीमद्भागवत महिमा – समानबाई कविया

श्रीमद् सब सुख दाई।
नृपति कुं श्रीसुखदेव सुनाई।।टेर।।
विप्र श्राप तैं जात अधमगति,
डरियो नृपत मन मांई।
ऐसो कोई होय जगत में,
श्रीकृष्ण लोक पंहुचाई।।1।।[…]
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श्रीमद् सब सुख दाई।
नृपति कुं श्रीसुखदेव सुनाई।।टेर।।
विप्र श्राप तैं जात अधमगति,
डरियो नृपत मन मांई।
ऐसो कोई होय जगत में,
श्रीकृष्ण लोक पंहुचाई।।1।।[…]
बनासा री बछेरी सतेज घणेरी, जीनै राम बना चढ फेरी।।टेर।।
राय आंगण बिच रिमझिम नाचै, जाणै इक इन्द्र परेरी।
हार हमेल हिया बिच सोहे, कनक लगाम खिंचेरी
बनासा री बछेरी सतेज घणेरी………….।।1।।
ओछे पांव बजाय घूघरा, मानो इक भाग्य भरेरी।
इत सूं उत पलटत छबि पावै, चपला कार करेरी
बनासा री बछेरी सतेज घणेरी………….।।2।।[…]
राजस्थान की पुण्यधरा में अनेक भक्त कवयित्रियों ने अपनी भक्ति भावना से समाज को सुसंस्कार प्रदान कर उत्तम जीवन जीने का सन्देश दिया है। इन भक्त कवियित्रियों में मीरां बाई, सहजो बाई, दया बाई जैसी कवियित्रियाँ लोकप्रिय रही है। इनकी समता में मत्स्य प्रदेश की मीराँ के नाम से प्रख्यात समान बाई का अत्यंत आदरणीय स्थान है। राजस्थान के ग्राम, नगर, कस्बों में समान बाई के गीत जन-जन के कंठहार बने हुए हैं। पितृ कुल का परिचय: समान बाई राजस्थानी के ख्याति प्राप्त कवि रामनाथ जी कविया की पुत्री थी। रामनाथजी के पिता ज्ञान जी कविया सीकर राज्यान्तर्गत नरिसिंहपुरा ग्राम […]
» Read more।।शिव स्तुति।।
(सवैया-घनाक्षरी)
वृषभको वाहन बिछावनौ है लोमविष,
विषईतुचा को वास क्रोधके निकेत है।
आसीविष भूषण, भखन विष विंधुमाला,
मंगल तिलक सर्वमंगला सहेत है।।
विषय विनाश वेष रहत विषैही रत्त,
शूल औ कपाल इहिं संपति समेत है।
देखौ धौं अभूत भूतनाथ एकौपल भजे,
रीझ मर्त्यनामानि अमर्त्य पद देत है।।१।।[…]
भारतीय डाक विभाग द्वारा महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण के सम्मान में जारी डाक टिकट एवं विवरणिका (Brochure):
भारतीय डाक विभाग की वेबसाइट पर महाकवि के बारे में लिखे विवरण को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें।
कविराजा बांकीदासजी नें कच्छ-भुज के प्रसिध्द दानवीर जेहा भाराणी की स्मृति में एक रचना “जेहल जस जड़ाव” 102 दोहों की बनाई थी। उसी में मिलते शीर्षक की रचना कवि मोडजी आशिया ने की थी “जेखल सुजस जड़ाव”। इसमें वीरता के प्रतीक सिंह, सुअर, वृषभ, नाग आदि बताए गए हैं। कवि आशियाजी के अनुसार वाराह, सिंह से भी अधिक पराक्रमी और वीर होता है। इसलिए आशियाजी नें सुअर को नायक बनाकर रचना की है। वाराह, डाढाऴो, जेखल कवल, दात्रड़िलाऴ, ऐकल, गिड़, सूर, सावज इत्यादि सुअर के पर्यायवाची डिंगऴ शब्द हैं। कुल पचास दोहों की इस वीररसात्मक रचना में काव्य-कृति का प्रारम्भ वाराह अवतार द्वारा पृथ्वी को अपनी दाढ (दांतऴी) पर उठाये जाने के पौराणिक प्रसंग से किया गया है।[…]
» Read moreराजस्थानी रा साहित में मर्यादा रो आछो मंडण, विशेषकर चारण साहित में घणों सखरो अर सोहणो हुयो है। जीवण री गहराई ने समझ परख अर ऊंचाई पर थापित करणे री मर्यादावाँ कायम करी गई है। इण मर्यादा रे पाण ही माणस समाज संगठित अर सुव्यवस्थित रैय र आपरी खिमता अर शक्ति में उतरोतर बढाव करियो है। चारण कवेसरां कदैई नीति रो मारग नी छोडियो है, अर नीतिबिहूणा जीवण ने पाट तोड़ बिगाड़ करण हाऴी नदी रै कूंतै मानियो है, इण भाव रो दोहो निजरां पैश है।
।।दोहा।।
तोड़ नदी मत नीर तूं, जे जऴ खारौ थाय।
पांणी बहसी च्यार दिन, अवगुण जुगां न जाय।[…]
चारणों के वैवाहिक कार्यक्रमों में यदि बीरम न हो तो विवाह की आभा अधूरी रह जाती है| विवाह के दौरान होने वाली हर छोटी बड़ी रस्मो पर उसी के अनुरूप गायन करके बीरम उस रस्म के आनंद को कई गुना कर देते हैं। समय के साथ यह कला भी धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। इस पेज पर बीरमो द्वारा गाये गए गीतों, चिरजाओं इत्यादी को संकलित किया जाएगा। जिस किसी के पास रिकॉर्डिंग हो, कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा भेजें।
» Read more“अवतार चरित्र” ग्रन्थ में ध्रुव-वरद अवतार की स्तुति
।।छन्द – कवित्त छप्पय।।
ऊँकार अपार, अखिल आधार अनामय।
आदि मध्य अवसान, असम सम आतम अव्यय।
एक अनेक अनंत, अजीत अवधूत अनौपम।
अनिल अनल आकाश, अंबु अवनी मय आतम।
उतपत्ति नाश कारन अतुल, ईश अधोगत उद्धरन।
अध मध्य ऊर्ध व्यापित अमित, तुम अनंत असरन सरन।।1।।[…]